Monday, January 17, 2011

गर हिटलर होता, तो हमारी सरकार को सलाम ठोकता!

मनमोहन सरकार आज-कल खूब धूम मचा रही। लाज-शर्म का परदा फाड़ सरकार भ्रष्टाचार के आरोपी सीवीसी पी.जे. थॉमस के बचाव में उतर आई। पर उसी परदे के कपड़े से केबिनेट मंत्री पद की शपथ लेने को कुछ नेता पतलून सिलवा रहे। पर आम आदमी की पतलून के चिथड़े-चिथड़े हो चुके। बीते मंगल-बुध को महंगाई पर काबू पाने के लिए पीएम ने हाई-लेवल मैराथन मीटिंगें कीं। पर आदत से मजबूर सरकार ने शनिवार को महंगाई की आग में पेट्रोल डाल दी। अब ऐसी सरकार को सरकार कहेंगे, या बिजनेसमैन? जिसे कंपनियों के कथित घाटे की चिंता, आम आदमी की नहीं। आखिर अर्थशास्त्र का यह कौन सा फार्मूला, जो दो दिन कीमतें काबू में करने की मीटिंग में बिताओ। तीसरे दिन कीमतें बढ़ा दो। ऐसे लोगों को अर्थशास्त्री कहेंगे या विनाश शास्त्री? एक वरिष्ठ नेता ने सोमवार को हरियाणा से जुड़ा मशहूर चुटकुला सुनाया। घर की बेटी छत से गिर गई। दर्द से कराह रही थी। सो घर के लोगों में किसी ने हल्दी-दूध पिलाने, तो किसी ने गर्म पानी से सेकने, तो किसी ने मालिश करने की सलाह दी। इसी सलाहबाजी के बीच घर का सबसे बुजुर्ग पहुंचा। तो उन ने सलाह दी- लडक़ी के नाक-कान छिदवा दो। एक साथ सारा दर्द झेल जाएगी और लगे हाथ सारा काम निपट जाएगा। मनमोहन सरकार ने शायद यही नुस्खा अपना लिया। जब आम आदमी महंगाई की मार झेल ही रहा। महंगाई काबू करने का कोई उपाय नहीं मिल रहा। तो अपनी नवरत्न कंपनियों को घाटे में क्यों जाने दें। सो ताबड़तोड़ पेट्रोल के दाम बढ़ाए जा रहे। थोड़े दिन का इंतजार करिए, डीजल भी डील-डौल दिखाएगा। रसोई गैस बदहजमी न करे, तो आप कहना। मनमोहन का करिश्मा देखिए, नेहरू-गांधी परिवार से इतर बतौर पीएम सातवें साल के सात महीने पूरे हुए। और पिछले सात महीने में सात बार पेट्रोल की कीमतें बढ़ चुकीं। अब तो मनमोहन सरकार ने असंवेदनशीलता की सारी हदें पार कर दीं। पहले तो पीएसयू यानी सरकारी नवरत्न कंपनियों को खुली लूट मचाने की छूट दी। अब नया ट्रेंड शुरू हो रहा। आम तौर पर आतंकवादी भीड़-भाड़ वाले बाजार में हमले के लिए शनिवार का दिन चुनते थे। ताकि अधिक से अधिक लोग शिकार हो सकें। अब उसी तर्ज पर शनिवार को महंगाई चोट करने लगी। सरकार ने शनिवार को पेट्रोल की कीमतों में ढाई रुपए से भी अधिक का इजाफा कर दिया। ताकि सोमवार को जब लोग-बाग गाड़ी लेकर घर से निकलें, तो कंपनियों को फायदा हो। पर सिर्फ गाड़ीवान ही नहीं, इस कीमत बढ़ोतरी का असर समूची आवाम पर पड़ेगा। सो यह सचमुच महंगाई रूपी आतंकवाद, जिसकी चोट आम आदमी को घुट-घुट कर मरने को मजबूर कर रही। आतंकवादी हमले में तो लोग मौके पर ही मर जाते। समूचा घटनास्थल लाल रंग में रंग जाता। पर महंगाई रूपी आतंकवाद का घाव इससे कहीं बढक़र। आम आदमी इस आतंकवाद से ठीक से नहीं मर पा रहा, जीना मुहाल जरूर हो चुका। महंगाई ने लोगों का खून निचोडऩा शुरू कर दिया। पर कीमत बढ़ाऊ मंत्री मुरली देवड़ा की तान ने सोमवार को सचमुच चौंका दिया। देवड़ा बोले- नवरत्न कंपनियां बेहद नुकसान झेल रही थीं। इन कंपनियों को हम घाटे से लहू-लुहान होने की अनुमति नहीं दे सकते। देवड़ा की मुरली की धुन समझ गए ना आप? मतलब, भले आम आदमी का खून महंगाई की चोट से थक्का बन जाए। पर कंपनियों को खरोंच भी नहीं आनी चाहिए। देवड़ा ने इसी बढ़ोतरी को अंतिम नहीं बताया। अलबत्ता अभी और चोट झेलने की चेतावनी दे दी। बोले- इस बढ़ोतरी के बाद भी पेट्रोलियम कंपनियां प्रति लीटर सवा से डेढ़ रुपया घाटा सह रहीं। यानी आम आदमी सरकार का अहसान माने, सिर्फ दो रुपए 52 पैसे की बढ़ोतरी की। सो बढ़ोतरी को ना देखो, सवा रुपए की राहत पर ध्यान दो। काश, हिटलर या मुसोलिनी जिंदा होता। तो आम आदमी के प्रति सरकार की इस नफरत भरी भावना को देख हमारे नेताओं को सलाम जरूर ठोकता। सरकार की हिम्मत देख हिटलर का वह कारनामा याद आ गया। जब यहूदियों और अपने विरोधियों को मौत के घाट उतारने के लिए गोलियां महंगी पडऩे लगीं। तो हिटलर ने उस महंगाई से बचने का नुस्खा अपनाया। एक ऐसी कोठरी बनवाई, जिसमें सिर्फ एक सुराख था, जिसके जरिए जहरीली गैस छोड़ी जाती थी। इस कवायद से हिटलर एक साथ सैकड़ों लोगों को तड़पा-तड़पा कर मौत के घाट उतारता था। अब महंगाई और अपनी सरकार का आलम देख यही लग रहा। आम आदमी महंगाई की जहरीली गैस से घुट-घुट कर मरने को मजबूर। यों दिखावा करने को ममता-पवार-करुणा ने मनमोहन सरकार को तेवर दिखाए। तो कांग्रेस ने मजबूरी की तान छेड़ कंपनियों से गुजारिश की- कम से कम कीमतें बढ़ाने की वजह भी जनता को बता दो। यानी कांग्रेस बचावी मुद्रा में। सो बीजेपी ने लूट करार दिया। पर अपनी जनता क्या कर रही? इस लूट पर बूट पहने जनता क्या यों पेट्रोल पंप पर लाइन लगाएगी? पेट्रोल के दाम जिस दिन बढ़ते, उस दिन हर पंप पर जाम लग जाता। आखिर ऐसी मानसिकता क्यों? क्या घंटों लाइन में लगकर एक दिन टंकी फुल करवा लेने से जिंदगी पर महंगाई असर नहीं करेगी? अब बहुत हो चुका। पेट्रोल पंप पर लाइन लगाने, चौक-चौराहों पर बैठ सरकार को कोसने के बजाए सडक़ों पर उतरे। भेड़चाल छोड़ आंदोलन का शंखनाद करे। तो देश का हर आदमी जेपी बन सकता। अगर आप जेपी न बनें, तो सरकार इतने 'पी.जे. थॉमस' खड़े कर देगी। हम-आप महंगाई के मकडज़ाल में उलझ कर मर जाएंगे। सो अब जागो, और आगे बढ़ो.., जब तक..।
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17/01/2011