Wednesday, November 4, 2009
इंडिया गेट से
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चोली-दामन जैसा रिश्ता
राजनीति और भ्रष्टाचार का
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तो शरद पवार ने फिर मुह खोला। सो न जाने महंगाई अब कहाँ जाकर थमेगी। ख़ुद पवार को भी मालूम नहीं। सो महंगाई का भूत दिखाकर कट लिए। कभी मंदी की दुहाई, तो कभी पैदावार में कमी की दलील। पर इन नेताओं से यह पूछकर देखो, कौन सा महकमा मलाईदार तो चट बता देंगे। मलाईदार महकमों का मामला न होता तो महाराष्ट्र में सरकार न बन गई होती। पर चुनावी खर्च सूद समेत निकालना जरूरी सो कांग्रेस-एनसीपी मलाई छोड़ने को राजी नहीं। अब गवर्नर ने 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया। तो कमोबेश शायद अब कुछ जुगाड़ फिट हो जाए। पर जनता की गाढ़ी कमाई की लूट कैसी मचेगी, यह मधु कोड़ा से पूछकर देख लो। अमीर बनने का सबसे शॉर्टकट तरीका बन चुकी राजनीति। मधु कोड़ा तो फर्श से अर्श तक पहुंचने का ताजा उदाहरण। पर पूछताछ हुई तो बीमार पड़ गए। पर छापे में अहम दस्तावेज जांच एजेंसी के हाथ लगे। सो बुधवार को इनकम टेक्स विभाग ने कोड़ा का घर सील कर दिया।जब झारखंड राज्य बना, तो बीजेपी कोटे से मंत्री थे। पर राज्यसभा चुनाव में पैसा लेकर क्रॉस वोटिंग की तो बीजेपी ने निकाल दिया। पर दूसरा चुनाव निर्दलीय जीते तो कांग्रेस-लालू-शिबू ने मिलकर सीएम बना दिया। सो कोड़ा ने जमकर कारगुजारी दिखाई। किसको कितना शेयर मिला, पता नहीं। पर अकेले कोड़ा ने चार हजार करोड़ जमा कर लिए। मंत्री-सीएम रहते कोड़ा दुबई-बैंकाक भी घूम आए। पर केंद्र सरकार को भनक भी न लगी। कहीं ऐसा तो नहीं, राजनीतिक शेयर मिल गया। तो सरकारी तंत्र ने आंख मूंद ली हो। कोड़ा इलाज के बहाने जिन देशों में गए। उन देशों से ही अकूत संपत्ति की पोल खुल रही। अब झारखंड चुनाव हो रहे। तो कांग्रेस खुद को बेदाग दिखाने की कोशिश में कोड़ा पर शिकंजा कसवा रही। पर यह तो वही बात, चोरी में भी साथ दिया। अब चौकीदार बन जनता को बरगला रही। यों कोड़ा तो सिर्फ भ्रष्टाचार की कड़ी। राजनीति और भ्रष्टाचार का तो चोली-दामन जैसा रिश्ता बन चुका। वरना चार आने का नेता यों ही करोड़पति नहीं बन जाता। फिर भी अपना इरादा किसी पर उंगली उठाने का नहीं। पर राजनेताओं का इतिहास-भूगोल याद करा दें। ताकि आप खुद उनका क्वनागरिक शास्त्रं तैयार कर सकें। हाजी मस्तान पोर्टर से स्मगलर, और स्मगलर से नेता बन गए। भजनलाल 1950 के दशक में चुन्नियां बेचा करते थे। चार आने का टिकट नहीं खरीद पाने की वजह से धर लिए गए थे। फिर किस्मत ऐसी बदली, चार बार सीएम, दो बार केंद्र में मंत्री और अब हरियाणा में किंगमेकर बने हुए। ओमप्रकाश चौटाला साधारण किसान परिवार से थे पर सीबीआई की नजर में 2000 करोड़ के मालिक। बूटा सिंह अकाली पत्रिका अखबार के दफ्तर में पानी पिलाने का काम करते थे। पर देश के होम मिनिस्टर की कुर्सी तक पहुंच गए। बेटा हाल ही में एक करोड़ की रिश्वत लेते धरा जा चुका। नरसिंह का झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड। दिल्ली हाईकोर्ट ने तीन साल की सजा दी। पर सुप्रीम कोर्ट ने संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला बताकर बरी कर दिया। पंडित सुखराम के घर संचार घोटाले में छापा पड़ा। तो मंत्री के सरकारी आवास से साढ़े चार करोड़ मिले। पर वही सुखराम कभी मंडी के स्कूल में क्लर्क थे। दिल्ली आए, तो सर्वेट क्वार्टर में रहे। उस जमाने में पंद्रह रुपए की साइकिल आती थी। पर सुखराम की हैसियत से बाहर थी। यों सुखराम पहले नेता हुए, जिन्हें भ्रष्टाचार में सजा मिली। अब लालू यादव को ही लो। बिहार में साढ़े नौ सौ करोड़ का चारा घोटाला सबको चौंकाने वाला। कर्नाटक में एचडी देवगौड़ा के परिवार की आधिकारिक संपत्ति साढ़ सात सौ करोड़। चुनाव आयोग को हलफनामे में इतना बताया। तो बाकी भगवान ही जाने। पर कभी देवगौड़ा जूनियर इंजीनियर के नीचे ड्राफ्टमैन हुआ करते थे।बीजेपी के येदुरप्पा की मुसीबत बने रेड्डी बंधुओं की संपत्ति सात हजार करोड़। जो सिर्फ 2004 से 2009 के बीच बनी। आंध्र में वाईएस राजशेखर रेड्डी के बेटे जगनमोहन के अकेले की संपत्ति पांच सौ करोड़। कहां से आए इतने पैसे? कोई निचले स्तर से उठकर देश की बागडोर संभाले, तो गौरव की बात। पर संपत्ति भी देश जैसी विशाल हो जाए, तो क्या कहेंगे? तमिलनाडु में जयललिता हों या करुणानिधि। जयललिता ने अपनी आत्मकथा में खुद लिखा। जब उनकी मां की मौत हुई, तो अंतिम संस्कार को पैसे न थे। लाश घर में पड़ी थी, पर वह फिल्म की शूटिंग में गईं। ताकि 51 रुपए का बंदोबस्त हो सके। आज जयललिता क्या हैं, बताने की जरूरत नहीं। बीजेपी में प्रमोद महाजन के शुरुआती दिन मुफलिसी में गुजरे। पर राजनीति में आए, तो संपत्ति बेहिसाब हो गई। ये सारे उदाहरण तो सिर्फ एक झलक। कई सफेदपोश तो ऐसे, जिन पर जांच एजेंसी हाथ डालने की हिमाकत भी नहीं कर सकती। पर उनका इतिहास और वर्तमान खुद हकीकत बयां कर रहा। आम आदमी तो दो जून की रोटी जुटा ले, तो संतोष की सांस लेता। पर राजनेताओं का पेट भरता ही नहीं। सुरसा की तरह मुंह फैलाए बैठे। करोड़ों-करोड़ों निगल रहे, पर डकार का नाम नहीं। सो भ्रष्टाचार पर नकेल, सिर्फ कहने की बात।
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०४/११/2009
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