बेगानी शादी में दीवाने 'अब्दुल्लों' को आखिर बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ा। शोएब-आयशा में समझौता हो गया। आखिर शोएब ने तलाक, तलाक, तलाक कह दिया। तो सानिया-शोएब के निकाह में जबरन बाराती बनने को बेकरार अपनी बिरादरी वालों को मायूसी हाथ लगी। सो भले सानिया मिर्जा का घर न सही, चैनलों के दफ्तरों में ही महफिल सज गई। किसी ने शोएब को झूठा कहा। तो किसी ने तलाकनामे को आधार बना अपनी खबरों को पुष्ट करना शुरु कर दिया। शोएब-आयशा एपीसोड खत्म हुआ, तो चैनलों ने विशेष एपीसोड बना दिए। दिन भर इन्हीं खबरों को ऐसे परोसा। मानो, देश में और कोई गम ही नहीं। मंगलवार को नक्सली हमले में अपने 76 जवान शहीद हुए। तो बुधवार को बिहार से एक बड़ी खबर आई। पर अपने चैनलों के लिए महज नीचे की पट्टी पर चलने वाली खबर रही। पटना की एक अदालत ने 16 दबंगों को फांसी और आठ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। मामला पहली दिसंबर 1997 का था। भूमि मामले को लेकर दबंगों की बनाई रणबीर सेना ने 58 दलितों का नरसंहार कर दिया था। जिनमें 27 महिलाएं और 16 बच्चे भी शामिल थे। बिहार के लक्ष्मणपुर बाथे गांव में रणबीर सेना वाले सोन नदी पार कर घुसे। जिस नाव से नदी पार की, उसे चलाने वाले मल्लाह को भी मार दिया। फिर आधी रात के करीब गांव में घुस लोगों को बाहर निकाला और गोलियों से भून दिया। तीन घंटे चले इस कत्ल-ए-आम ने पूरा गांव ही उजाड़ दिया था। तबके राष्ट्रपति के.आर. नारायणन इस घटना से इतने आहत हुए कि उन्होंने इसे राष्ट्रीय शर्म करार दिया था। अब बुधवार को उस पर ऐतिहासिक फैसला आया। तो अपने चैनलों के लिए यह शायद बड़ी खबर नहीं थी। आईपीएल में कोई टीम जीते या हारे, तो फौरन लाइव होने लगता, ब्रेकिंग न्यूज चलने लगती। क्या भूमिहीन मजदूरों को मिले न्याय में कुछ ब्रेकिंग नहीं? क्या संजय दत्त, और सिद्धू के केस ही मीडिया के तराजू पर खरी उतरती? अब दांतेवाड़ा की घटना ही लीजिए। बुधवार को जगदलपुर में शहीदों को विशेष श्रद्धांजलि दी गई। पर दिन के वक्त चैनलों ने शोएब-आयशा-सानिया विवाद को ही फोकस किया। क्या नक्सलियों का इतना बड़ा हमला अपनी मीडिया के लिए एक दिनी घटना भर? प्राइम टाइम में चैनलों ने नक्सली हमले से जुड़ी खबरें भी परोसी। पर जरा नमूना देखिए। एक चैनल ने पांच हैडलाईन दिखाए, जिसमें से तीन सिर्फ और सिर्फ शोएब-आयशा-सानिया से जुड़े थे। श्रद्धांजलि और होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम का एलान चौथी खबर थी। यों एकाध चैनल ऐसा भी, जिसने ईमानदारी दिखाई। नक्सलवादी हमले और बाद की कहानी को विस्तार से परोसा। नक्सलियों के हमले को चिदंबरम ने सरकार के खिलाफ युद्ध तो करार दिया। पर सेना के इस्तेमाल से इनकार कर गए। इंटेलीजेंस की नाकामी को भी नकारा। तो सवाल, आखिर चूक कहां हुई? अपने सुरक्षा बलों पर जंगल में छुपकर रहने वाले नक्सली भारी कैसे पड़े? नक्सलियों को ट्रेनिंग कहां से मिल रही? नक्सलियों को हथियार और बम तैयार करने के साजो-समान कहां से सप्लाई हो रहे? पर सरकार को कटघरे में खड़ा करने और बार-बार की कुर्बानी का हिसाब दिलाने के बजाए कुछ चैनलों को शोएब-आयशा-सानिया विवाद में मजा आ रहा था। तो क्या टीआरपी की होड़ में चैनल वाले सिर्फ चॉकलेटी चेहरों को ही दिखाएंगे? क्या देश के लिए खून बहाने वाले जवानों की कोई कीमत नहीं? यों एकाध चैनल ने मानवीय मूल्यों से जुड़ी खबरों को फोकस जरुर किया। पर तब, जब हैदराबादी ड्रामे का परदा गिर गया। सो मीडिया के लिए मंथन की घड़ी, आखिर चौैथा स्तंभ किसके लिए काम कर रहा? अगर मीडिया ने इतना शोर-शराबा न मचाया होता। तो मामला कूटनीतिक स्तर तक नहीं पहुंचता। पर पाक हुकूमत ऐसे मामलों में टांग अड़ाने से कहां पीछे रहने वाली। अब कोई पूछे, शोएब-आयशा-सानिया एपीसोड में देश की बाकी जनता का क्या हित रहा? तीनों परिवार का निजी मामला था। सो निजी तरीके से निपटा लिए। अब पूरे एपीसोड में शोएब जीता या आयशा, यह कहने नहीं, समझने की बात। आयशा ने शोएब की पत्नी होने का दावा किया था। शोएब ने आयशा से निकाह कबूला, पर माहा मानकर। अब तलाकनामे को ही देख लो। शोएब ने माहा और आयशा दोनों नाम को तलाक दिए। आयशा के परिवार ने एफआईआर वापस ले ली। अब आप ही तय करिए, कौन जीता-कौन हारा। इस पूरे विवाद में इतना भर हुआ कि दोनों पक्षों की बात रह गई और बुद्धू बना अपना मीडिया। अब सानिया और शोएब का निकाह होगा। और चैनल वाले बहस का मुद्दा बनाएंगे। इससे भी मन नहीं भरा, तो निकाह के दिन जबरन तांक-झांक की कोशिश होगी। अगर शादी कवरेज का मौका मिल गया। तो फिर चैनल वाले रिसेप्शन-हनीमून और बच्चे होने तक की कहानी दिखाने को बेताब होंगे। इतना ही नहीं, सानिया-शोएब का रिश्ता कब तक टिकेगा, इसकी भी कहानी गढ़ी जाने लगी। कहीं सट्टे लग रहे, तो अपने कुछ ज्योतिषी पोथा खोलकर बैठ गए। अब चैनल वालों को कुछ नहीं मिला, तो इन्हीं ज्योतिषियों को स्टूडियों में बुला शुरु हो जाएंगे। क्या यही अपनी विजुअल मीडिया का पैमाना? मुंबई हमला हो या निजी जिंदगी में तांक-झांक का मुद्दा विजुअल मीडिया हमेशा सवालों के घेरे में रहा। मुंबई हमले के बाद न्यूज ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन ने खुद की आचार संहिता तो बना ली। पर जिम्मेदारी तय नहीं की। ----------
07/04/2010
Wednesday, April 7, 2010
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पता नहीं क्यों मीडिया सुधरने का नाम नहीं ले रहा।
ReplyDeleteअच्छी खबर ली। खबर लेते रहें। खबरदार भी करते रहें।
ReplyDeletebazaarwaad ki shikanje me hai humara media
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