Thursday, October 29, 2009
इंडिया गेट से
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पड़ोस थर्रा रहा, हम
तू-तू, मैं-मैं में उलझे
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• संतोष कुमार
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राजधानी एक्सप्रेस दिल्ली पहुंच गई। ट्रेन पर नक्सलियों ने जो लिखा, जस का तस दिल्ली पहुंचा। पर खौफजदा मुसाफिरों ने व्यवस्था की कलई खोल दी। ट्रेन भुवनेश्वर से चली। तो खोजी कुत्तो के साथ सुरक्षा बल भी मौजूद थे। पर नक्सली बेल्ट शुरू होने से पहले जवान खड़गपुर में ही उतर गए। एक मुसाफिर ने खम ठोककर बार-बार यह बात दोहराई। ताकि शक की गुंजाइश न रहे। नक्सलियों ने ट्रेन बंधक तो बनाई। पर सुरक्षा बलों के पहुंचने से पहले ही ट्रेन छोड़ चले गए। अगर यह सच, तो सरकार पर कोई कैसे भरोसा करेगा। घने जंगलों के बीच मुसाफिर भगवान भरोसे रहे। पर सुध लेने वाला कोई नहीं। बुद्धदेव भट्टाचार्य रायटर्स में मीटिंग करते रहे। तो चिदंबरम शाम को दुबारा दफ्तर लौटे। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन जम्मू-कश्मीर में उद्घाटन की तैयारी में मशगूल रहे। तो ममता बनर्जी ने बुद्धदेव से बात करना भी गवारा न समझा। राजनीति की यह कैसी मिसाल। ममता ठहरीं रेल मंत्री। पर बंगाल की राजनीति सिर चढ़ गई। सो माओवादियों के खिलाफ तो कुछ न बोलीं। पर सीपीएम और बंगाल सरकार को देश के लिए खतरनाक बता दिया। लेफ्ट पर रेलवे की छवि बिगाड़ने का आरोप लगाया। राष्ट्रपति से बंगाल में अनुच्छेद 356 लगाने की मांग कर दी। सो बुधवार को राजधानी पर दिल्ली में खूब चिकचिक हुई। लेफ्ट और ममता के बीच माओवाद पर तू-तू, मैं-मैं हुई। तो प्रकाश कारत और सीताराम येचुरी ने ट्रेन हाईजैक को ममता की साजिश बता दिया। सवाल उठाया, माओवादियों के खिलाफ सुरक्षा बल की मुहिम की मुखालफत क्यों कर रही हैं ममता? पर ममता फिलहाल कांग्रेस की सहयोगी। सो कांग्रेस ने ममता पर आरोप को बेमानी बताया। पर लगे हाथ नसीहत भी दे दी। नक्सलवाद के खिलाफ मुहिम में आरोप-प्रत्यारोप से कुछ न होगा। अलबत्ता एक सुर में आवाज उठाने की जरूरत। पर कांग्रेस को गले में हड्डी फंसी। तो एक सुर की बात हो रही। जो भी सत्ता में होता, यही दलील। यों राजनीति में जिस दिन एकजुटता हो जाए, शायद देश की आधी समस्याएं निपट जाएं। पर अपने नेताओं की राजनीति का निचोड़ यही। सुर एक हो गया, तो फिर राजनीति काहे की। पर अहम सवाल, जब नक्सलवाद से निपटने में हम इतने लचर। तो सीमापार आतंकवाद से कैसे निपटेंगे? मामला पाकस्तान का हो, या चीन का। अपनी राजनीति में विचारधारा का मतभेद मनभेद में तब्दील हो चुका। फलां की विचारधारा हमसे नहीं मिलती। तो हम उसकी अच्छी सलाह भी क्यों मानें। पर इस मानसिकता से नुकसान तो देश का हो रहा। बुधवार को संघ प्रमुख मोहन भागवत दिल्ली में थे। मौका था तरुण विजय की किताब क्वइंडिया बैटल टू विनं के विमोचन का। पर पहले उन ने बीजेपी की कीमोथेरेपी पर सफाई दी। वाकई मीडिया ने बात का बतंगड़ बना दिया। भागवत से जयपुर में सवाल हुआ था। कुछ लोग बीजेपी को सर्जरी, तो कुछ मेडिसिन और कीमोथेरेपी की जरूरत बता रहे। तो भागवत ने सवाल दोहराते हुए यही कहा- बीजेपी को मेडिसिन की जरूरत, या कीमोथेरेपी की , या सर्जरी की , यह जांच कर बीजेपी खुद तय करे। फिर दिल्ली में राजनाथ ने भी चलते-चलते बात कर ली। भागवत के बयान का पता न था। पर कीमोथेरेपी की बात आई। तो हंसते हुए उन ने कहा- किसका दिमाग खराब हो गया है। पर बीजेपी बेचारगी के दौर से गुजर रही। सो मीडिया ने भी हाथ सेक लिया। पर बुधवार को भागवत ने सिर्फ इतना ही कहा- कभी-कभी मीडिया में ऐसा होता है। भागवत ने आडवाणी से भी भेंट की । राजनीति पर चर्चा हुई। पर भागवत की मानें, तो संघ नेतृत्व परिवर्तन की बात वन टू वन मीटिंग में नहीं करता। अलबत्ता सामूहिक चर्चा में अपना सुझाव देता। पर बीजेपी की बात तो होती रहेगी। भागवत ने वैचारिक शत्रुता पर जो कहा, वाकई काबिल-ए-गौर। चीन ने 1962 के बाद कोई युद्ध नहीं लड़ा। पर जीत की मुद्रा में हुंकार रहा। सो भारत को पुराने घाव भूलने होंगे। अब परिस्थितियां 1962 जैसी नहीं। सो बिना युद्ध युद्ध जीतने की नीति अपनानी होगी। तब हम क्यों हारे, जड़ों में जाकर कठोरता से मंथन की जरूरत। ताकी देश का भविष्य संवार सकें। भागवत ने सवाल उठाया। दूर के देशों का हमारे पड़ोसियों से बेहतर संबंध। पर हमारे क्यों नहीं? देश में बहस होनी चाहिए। भले विचारधारा अलग-अलग क्यों न हो। पर देशहित में आम सहमति बनाने की जरूरत। अब भागवत की बात सोलह आने सही। राजनीति में विचारधारा के नाम पर छुआछूत क्यों। जब जनता छुआछूत नहीं कर रही। लोकतंत्र में सत्ता ही सबकुछ नहीं। विपक्ष की मजबूती भी सत्ता से कम नहीं। तो फिर राजनीति का एक सुर क्यों नहीं बन रहा? नक्सली देश के भीतर चुनौती दे रहे। तो पड़ोसी देश पाक अपने ही जाल में उलझता जा रहा। शायद ही कोई ऐसा दिन बीत रहा। जब पाक में धमाके न होते हों। बुधवार को पेशावर थर्रा उठा। एक सौ के करीब लोग मारे गए। तड़क काबुल में तालिबानियों ने यूएन गेस्ट हाउस पर कब्जा कर लिया। ढाई घंटे ऑपरेशन चला। सो पड़ोसी देश की अस्थिरता अपनी फिक्र का विषय। अगर मौजूदा हुकमरान के रहते शांति नहीं। तो फर्ज करो, पाकी की सत्ता तालिबानियों ने हथिया ली। तो क्या होगा। सो वोट की राजनीति छोड़ समस्याओं का मुकाबला एकजुटता से करना होगा।
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२८.१०.२००९
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