Thursday, January 14, 2010

मकर संक्रांति पर लो अपनी भी खिचड़ी!

संतोष कुमार
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         सूर्य उत्तरायण हो गया। हरिद्वार में आस्था के महाकुंभ की शुरुआत भी हो गई। पर सूर्य का उत्तरायण होना सभी राजनीतिक दलों के लिए शुभ नहीं रहा। यूपी में मायावती विधानसभा के बाद विधान परिषद में भी झंडाबरदार। विधान परिषद के आखिरी तीन नतीजे भी माया के हक में गए। सो दोनों सदनों में मायाराज हो गया। पर सबकी किस्मत माया जैसी नहीं। यों कांग्रेस ने शुभ मौका देख संगठन चुनाव का एलान कर दिया। पहला शुभ एलान सोनिया गांधी के चुनाव का। ताकि सब शुभ-शुभ हो। तभी तो जो औपचारिकताएं 25 जुलाई को पूरी होनी। एलान मकर संक्रांति पर ही कर दिया। पर क्या एक नाम जप से जुलाई तक कोई संकट नहीं आएगा? संकट तो पहले दिन ही, जब पटना में जगदीश टाइटलर और अनिल शर्मा के खिलाफ दलित एक्ट में एफआईआर दर्ज हो गई। बिहार कांग्रेस कार्यकारिणी की लिस्ट गुरुवार को जारी हुई थी। तो सत्ता के नशे में चूर कांग्रेस ने स्पीकर मीरा कुमार को भी मेंबर बना दिया। सिर्फ मेंबरी ही नहीं, सबके नाम के आगे जाति भी लिख दी। पर टाइटलर अब लिस्ट को कांग्रेस का अंदरूनी दस्तावेज बता रहे। अब आप ही देखो, जात-पांत से ऊपर उठने की बात करने वाले राजनेता कितने ढोंगी। यानी हजारों साल क्यों न बीत जाएं, अगर राजनीति का यही ढर्रा रहा। तो न जाति प्रथा मिटेगी, न भेदभाव और ना ही जाति के नाम पर वोट बटोरने की परंपरा। अब भले कांग्रेसी सोनिया गांधी को इस फजीहत से बचाने में जुटे। पर राजनीति का चेहरा फिर बेनकाब तो हो ही गया। राहुल गांधी के दलित बस्तियों में ठहरने पर राजनीतिक सवाल उठने लगे। तो राहुल ने खुद सफाई दी थी- 'मैं जाति पूछकर किसी के घर नहीं जाता। मैं सिर्फ यह देखता हूं कि वह इनसान गरीब है।'  अब राहुल कांग्रेस को कितना बदल पाएंगे, यह तो भविष्य के गर्भ में। पर सूर्य का उत्तरायण बीजेपी के लिए कुछ अच्छा नहीं रहा। नितिन गडकरी खरमास में ही बीजेपी के अध्यक्ष बने। अभी कुल 26 दिन ही हुए। गडकरी को अपने ही बयान पर खंडन जारी करना पड़ गया। इतना ही नहीं, गुरुवार को जब हम-आप सूर्य ग्रहण के साये में होंगे। दिल्ली के जंतर-मंतर पर नितिन गडकरी के पुतले फूंके जा रहे होंगे। जानते हैं, पुतले फूंकने वाले कौन होंगे। कांग्रेस-सपा-बसपा-वामपंथी जैसी विरोधी पार्टियां नहीं। अलबत्ता बीजेपी की दिल-अजीज सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी जेडीयू। दिल्ली की जेडीयू शाखा गडकरी के उस बयान से नाराज। जिसमें उन ने दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों के लिए बाहरी लोगों को 'समस्या'  बताया। पर गुरुवार को खंडन किया। तो बोले- 'मैंने बड़े शहरों की समस्या पर ईमानदार पहल की बात कही। भारत एक है। किसी को भी देश में कहीं भी आने-जाने-बसने का संवैधानिक हक।'  यों गडकरी दो दिन पहले ही कह रहे थे- 'मीडिया से दूर रहना ही पार्टी हित में। मीडिया लिखे, तो भला। ना लिखे, तो भला। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।'  अब गडकरी को क्यों फर्क पड़ा, जो खंडन जारी करने की नौबत आन पड़ी। गडकरी खुद महाराष्टï्र से। सो राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद क्षेत्रीयता के सवालों पर एहतियात बरतना चाहिए था। पता नहीं किस बात से आग भड़क उठे। राज ठाकरे-बाल ठाकरे-शीला-शिवराज-तेजेंद्र खन्ना की टिप्पणियां पहले भी आग बन चुकीं। राष्टï्रीय नेता को हर बात तोल-मोल कर बोलनी चाहिए। अब क्षेत्रीयता की बात चली। तो बाल ठाकरे का नया फरमान, आस्ट्रेलिया को अब महाराष्टï्र में मैच नहीं खेलने देंगे। पाकिस्तान से भी मैच न होने का आंदोलन किया था। तो शिवसेनिकों ने वानखेड़े स्टेडियम खोद डाला। यों ठाकरे की भावना से अपना भी इत्तिफाक। आखिर आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर नस्ली हमले थमने का नाम नहीं। अपनी सरकार तो सिर्फ गाल बजा रही। पर सवाल बाल ठाकरे से। अगर आपको आस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीयों से इतनी सहानुभूति। तो भारत में ही हिंदी भाषियों से इतनी नफरत क्यों? आप तो अपने देश में ही अपने लोगों को पीट या पिटवा रहे। क्या आप और आपके भतीजे की ओर से उत्तर भारतीयों पर यह नस्ली हमला नहीं? ठाकरे साहब, हिंदी भाषियों पर हमला कर आपके परिवार ने देश की एकता खोद डाली। अब शुभ-अशुभ की बात चली। तो बेचारगी के दौर से गुजर रही सपा क्यों छूटे। सूर्य ने दिशा बदली। तो अमर सिंह भी दुबई से मुंबई आ गए। पर सपा की कहानी विचित्र मोड़ पर आ गई। अब अमर ने मुलायम को एक-दूसरे का राजदार बताया। तो राजनीतिक हलकों में सीडी का बाजार गर्म हो गया। यानी अमर शुद्ध रूपेण ब्लैक मेलिंग पर उतर आए। अब अमर हमाम में कैसे, यह तो सबको मालूम। पर अमर ने ठान ली, मुलायम को भी नहीं छोड़ेंगे। यों राजनीति में सीडी का बड़ा महत्व। बुढ़ापे में एनडी तिवारी शिकार हुए। बीजेपी में संजय जोशी के अपने ही दुश्मन थे। तो मुंबई से ही दिसंबर 2005 में सैक्स सीडी जारी हुई। एक बार बिहार निवास में कुछेक सांसदों की रंगीन सीडी भी खूब चलीं। हरियाणा के पिछले चुनाव के वक्त भजनलाल की अश£ील सीडी ने खेल बिगाड़ दिया था। अमर सिंह का फोन टेपिंग कांड अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित। तब अमर और अंबिका सोनी में जैसी तकरार हुई, लिखना भी मुनासिब नहीं। सो राजनीति मा सीडी की बड़ी आग है। अब मौका मकर संक्रांति का। तो बेहतर यही, क्यों न सभी नेता कुंभ हो आएं।
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14/01/2010