Tuesday, September 14, 2010

गुरु-शिष्य परंपरा पर भारी ‘गिल सिंड्रोम’

कॉमनवेल्थ से पहले अयोध्या फैसले के खिलाफ अर्जी लग गई। फैसले के बाद प्रतिक्रिया हुई, तो देश की छवि खराब होगी। सो अर्जी में फिलहाल फैसला टालने की अपील। यों एक और अर्जी लगी, जिसमें फैसले के बजाए समझौता कराने की मांग की गई। सो अब हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच पहले इन दोनों अर्जियों पर सुनवाई करेगी। पर मंदिर-मस्जिद के नाम पर रोटी सेकने वालों ने दुकानें सजा लीं। संघ का शीर्ष नेतृत्व दिल्ली में डेरा जमा चुका। साधु-संतों को आगे करने की रणनीति। ताकि बीजेपी फिर बंटाधार न करे। पर आडवाणी अपना गौरवगान शुरू कर चुके। सितंबर महीने की महिमा का बखान किया। तो साफतौर पर जतलाया, 24 सितंबर को फैसला आ रहा। अयोध्या मामले पर उनकी पहली रथयात्रा सोमनाथ से 25 सितंबर को शुरू हुई थी। यानी फैसला हक में आया, तो आडवाणी श्रेय लेंगे। पर जिस छह दिसंबर को बाबरी ढांचा ढहाया गया, आडवाणी उसे दुखद और काला दिन करार दे चुके। सो आडवाणी का दिल और दिमाग किधर, वही जानें। पर बीजेपी ने एक बार फिर खोया भरोसा हासिल करने की कवायद शुरू कर दी। फैसले से पहले जनता की नब्ज टटोलने का अभियान चलेगा। तो इधर गडकरी कह रहे- सत्ता से पहले कार्यकर्ता का सम्मान जरूरी। पर जब सत्ता थी, तो बीजेपी के सूरमाओं ने किस तरह कार्यकर्ताओं को दुत्कारा, आज बीजेपी के नेता ही किंवदंती की तरह सुनाते। सो काठ की हांडी चढ़ेगी या नहीं, यह तो बाद की बात। पर कहीं हाईकोर्ट ने फैसला टालने की अर्जी मान ली। तो संघ-बीजेपी की मौजूदा तैयारियों पर पानी फिर जाएगा। पर देश की जनता को फिलहाल कॉमनवेल्थ गेम्स की चिंता। सो अब लोग यही दुआ कर रहे- सब कुछ ठीक से निपट जाए, ताकि देश का नाम खराब न हो। सो देश की जनता को अपने खिलाडिय़ों से भी नाम रोशन करने की उम्मीद। पर गुरु-शिष्य परंपरा वाले इस देश में जब एम.एस. गिल जैसे मंत्री होंगे। तो मैडल की उम्मीद करना बेमानी। मंगलवार को कुश्ती के वल्र्ड चैंपिंयन सुशील कुमार अपने गुरु सतपाल के साथ एम.एस. गिल से मिलने पहुंचे। फोटो सेशन हुआ, तो गिल ने सतपाल सिंह को फोटो शूट से हटा दिया। यह बात चैंपियन सुशील को भी नागवार गुजरी। पर मंत्री के आगे किसकी क्या बिसात। गिल ने कह दिया- यह सिस्टम ठीक नहीं। पर कोई पूछे, गिल किस सिस्टम से कांग्रेस सांसद और मंत्री बने? मुख्य चुनाव आयुक्त पद से रिटायर हुए जुम्मा-जुम्मा आठ दिन भी न हुए होंगे। कांग्रेस ने राज्यसभा का टिकट थमाने का फैसला कर लिया। तब तक गिल कांग्रेस के मेंबर भी नहीं थे। पर रेवड़ी के लिए सब कुछ रातों-रात हुआ। फिर सांसद से मंत्री बन गए। तब विपक्ष ने सवाल उठाया था। पर जब खुद को रेवड़ी मिल रही हो, तो सब जायज हो जाता। सारे सिस्टम सही लगने लगते। पर सवाल, मुख्य चुनाव आयुक्त पद से रिटायर होने वाले गिल कोई विरले नहीं। फिर कांग्रेस ने सिर्फ गिल को ही सांसदी और मंत्री पद की रेवड़ी क्यों थमाई? क्या संवैधानिक पद पर रहते हुए कांग्रेस के लिए कोई राजनीतिक कॉमनवेल्थ तो नहीं खेल रहे थे? पर ब्यूरोक्रेटों को अपना किया खूब अच्छा लगता। या यों कहें, ब्यूरोक्रेटों को यह गफलत हो चुकी कि समूची व्यवस्था वही चला रहे। ब्यूरोक्रेट में यह सिंड्रोम घर कर चुका कि वह कुछ भी कर सकते। ब्यूरोक्रेट के बारे में विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने भी सोमवार को बखूबी फरमाया। बोले- रिटायरमेंट के बाद ब्यूरोक्रेट संत हो जाते। सो कुश्ती चैंपियन सुशील के गुरु के अपमान में गिल का नहीं, गिल के अंदर के ब्यूरोक्रेट का दोष। जो द्रोणाचार्य अवार्डी सतपाल सिंह को नहीं पहचान पाए। साइना नेहवाल के कोच गोपीचंद को भी गिल ने नहीं पहचाना था। अब देखो, अगर किसी मंत्री के साथ ऐसा हो जाए। तो आसमान सिर पर उठा लेंगे। पर गिल ने यहां पहचान कर भी गुरु का अपमान किया। सिस्टम की दुहाई दी। तो क्या ऐसे मनोबल बढ़ेगा खिलाडिय़ों का? जिस गुरु सतपाल सिंह ने सुशील को बचपन से कुश्ती के गुर सिखा आज विश्व चैंपियन बनवाया। जब उस गुरु का अपमान होगा, तो मैडल कैसे देश में आएगा? खेल के प्रति भेदभाव का रवैया कोई नया नहीं। याद करिए, गणतंत्र दिवस समारोह के वक्त पद्म अवार्ड से सम्मानितों के नाम। ओलंपिक में सुशील ने कांस्य जीता। पर बॉक्सर विजेंद्र की तरह सुशील को पद्मश्री नहीं मिला। तब भी सरकार ने सुशील का दिल दुखाया। पर सरकार के पास दिल ही नहीं, जो दुखे। सचमुच सरकार के पास दिल होता, तो हिरणों के दिल पर तीर चलाने वाले सैफ अली खान पद्मश्री नहीं होते। एटमी डील में बिचौलिया बनकर संत सिंह चटवाल पद्मभूषण हो गए। जिनके खिलाफ सीबीआई जांच हुई। बिल क्लिंटन के साथ जब भारत दौरे पर आए, तो गिरफ्तारी भी हुई थी। सो जब नागरिक सम्मान भी फिक्सिंग के शिकार होने लगे। तो सम्मान को मंत्री सम्मान देंगे, इसकी उम्मीद करना बेमानी। मैडल-पदक जैसी चीजों के लिए राजनेता अब उसी नाम पर मुहर लगाते। जो राजनीति की चारणगिरी करे। तभी तो कॉमनवेल्थ में घोटाले की कई परतें उधड़ीं। पर एम.एस. गिल ने संसद में कलमाडिय़ों का बचाव करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कॉमनवेल्थ में पानी की रह पैसा बहाने को जायज ठहरा चुके। सो कॉमनवेल्थ में खिलाडिय़ों को खिलाने के बजाए गिल को ही मैदान में उतार दो। वैसे भी गिल खुद को बॉक्सिंग, तैराकी और कई खेलों में माहिर बता चुके। अब सब-कुछ गिल खुद ही कर लेंगे। तो न सिस्टम में गिलती मिलेगी, न किसी गुरु का अपमान होगा।
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14/09/2010