Wednesday, February 3, 2010

तो बवाल के बीच जेब में उबाल की तैयारी

 संतोष कुमार
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       आखिर भाषाई हुड़दंग भाषा की लक्ष्मण रेखा लांघ ही गया। नेता गाली-गलौज पर उतर आए। बीजेपी के विनय कटियार ने बाल ठाकरे से पूछा। क्या मुंबई आपके बाप की। पर बीजेपी कटियार से इत्तिफाक नहीं रख रही। सो शिवसेना अभी बीजेपी पर संयत। पर राहुल गांधी ने चचा-भतीजे ठाकरे को चुनौती दी। तो मुंहफट ठाकरे की भाषा संयत नहीं रही। सो मुखपत्र 'सामना'  में बूढ़े शेर की गर्जना हुई। राहुल ने महाराष्टï्र सबका बताया। तो ठाकरे ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर हमला बोल कांग्रेसियों को फिर चिढ़ाया। लिखा- 'महाराष्टï्र भारतीयों का तो हो सकता। पर इटालियन मम्मी का कैसे हो सकता। जो महाराष्टï्र के रास्ते में अड़ता है। महाराष्टï्र उसे घुटने टेकने पर मजबूर कर देता है। मुंबई को धर्मशाला नहीं बनाओ। वरना अंजाम बुरा होगा।'  पर सबको पता, विदेशी मूल का मुद्दा टांय-टांय फिस्स हो चुका। सो कांग्रेसियों ने ठाकरे की टिप्पणियों को भाव नहीं दिया। वैसे भी चुनाव से पहले राहुल मराठी विवाद से बिहार में पैर जमा रहे। सो कांग्रेस रफ्ता-रफ्ता कार्ड आजमा रही। ठाकरे जितनी कठोर भाषा राहुल के लिए इस्तेमाल करेंगे। कांग्रेस को उतना ही फायदा। हवा का यह रुख कांग्रेस कई बार देख चुकी। नरेंद्र मोदी से लेकर प्रमोद महाजन तक। सोनिया गांधी के खिलाफ शब्दों के खूब तीर चलाए। हताशा में भाषा की मर्यादा इस कदर लांघी गई। खुद बीजेपी के पुरोधा अटल बिहारी वाजपेयी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना पड़ा। पर यहां तो शिवसेना के पुरोधा ही मर्यादा की आहुति दे रहे। राहुल गांधी के बयान से इस कदर बौखलाई। बाल ठाकरे ने अपने मुखपत्र में बयानबाजी की हदें पार कर दीं। मुद्दे से परे हट राहुल को जो कहा। आप भी देख लें- 'राहुल गांधी के सिर पर सींग निकल आए हैं। इसलिए अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं। राहुल की उम्र ज्यादा हो गई। फिर भी शादी नहीं हुई। सो राहुल का मानसिक संतुलन बिगड़ गया।'  क्या जिनकी शादी नहीं होती, उनका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता? शायद शिवसेना भूल गई, पूर्व राष्टï्रपति कलाम ने शादी नहीं की। पर बड़े वैज्ञानिक और भारत रत्न बने। अपने वाजपेयी भी कुंवारे। पर देश के पीएम बने। सो शिवसेना के बयान का क्या मतलब। कहीं ऐसा तो नहीं, बाल ठाकरे ने नाम तो राहुल का लिया। निशाना संघ प्रमुख मोहन भागवत हों। संघ के सभी पूर्ण कालिक प्रचारक कुंवारे ही तो होते। आखिर उत्तर भारतीयों की रक्षा का बीड़ा उठा मोहन भागवत ने ही शिवसेना की दुखती रग पर हाथ रखा था। पर ठाकरे ने संघ को संयत भाषा में जवाब दिया। बाकी शाहरुख खान हों या राहुल गांधी। शिवसेना ने हर बयान पर पलटवार किया। अगर किसी पर पलटवार नहीं हुआ, तो वह सिर्फ नितिन गडकरी का बयान। संघ ने मोर्चा खोला। तो नितिन गडकरी ने संविधान की दुहाई देकर एक पन्ने का बयान पढ़ दिया। नाम शिवसेना का नहीं लिया। सो शायद शिवसेना ने लिहाज रखा। तभी तो मराठी विवाद पर बयानों के जहर बुझे तीर हवा में टकरा रहे। पर बीजेपी दो दिन पुराने बयान से इतर एक शब्द कहने को राजी नहीं। कांग्रेस और राहुल की आलोचना करने में बीजेपी देर नहीं कर रही। पर ज्यों ही सवाल शिवसेना का आता। गाड़ी घूमकर गडकरी के बयान पर पहुंच जाती। अब एक और बात सामने आ रही। आडवाणी ने खुद बाल ठाकरे से फोन पर बात की। अब बीजेपी के बयान पर शिवसेना पलटवार नहीं कर रही। तो क्या यह सांठगांठ का सबूत नहीं? राज ठाकरे का बढ़ता दायरा और शिवसेना का सिमटता कुनबा बीजेपी के लिए भी चिंता की बात। सो घालमेल कर दोनों खेल रहे। मराठी कार्ड से शिवसेना को हीरो बनाने की कोशिश। ताकि राज ठाकरे का मक्कू कसा जा सके। यानी महाराष्टï्र में शिवसेना को मराठी पिच। तो इसी बहाने बीजेपी अनुच्छेद 370 को उछाल हिंदुत्व कार्ड खेलने की तैयारी में। ऐसा हुआ, तो कांग्रेस भी घिरेगी। सो अब लड़ाई शिवसेना बनाम कांग्रेस करा बीजेपी मौज ले रही। बीजेपी के एक मराठी नेता तो खुद बता रहे थे। ताजा विवाद तो 15 दिन में थम जाएगा। पर तीन-चार महीने में इस तरह के तीन-चार और राउंड होंगे। अब हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या। अब करुणानिधि भी शिवसेना-मनसे पर लगाम की बात कर रहे। खुद भी हिंदी विरोधी न होने की सफाई दे रहे। पर इतिहास करुणा की निधि देख चुका। सो लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार का विचार उम्दा लगा। ठाकरे जैसे लोगों को तवज्जो मत दो। विवाद खुद-ब-खुद ठंडा पड़ जाएगा। यानी अपना मीडिया भी जिम्मेदार हो। पर जब तक नेता ईमानदार न हो, कुछ नहीं होने वाला। अभी भी शिवसेना शाहरुख खान को धमकी दे रही। तो बीजेपी सुर में सुर मिला रही। खेल को राजनीति से अलग रखने की दलील भी, साथ में शाहरुख को नसीहत भी। पर यह क्या बात हुई, खेल संघों में राजनीति तो घुन की तरह घुसी हुई। सो इधर देश भाषाई विवाद में उलझा। रोजाना बयानों से बवाल मच रहे। तो दूसरी तरफ सरकार 'हाथ'  की सफाई दिखाने में जुटी हुई। बवाल के बीच आम आदमी की जेब में उबाल की तैयारी। सरकार की एक्सपर्ट किरीट पारिख कमेटी ने रपट दे दी। पेट्रोल तीन रुपए, डीजल तीन से चार रुपए, केरोसिन छह रुपए और एलपीजी पर सौ रुपए प्रति सिलेंडर बढ़ाने की सिफारिश। साथ में प्राइस पॉलिसी को सरकारी नियंत्रण से हटाने का फार्मूला। जैसे विलासराव देशमुख ने राज के गुंडों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर हिंदी भाषियों के खिलाफ तांडव की छूट दी। सो आप तो यही मानो, राजनीति की जय-जय।
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03/02/2010