Thursday, October 8, 2009

तो क्यों ना दिल्ली वालों को बाड़ में डाल दें!

इंडिया गेट से --------- तो क्यों ना दिल्ली वालों को बाड़ में डाल दें! --------------- • संतोष कुमार ----------- अब बीजेपी में वेंकैया वाणी निकली। तो आडवाणी के बिना कोई वाणी कैसे पूरी हो। सो वेंकैया ने 2014 में बिन आडवाणी चुनाव लड़ने की राय जता दी। उन ने 2014 से पहले नया नेतृत्व ढूंढने की बात कही। यों वेंकैया वाणी में कोई नयापन नहीं। पर बयानबाजी का मकसद आडवाणी भी बखूबी समझ रहे होंगे। सो आडवाणी कुपित न हों, वेंकैया ने खुद को सगा बताने में भी कसर नहीं छोड़ी। बोले- आडवाणी को पंद्रहवीं लोकसभा के लिए विपक्ष क नेता चुना गया। अब उन पर ही निर्भर करता है, वह कब पद से हटते हैं। यों सुषमा स्वराज ने तो पांच साल का टर्म पूरा करने का खुल्लमखुल्ला एलान किया था। तो संघ वाले कुपित हो गए। सो वेंकैया ने नया फार्मूला निकाला- सबका भला हो, पर शुरुआत मेरे से हो। सो बात भी कह दी, आडवाणी को नाराज भी न किया। संघ की भृकुटि भी न तनी। वेंकैया यही तो चाह रहे। जैसे भी हों, फिलहाल गुटबाजी से बचें। वेंकैया की नजरें फिर अध्यक्ष की कुर्सी पर जमीं। वैसे भी ठीक पांच साल पहले इन्हीं दिनों वेंकैया कुर्सी से विदा हुए थे। जब 2004 में बीजेपी लोक सभा हारी। तत्काल बाद अक्टूबर में महाराष्ट्र की जनता ने भी भरोसा नहीं किया। तो वेंकैया नायडू पत्नी की बीमारी का हवाला दे अध्यक्षी आडवाणी को सौंप गए। पर सही मायने में तब भी बीजेपी की दूसरी पांत में जबर्दस्त उठापटक थी। वेंकैया को जेतली सरीखे नेता भाव नहीं दे रहे थे। सो वेंकैया ने कुर्सी छोड़ आडवाणी से बैठने की मनुहार की थी। अब पांच साल बाद वेंकैया उसी कुर्सी के लिए जोर-आजमाइश कर रहे। यानी महाराष्ट्र के चुनाव नतीजे बीजेपी में फेरबदल का अध्याय शुरू करेंगे। सो महाराष्ट्र की सत्ता हासिल करने को पूरी ताकत झोंक दी। बाकायदा वोट के दिन छुट्टी का भी एलान हुआ। पर लगे हाथ शर्त जोड़ दी गई। यानी जो सरकारी मुलाजिम वोट डालने नहीं जाएगा, उसकी छुट्टी रद्द मानी जाएगी। सैलरी में से पैसा कटेगा। यानी जबरन वोट डलवाने की तैयारी। कहीं ऐसा न हो, नेता अपने निकम्मेपन का ठीकरा आम वोटर के सिर फोड़ दे। और भविष्य में वोट न डालने वालों पर जुर्माने लग जाएं। राजनेता अब लोकतंत्र को मुट्ठी में करने की जुगत भिड़ा रहे। पर जब तक नेता अपने सुधरने का मापदंड तैयार नहीं करते। तब तक जबरन वोट की कोश्शिश कहां तक जायज। पर यह मुद्दा व्यापक बहस का। सो बात चुनावी समर की । चुनाव अभियान के आखिरी दौर में जुबानी जंग भी उफान पर। गुरुवार को राहुल ने पनवेल में चुनावी सभा की । तो नरेगा का राग खूब अलापा। भारत को दो हिस्सों में बांटा। पहला- बैकवर्ड इंडिया, दूसरा- शाइनिंग इंडिया। पहले का प्रहरी कांग्रेस को बताया। तो दूसरे को विपक्ष का साथी। राहुल बोले- हम संसद में गरीबों के लिए नरेगा लाए। तो विपक्ष ने पैसा जाया करने का आरोप लगाया। विपक्ष की यही आदत हो चुकी, गरीबों को पैसा देना इन्हें नहीं सुहाता। उन ने एक और पते की बात कही। बोले- सत्तर साल पहले देश में सभी गरीब थे। आज आधा देश तरककी कर रहा। तो क्या राहुल का मतलब यह, देश की बाकी गरीबी दूर करने के लिए कांग्रेस को और सत्तर साल चाहिए। पर राहुल बाबा किस विकास की बात कर रहे। इसका नमूना तो गुरुवार को देश की राजधानी दिल्ली में मिल गया। कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी पर लंबे अरसे से सवाल उठ रहे। पर सरकारी अमला सोया पड़ा था। अब कॉमनवेल्थ गेम्स फैडरेशन के अध्यक्ष माइक फेनेल ने मेजबानी छीनने की चेतावनी दी। तो समूचा तंत्र नींद से जागा। पर गुरुवार को कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर जो हुआ। लोकतंत्र के हित में तो कतई नहीं। तैयारियों से रू-ब-रू कराने के लिए 71 देशों के डेलीगेट्स का दौरा शुरू हुआ। तो सुबह के आठ बजे से शाम के सात बजे तक सभी अहम रोड मानो सील हो गए। पुलिस ने दो दिन पहले ही इश्तहार दे एडवाइजरी जारी कर दी। वाकई पुलिस-प्रशासन और अपनी सरकार ने निकम्मापन छिपाने को बढ़िया तरीका ईजाद किया। ट्रेफिक की बदहाली विदेशी मेहमान न देख सके । सो दिल्ली वालों को बाड़ में बंद करने की कोशिश। पर अभी तो शुरुआत हुई। खेल शुरू होने में सालभर बाकी। ऐसे कई ड्रामे होंगे, जब निकम्मी व्यवस्था के संचालक धौंस दिखा दिल्ली वालों को बाड़ में बंद करेंगे। तभी तो तैयारी का मौका-मुआइना विदेशी मेहमानों को कराया। पर मीडिया को भी पास नहीं फटकने दिया। अभी ऐसा हाल, तो 2010 में क्या होगा। क्यों न सरकार अभी से उम्दा बाड़ तैयार करे। जब तक दिल्ली में गेम्स हों, सभी दिल्ली वालों को बाड़ में ठूंस दें। यही होता है, जब किसी सरकारी अस्पताल में मंत्री का दौरा हो। तो मरीजों के बिस्तर पर झक सफेद चादर बिछ जाती। जैसे ही मंत्री गए, प्रशासन भेड़चाल शुरू कर देता। अब 70 साल में देश की राजधानी का यह विकास। तो राहुल बाबा ही बताएं। बाकी 70 साल में कैसा होगा विकास ? या फिर हर बार यही होगा, अपनी बदहाली छिपाने को आम आदमी को बाड़ में बंद कर दो। सो गुरुवार का वाकया देख होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम की वह चेतावनी याद आ गई। याद है ना, उन ने यही कहा था- दिल्ली वालो खुद से सुधर जाओ, वरना हम सुधार देंगे। सो लोक तंत्र में दिखावे की खातिर अपनी ही जनता पर चाबुक बरसाने की तैयारी। पर रंगा सियार कब तक शेर बना रहेगा। तैयारी की पोल तो एक प्रतिनिधि ने खोल ही दी। जब कहा- कुछ काम तो हुआ है। पर अभी बहुत बाकी। --------- 08।10।2009

3 comments:

  1. aapki rajnitik baato se bahut kuchh rajnitik uthapatak ka gyan hua.

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  2. बहुत बढ़िया लिखा आपने सच में ये नेता लोग को जनता का कोई ध्यान नहीं है अगर कोई बीमार है तो वो वहीँ मर जायेगा लेकिन ये लोग वी आई पी के लिए सड़के जाम करते रहेंगे और कुत्तों के जैसे अपनी दुम हिलाते रहेंगे

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