नक्सलवाद को शह, अलगाववाद को मरहम, कॉमनवेल्थ पर कारीगरी। मंगलवार को मनमोहन सरकार यही करती दिखी। ममता बनर्जी की लालगढ़ रैली पर संसद में हंगामा बरपा। एक तरफ ऑपरेशन ग्रीनहंट, तो दूसरी तरफ ममता की छांव पर सवाल उठा। तो प्रणव-पृथ्वीराज ने ममता से जवाब तलब करने का भरोसा दिया। अब नक्सलवाद पर ममता की चाल मनमोहन की मुसीबत बनी। सो पीएम क्या सफाई देंगे, यह बाद की बात। पर कश्मीर को लेकर दो महीने बाद पीएम ने मंगलवार को चुप्पी तोड़ी। सर्वदलीय मीटिंग की ओपनिंग स्पीच से ही अवाम को भी संबोधित किया। घाटी के हालात पर चिंता जताई। नई शुरुआत पर जोर देते हुए युवाओं से स्कूल-कालेज जाने की अपील की। बोले- खून-खराबे का सिलसिला अब खत्म होना चाहिए। अब कोई मासूम जानें न जाएं। उन ने रोजगार का भरोसा दिलाया। बुनियादी ढांचे को तरजीह देने की बात कही। अपने आर्थिक सलाहकार सी. रंगराजन की रहनुमाई में कमेटी भी बना दी। अब रोजगार और अमन की बात में किसी को एतराज नहीं। पर एक बार फिर आम्र्ड फोर्सेज स्पेशल एक्ट को खत्म करने का इरादा जतला दिया। बोले- जम्मू-कश्मीर पुलिस को खुद ही जिम्मेदारी लेनी होगी। हम अवाम का ख्याल समझते हैं। पर पूरे संबोधन में सुरक्षा बलों के लिए सिर्फ एक लाइन कही। सुरक्षा बलों का मनोबल न गिरे। यानी अलगाववादियों के सामने नतमस्तक दिख रही सरकार। फिर भी हालात सुधरेंगे, कहना मुश्किल होगा। सर्वदलीय मीटिंग में पीडीपी फिर नहीं पहुंची। अब पीएम का मरहम कितना कारगर, यह तो दो-एक दिन में दिख जाएगा। सो बात कॉमनवेल्थ पर कारीगरी की। मंगलवार को लोकसभा में खेल मंत्री एम.एस. गिल ने जवाब दिया। तो बेटी के बाप जैसी लाचारी ही दिखाई। कहा- जब इतना बड़ा स्वयंवर रचा लिया, तो अब सवाल इज्जत का। सो बीती ताहि बिसार दे का मंत्र थमा दिया। यानी फिलहाल गोल-गपाड़े की बात छोड़ दो। सिर्फ खेल और खिलाडिय़ों पर फोकस हो। पर कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद होगा क्या? तब तक तो सारे कागज दुरुस्त हो चुके होंगे। अपने कलमाड़ी की कारीगरी ही देख लो। कैसे शुरुआत में मीडिया को लीगल नोटिस की धमकी दे रहे थे। पर जब विदेश मंत्रालय और लंदन के अपने उच्चायोग ने पल्ला झाड़ लिया। तो कलमाड़ी फर्जीवाड़े में उलझ गए। सो अब सांसदों को चिट्ठी लिख सफाई दे रहे। क्वींस बेटन में 13.13 करोड़ खर्च का बजट मंजूर हुआ था। पर उन ने महज 5.75 करोड़ में ही समारोह निपटा दिया। यानी कलमाड़ी चिट्ठी के जरिए दिखा रहे, कितने बचतखोर इनसान। पर जो दिल्ली सडक़ों पर अवाम ने खुली आंखों से देखा, उसका क्या। महीने में कम से कम दो बार तो पत्थर उखड़ते और लगाए जाते रहे। कॉमनवेल्थ में कलमाड़ी एंड कंपनी से लेकर शीला सरकार और खेल मंत्रालय बेदाग नहीं। मंगलवार को गिल ने जांच की बात भले कही, पर समूचे जवाब में बचाव करते दिखे। स्टेडियम के पुनर्निर्माण में बढ़े खर्च को जायज ठहराया। बोले- वक्त के साथ कंस्ट्रक्शन कॉस्ट भी बढ़ी। खुद कबूला- 1300 करोड़ का प्रोजैक्ट 2903 करोड़ तक पहुंच गया। यह भी कबूला- स्टेडियम के जितने काम हुए, महज दो साल में हुए। अब आप ही बताओ, इस बढ़े खर्च के लिए दोषी कौन? साल 2004 से कोई बीजेपी की सरकार नहीं। खुद मनमोहन पीएम। स्टेडियम की खस्ता हालत पर भी गिल की सफाई सुनिए। जब कोई घर बनाता है, तो बीवी भी छह महीने तक नुस्ख निकालती रहती है। सो कुछ नुस्ख हैं, पर गंभीर नहीं। हफ्ते में मलबा हट जाएगा, एक महीने में सब दुरुस्त हो जाएगा। पर किसकी मानेंगे आप। जब दिल्ली बारिश में ठहर गई थी, तो पिछले महीने शीला ने खबरनवीसों को चुनौती दी थी- दस अगस्त की शाम में आकर सवाल पूछिएगा। यानी दस अगस्त तक मलबा हटाने का काम पूरा होना था। पर अब यह डेडलाइन 31 अगस्त हो गई। कॉमनवेल्थ की डेडलाइन पता नहीं कौन सा अमृत पीये बैठी, जो कभी डेड नहीं हो रही। पर शीला के सच की पोल खुली, तो मंगलवार को ही उनके सांसद बेटे संदीप की दहाड़ याद आ गई। एम.एस. गिल के जवाब से खफा विपक्ष ने सदन से वाकआउट किया। तो संदीप बोले- सच सुनने ही हिम्मत नहीं थी, सो बीजेपी भाग गई। पर कोई पूछे, शीला खुद दस अगस्त को मीडिया के सामने क्यों नहीं आईं? क्यों चीफ सैक्रेट्री को भेज दिया? पर बात गिल की, जिन ने 1982 के एशियाड जैसी कमांड न होने पर चिंता जताई। कहा- 1982 में राजीव के नीचे बूटा, और बूटा के नीचे 25 अफसर। कमांड की अच्छी कड़ी थी। पर अबके सारी जिम्मेदारी ऑर्गनाइजिंग कमेटी की। अब कोई पूछे, सरकार ने पहले कमान क्यों नहीं संभाली? आखिरी वक्त में क्यों हाथ-पैर मार रही। देश की इज्जत की खातिर ऑर्डीनेंस लाकर कमान क्यों नहीं ली? पर गिल संसद में जवाब देने कहां आए थे। वह तो जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में बने टनल में घोड़े दौड़ाते दिखे। बोले- भगवान ने मुंह आगे की ओर दिया। सो आगे की ओर ही देखना चाहिए। कुछ कमियां होंगी, तो बाद में देखेंगे। यानी पूरी बहस के बाद सरकार ने माना, कॉमनवेल्थ में कोढ़, खाज, खुजली सभी बीमारियां। पर जैसा भी है, अब अपना। सो अब आगे बढऩा ही होगा। मीडिया और विपक्ष को गिल ने नसीहत दी- देश की सर्चलाइट खिलाडिय़ों पर लगाओ, ताकि हमारा नाम ठीक रहे। आखिरी वक्त में सरकार को खिलाडिय़ों की सुध। गिल ने दो-चार खिलाडिय़ों के नाम गिना यही अपील की। यानी 'वेल्थ' यानी भ्रष्टाचार पर 'कॉमन' खेल कर गई सरकार।
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10/08/2010
Tuesday, August 10, 2010
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