जब 2009 में लोकसभा चुनाव के नतीजे आए, तो खुद कांग्रेस भी भौंचक रह गई थी। भाजपा का भौंचक होना तो लाजिमी ही था, क्योंकि नतीजों से पहले पार्टी ने सपनों का बुर्ज खलीफा तैयार कर लिया था। तब दोनों पक्षों में चुस्की लेने वाले नेताओं ने यह कहते हुए मजाक उड़ाया, हादसा हो गया। सचमुच महंगाई, महामंदी, बेरोजगारी जैसी विकट समस्या के बावजूद मनमोहन सरकार की सत्ता में वापसी हो गई, तो भले हादसा नहीं, पर हैरानी पैदा जरूर कर गई। महंगाई तब ऐसे आगे बढ़ी, जैसे सुनामी की लहर हो। भले सुनामी की लहर बाद में कमजोर पड़ जाती, पर महंगाई कमजोर नहीं, अलबत्ता महंगाई कंट्रोल करने की बात करने वाले पस्त होकर बैठ गए। मंदी से भारत उबरा जरूर, पर आम आदमी का रस निचोड़ गया। बेरोजगारी इस कदर बढऩे लगी थी, लोगों के वेतन में बढ़ोतरी तो दूर, नौकरियां छिनने लगी थीं। तब खुद प्रणव मुखर्जी ने नियोक्ताओं को फार्मूला दिया था, नौकरी मत छीनो, भले वेतन घटा दो। यानी विपक्ष की अंदरूनी लड़ाई से इतर ऐसा कोई भी फैक्टर नहीं, जो तब सरकार के पक्ष में था। फिर भी मनमोहन सत्ता में लौटे, तो कहने वालों ने हादसे की संज्ञा दे दी। लेकिन शनिवार को मनमोहन सरकार की दूसरी पारी का पहला साल पूरा हुआ, जश्न की तैयारी थी, तभी विमान हादसे ने रंग फीका कर दिया। हादसे से सरकार का पहला साल पूरा हुआ, हादसे की छाया में ही दूसरे साल की शुरुआत। लेकिन क्या आज के हादसे के बाद भी सरकार की तंद्रा टूटेगी? नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने 15 मई को जब मंगलोर हवाई अड्डे के इस रन-वे का उद्घाटन किया था, तो खुद से आगे बढक़र माना था, अभी रन-वे की लंबाई अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक नहीं, सो अंतर्राष्ट्रीय विमानों के उड़ान भरने और उतरने के हिसाब से तैयार करने के लिए एक हजार फीट लंबाई बढ़ानी होगी, जिसके लिए वह सौ करोड़ की योजना मंजूर कर रहे हैं। अब हफ्ते भर बाद ही हादसा हो गया, तो सवाल, क्या रन-वे में सुधार के लिए इस हादसे का इंतजार था? दुर्घटना में किसकी गलती, यह तो जांच की बात, लेकिन क्या आज का हादसा हम, आप और हमारी सरकार को कल भी याद रहेगा? या फिर राजनीति का एडहॉकपन ही चलता रहेगा। अपनी व्यवस्था ने हमेशा पानी सिर से निकलने के बाद ही तो कदम उठाया है। महंगाई बढ़ी, तो फिक्र की, रोजगार न मिलने से युवा राह भटक गए, तो अब उन्हें वापस लाने के लिए जड़ों तक जाने की फिक्र। चुनाव हो, तो कर्ज माफी की फिक्र, वरना किसान आत्महत्या करता रहे, आम आदमी पिसता रहे, कोई फिक्र नहीं करता। अब मंगलोर विमान हादसे की जांच को कोई दिशा भी नहीं मिली कि मानवीय भूल की बात तेजी पकडऩे लगी। यानी पायलट पर दोष मढऩे की तैयारी, जो अपनी सफाई देने के लिए जिंदा होकर नहीं लौट सकता। लेकिन सवाल, जब हफ्ते भर पहले मंत्री ने रन-वे को अंतर्राष्ट्रीय मानक के मुताबिक नहीं माना, तो मंत्री-सीएम और समूचा अमला फीता काटने क्यों पहुंच गया? लेकिन हादसे पर सियासत भले आज नहीं, कल शुरू जरूर होगी। नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल नपे-तुले अंदाज में नैतिक जिम्मेदारी ओढ़ेंगे, इस्तीफे की वही परंपरा निभाएंगे, जो चिदंबरम-जयराम रमेश ने निभाई। लेकिन आखिर में वही होगा, जो अपनी व्यवस्था की लकीर। आज और कल हादसे की बात होगी, फिर जांच के बहाने फाइल बंद और अगले हादसे का इंतजार। यानी महंगाई से त्रस्त जनता के लिए मौजूदा सरकार की वापसी शायद किसी हादसे से कम नहीं। सो हादसे से शुरू, हादसे से पहले साल का अंत, अब अगले हादसे का इंतजार।
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22/05/2010
Saturday, May 22, 2010
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