Thursday, October 8, 2009
एक थे दलित , आज भी हैं, क्या कल भी रहेंगे?
इंडिया गेट से
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एक थे दलित , आज भी
हैं, क्या कल भी रहेंगे?
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• संतोष कुमार
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हरियाणा में चल हट जा। तो महाराष्ट्र में आ गले लग जा। अबके चुनाव में कांग्रेस यही नुस्खा आजमा रही। हरियाणा में वंशवाद का बीज पनपने नहीं दिया। पर महाराष्ट्र में वंशवाद की बेल तैयार कर दी। सो हरियाणा में नतीजों के प्रति आश्वस्त। महाराष्ट्र में धड़कनें बढ़ चुकीं । सो कांग्रेस ने हरियाणा में बागियों का बाजा बजाने की ठान ली। पर महाराष्ट्र में बहुमत का टोटा न हो। सो बागियों पर कार्रवाई नहीं होगी। पर बीजेपी-शिवसेना को उम्मीद इन्हीं बागियों से। सो बीजेपी घोषणा पत्र से ही ताल ठोक रही। मंगलवार को प्रकाश जावडेकर ने कांग्रेस पर पायरेसी का आरोप लगाया। तो चार-छह चोरियां भी गिना दीं। मसलन, बीजेपी •े मैनीफैस्टो में ç•सानों •ो चार फीसदी पर •र्ज •ा वादा। तो •ांग्रेस ने तीन फीसदी •ा वादा ç•या। बीजेपी लाड़ली लक्ष्मी में ए• लाख देगी। तो •ांग्रेस ने सवा लाख •ा एलान ç•या। खेतिहर मजदूरों •ो बीजेपी भ्00 रुपए पेंशन। तो •ांग्रेस ने 600 रुपए •र दिया। बीजेपी-शिवसेना मराठी प्रेम दिखाने •ो हता मनाएगी। तो •ांग्रेस ने पखवाड़ा मनाने •ा एलान •र दिया। पर अब वोटरों •ो गुमराह •रना आसान नहीं। मैनीफैस्टो सिर्फ चुनावी चोंचलेबाजी बन•र रह गए। सो •ौन सा मुद्दा चला, यह जनता ही बताएगी। गुजरात, दिल्ली, राजस्थान और हालिया लो•सभा चुनाव में सारे अनुमान धराशायी हो गए थे। तभी तो हारने और जीतने वाले ने ए• सुर में माना, अपना लो•तंत्र अब मैच्योर हो चु•ा। तभी तो यूपी में सर्वजन •ा राग अलापने वाली मायावती •ा मोह अब भंग हो रहा। लो•सभा चुनाव में •हां माया पीएम बनने •ा मंसूबा पाले बैठी थीं। यूपी से 60 सीटें जीतने •ा लक्ष्य था। पर आसमान से गिरे, खजूर पर अट•े जैसी हालत हो गई। पहला-दूसरा भी नहीं, तीसरे नंबर पर धड़ाम से गिरीं माया। •ांग्रेस चौथे नंबर से दूसरे नंबर पर पहुंच गई। यानी जनता ने गुरूर तोड़ा। तो मायावती बौखला उठीं। अगली बार •ुर्सी रहे, न रहे। सो जनता •े पैसे से बुतपरस्ती तेज •र दी। अंबेड•र, छत्रपति शाहूजी महाराज जैसे महापुरुषों •ो दलित आदर्श में समेटने •ी •ोशिश। यूपी में जगह-जगह अंबेड•र, •ांशीराम •ी मूर्तियां तो लगवाईं। लगे हाथ अपनी मूर्ति भी खड़ी •र दी। यों भारतीय संस्•ृति-परंपरा में जिंदा व्यक्ति •े बुत नहीं बनते। पर मायावती ने खुद •ो जिंदा देवी घोषित •र दिया। अगर मायावती सिर्फ अंबेड•र-•ांशीराम त• सीमित रहतीं। तो शायद इतना बवाल न होता। पर अपनी मूर्ति लगवा विरोधियों •ो मौ•ा दे दिया। अब यूपी जैसे पिछड़े राज्य में महज बुतपरस्ती पर 2600 •रोड़ खर्च हों। तो आम आदमी सवाल उठाएगा ही। सो मामला सुप्रीम •ोर्ट पहुंच चु•ा। पर दलित अçस्मता •े नाम पर माया •ोर्ट से भी ट•राव •े मूड में। सुप्रीम •ोर्ट ने 11 सितंबर •ो •ड़ी फट•ार लगाई थी। सभी निर्माण पर रो• लगाने •ा आदेश दिया। पर माया ने राजनीति• पैंतरेबाजी दिखाई। सो मंगलवार •ो अवमानना •ा मामला बन गया। सोमवार •ो •ोर्ट ने राजनीति• विरोधी जैसा बर्ताव न •रने •ी हिदायत दी थी। तो मंगल •ो साफ आदेश दे दिया। •ोर्ट ने पहली नजर में पिछले आदेश •ा खुल्लमखुल्ला उल्लंघन माना। मामला •ेंद्र •े सुपुर्द •रने •ी चेतावनी दी। यूपी •े चीफ सै•्रेट्री •ो भी चार नवंबर •ो तलब •र लिया। यानी माया ने ट•राव मोल लिया। तो सुप्रीम •ोर्ट निर्माण स्थल पर •ेंद्रीय बल तैनात •रने या संवैधानि• सं•ट बता अनुच्छेद 3भ्6 •ी सिफारिश •र स•ती है। अगर ऐसा हुआ, तो माया अपने वोट बैं• •ो दुरुस्त •रने में पीछे नहीं हटेंगी। पर दलित अçस्मता •े नाम पर यह •ैसा खेल। क्या बुत बनने से दलितों •ा पुनरुत्थान हो जाएगा? माना, इतिहास में •ुछ महापुरुषों •े साथ न्याय नहीं हुआ। तो क्या मौजूदा सियासतदां या आने वाली पीढ़ी बदले •ी भावना से •ाम •रेगी? पर अब मायावती •ा मिशन राजनीति में बदल चु•ा। •ांग्रेस यूपी में जिंदा हो उठी। सो माया •ो दलित वोट बैं• भी खिस•ने •ा डर। तभी तो उन ने •ोर्ट से भी रार ठान रखी। पर माया हों या •ांग्रेस, दलित प्रेम •ी राजनीति आप खुद देख लो। राहुल बाबा दलितों •े घर रह•र खूब सुर्खियां बटोर रहे। सो यूपी •ांग्रेस ने गांधी जयंती पर थो• में यह •वायद •ी। सभी सांसद, विधाय•, पदाधि•ारी दलितों •े घर रहने गए। तो साथ में बिस्तर, खानसामा, हलवाई, एसी, •ूलर, फोटो ग्राफर आदि ले गए। •ुछ •े दारू-मुगेü उड़ाने •ी भी खबरें आईं। सो आला•मान खफा। अब सोनिया-राहुल खुद रिपोर्ट जुटा रहे। ताç• •ांग्रेस •ा दलित प्रेम नौटं•ी न बने। सो अब •ांग्रेस गाइड लाइन बनाने •ी सोच रही। हर महीने •े पहले बुधवार •ो •ांग्रेस पदाधि•ारी गांवों में दलित चौपाल लगाएंगे। तो सांसदों •ा माहवारी विजिट भी अनिवार्य होगा। योजना सिर्फ यूपी में नहीं, अलबत्ता समूचे देश में लागू •रने •ा विचार। ताç• सभी •ांग्रेसी, मंत्री, विधाय•, सांसद आदि गांवों में रहें। जहां सिर्फ दलित नहीं, पिछड़ों •ा भी याल हो। पर सबसे जरूरी गाइड लाइन होगी। ताç• नेता टेंट, बिस्तर, खानसामा आदि न ले जा स•ें। पर क्या आजादी •े 62 साल बाद सही मायने में दलित उत्थान हो रहा? इतिहास पढ़, वर्तमान देख, भविष्य यही लग रहा। ए• थे दलित, जो आज भी हैं। और मौजूदा नेताओं •ी चली, तो •ल भी रहेंगे।
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06।10।2009
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