Wednesday, December 22, 2010

तो भ्रष्टाचार पर राजनीति की अपनी-अपनी रणनीति

अब तो प्याज महंगा हो गया। शरद पवार ने जैसे ही मुंह खोला, प्याज रुलाने लगी। कांग्रेस की हालत खराब हो गई। महाधिवेशन जिस दिन शुरू हुआ था, उस दिन दूध की कीमत बढ़ी थीं। अब खत्म हो गया, तो प्याज दम निकाल रहा। सो अपने राहुल गांधी ने पवार-तवार को छोड़ सीधे पीएम पर जिम्मेदारी डाल दी। लाग-लपेट के बिना कह दिया- पीएम इस समस्या का समाधान ढूंढ लेंगे। अब सरकार प्याज बेचे या तेल, जनता तो कड़ाही में प्याजी की तरह भुन रही। सो महंगी प्याज के मारे राजनीतिक दल भ्रष्टाचार पर फिलहाल सिर्फ जूते बरसा रहे। कांग्रेस ने तीन दिन के महाधिवेशन में बीजेपी के भ्रष्टाचार पर जूते बरसाए। तो संसद के बाद बुधवार से विपक्ष ने सडक़ों पर यही काम शुरू कर दिया। पर बीजेपी-कांग्रेस के बीच शुरू भ्रष्टाचार के महासंग्राम से पहले बात अपने राजस्थान में मचे उपद्रव की। गहलोत सरकार को हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली। कोर्ट ने गुर्जरों के पांच फीसदी आरक्षण पर साल भर की रोक लगा दी। नए सिरे से सर्वे कराने के निर्देश दिए। अब सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प। पर गुर्जर समाज ने हाईकोर्ट में समुचित पक्ष नहीं रखने का आरोप सरकार के सिर मढ़ दिया। बाकायदा आंदोलन को और तेज करने का एलान हो गया। सो अब साल 2010 के बाकी बचे नौ दिन में क्या-क्या होगा। क्या देश आंदोलन की आग में झुलस कर ठहर जाएगा। या फिर जल्द किसी समाधान की उम्मीद? सचमुच 2007 से ऐसा कोई साल नहीं बचा, जब राजस्थान गुर्जर आंदोलन की आग में न झुलसा हो। साल 2010 में उम्मीद नहीं थी। पर जाते-जाते उम्मीद पर पानी फिर गया। सो सडक़ से संसद तक साल 2010 ने सिर्फ संकट पैदा किया। लालकृष्ण आडवाणी ने तो बुधवार को एलान भी कर दिया- साल 2010 घोटालों का वर्ष रहा। पर उन ने पीएम को फार्मूला भी सुझाया- अगर जेपीसी मान लो, तो घोटालों का वर्ष नहीं कहेंगे। यों एनडीए की महासंग्राम रैली के दोनों तरफ साल के दस घोटाले बैनर-पोस्टर चस्पा थे। बीजेपी ने तो बाकायदा घोटालों का वर्ष 2010 नाम से पुस्तिका भी जारी कर दी। जिसमें चालू वर्ष के दस घोटाले गिनाए। जरा आप भी देख लें। टू-जी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ, आदर्श सोसायटी, सड़ा अनाज, मुद्रास्फीति, चावल आयात, जनवितरण प्रणाली, सीवीसी की नियुक्ति, आईपीएल, एलआईसी हाउसिंग लोन और सत्यम घोटाला। सो बीजेपी ने अब कहना शुरू कर दिया- कांग्रेस का हाथ घोटालों के साथ। एनडीए की रैली में अरुण जेतली महफिल लूट ले गए। उन ने पीएम को चुनौती दी- अगर सच छुपाना नहीं चाहते, तो जेपीसी का सामना करें। वरना कुर्सी छोड़ दें। यानी विपक्ष ने अब राजा-राडिया को छोड़ सारा फोकस पीएम पर कर दिया। आडवाणी ने तो एलान कर दिया- अब विपक्ष के इस अभियान में मनमोहन ही हमारे निशाने पर होंगे। रैली में आडवाणी का दर्द भी उभर आया, जब उन ने 2009 के लोकसभा चुनाव की याद ताजा की। बोले- जब 2009 में मैंने कहा था, मनमोहन कमजोर पीएम। तो मेरे साथियों ने एतराज जता ईमानदार बताया था। पर आज साबित हो रहा, पीएम का पद कमजोर नहीं, अलबत्ता उस पद पर बैठा व्यक्ति कमजोर। जो हर अहम फैसले के लिए दस जनपथ की ओर निगाह जमाए बैठता। आडवाणी ने लगे हाथ पीएम को सलाह भी दी- पीएम पद की शक्तियों को इस्तेमाल कर जेपीसी बनाएं। अकाली रतन सिंह अजनाला ने तो यहां तक कह दिया- मनमोहन सिंह ऐसे पीएम, जिनकी कुर्सी के नीचे सारे लुटेरे बैठे हुए। यानी पीएसी के सामने सफाई देने की पेशकश कर मनमोहन ने विपक्ष को घेरने का मौका दे दिया। यों मुरली मनोहर जोशी की रहनुमाई वाली पीएसी 27 दिसंबर को तय करेगी, पीएम को बुलाना है या नहीं। पर कांग्रेस की नजर में पीएम का पीएसी वाला दांव एक साहसिक कदम। दिग्विजय सिंह तो सोमवार को ही इसे मास्टर स्ट्रोक बता चुके। सो बुधवार को जब एनडीए ने महासंग्राम के मंच से सीधा पीएम के खिलाफ बिगुल फूंका। तो कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने आरोप का जवाब देने के बजाए पलटवार किया। बोले- बीजेपी यानी बंगारू-जूदेव पार्टी को भ्रष्टाचार विरोधी रैली का नैतिक हक नहीं। जिस पार्टी ने भ्रष्टाचार में मील के पत्थर बनाए, जिस पार्टी का अध्यक्ष रिश्वत लेते पकड़ा गया, वह पार्टी भला क्या बात करेगी। यानी राजनीति में भ्रष्टाचार की फिर वही कहानी। भ्रष्टाचार के हमाम में सभी राजनीतिक दल एक जैसे। सो खुद को देखने के बजाए दोनों पक्ष एक-दूसरे को नंगा बता मखौल उड़ा रहे। बीजेपी की रणनीति, अगर राजा जेल गए, तो मुद्दा ठंडा पड़ जाएगा। सो सीधे पीएम को निशाना बनाओ। ताकि बजट सत्र तक मुद्दा जिंदा रखा जा सके। पर कांग्रेस की रणनीति कुछ अलग। भले देखने में कांग्रेस के बयान हताशा भरे लग रहे हों। पर रणनीतिकारों की मानें, तो पलटवार की मजबूत वजह। पिछले लोकसभा चुनाव में तमाम अटकलों को विराम देते हुए कांग्रेस ने 206 सीटें हासिल कीं। तो जीत के पीछे नरेगा जैसी महत्वाकांक्षी सामाजिक योजना अहम फैक्टर रहीं। सो अब कांग्रेस का मानना यही- नरेगा, सूचना का हक, शिक्षा का हक और अब भोजन का हक देने की तैयारी। सो सामाजिक योजनाओं से जमीनी स्तर पर कांग्रेस मजबूत हुई और होगी। इसलिए विपक्ष के आरोपों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए उन योजनाओं पर ही फोकस किया जाए। यानी भ्रष्टाचार पर कांग्रेस की आक्रामकता योजनाबद्ध रणनीति का हिस्सा। तो बीजेपी को बोफोर्स दोहराने की उम्मीद।
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22/12/2010