रहीम का एक दोहा है- बड़े बड़ाई ना करें, बड़े न बोलें बोल। रहिमन हीरा कब कहे, लाख टका मा मोल। पर अपने राजनेता जनता को ईवीएम का बटन दबाने के सिवा कोई हक नहीं देना चाहते। सो मानसून सत्र में किसका मान बढ़ा और किसका नहीं, यह खुद ही तय कर लिया। बीजेपी ने तो बेहिचक कह दिया- संसद सत्र में विपक्ष के बिना सरकार सून रही। यानी जहां-जहां बीजेपी ने साथ दिया, सरकार आगे बढ़ी। जहां अड़ंगा डाला, पीछे हट गई। पर संसदीय कार्य मंत्री पवन बंसल भी पलटवार करने से नहीं चूके। बोले- लोकसभा में 45 घंटे, राज्यसभा में 35 घंटे हंगामे में बरबाद हुए। फिर भी लोकसभा में बीस और राज्यसभा में दो बिल पारित कराए। यों सत्तानशीं बंसल के जवाब से कोई हैरत नहीं। सत्ता में आने के बाद राजनीतिक दल जनता के प्रति उदासीन हो ही जाते। पर विपक्ष का आत्ममुग्ध होना कितना न्यायोचित? सत्र निपटा, तो बीजेपी के दोनों नेता सुषमा स्वराज और अरुण जेतली उपलब्धि का पिटारा खोलकर बैठ गए। कहा- मानसून सत्र का निचोड़ यही, हम जीते, सरकार हारी। सुषमा बोलीं- सरकार के लिए यह सत्र रेफर एंड डेफर वाला रहा। जहां हमने साथ दिया, सरकार ने बिल पारित कराया। जहां विरोध किया, सरकार ने बिल वापस ले लिया। बतौर विपक्ष बीजेपी ने अपनी भूमिका पर आत्मसंतोष जताया। कहा- हमने सरकार को कॉमनवेल्थ, भोपाल गैस कांड, एटमी जनदायित्व बिल पर घेरा। जहां सरकार ने हमारी बात मानी, समर्थन दिया। और जहां सरकार और अन्य विपक्षी दलों ने बीजेपी का साथ नहीं दिया, वहां भी हम अपनी बात पर डटे रहे। यानी अगर बीजेपी की सारी दलील मान लें, तो मानसून सत्र में वही हुआ, जो बीजेपी ने चाहा। तो सवाल- आम आदमी को महंगाई से निजात क्यों नहीं दिला पाई? क्यों नियम 184 और कामरोको प्रस्ताव से हटकर सरकारी प्रस्ताव के आगे घुटने टेके? जम्मू-कश्मीर की बहस पर मंत्री का जवाब क्यों नहीं ले पाई? भूमि अधिग्रहण पर यूपी के किसानों ने 15 अगस्त के दिन गोलियां खाईं। पर विपक्ष ने सिर्फ संसद घेराव कर अपनी चादर क्यों फेंक दी? क्यों नहीं किसानों के लिए आर-पार की बात हुई? क्यों नहीं मौजूदा सत्र में ही भूमि अधिग्रहण बिल लाने की रार ठानी? बिल तो 2007 से ही तैयार। क्यों नहीं एटमी जनदायित्व बिल जैसी रार ठानी? क्या बराक ओबामा को खुश करने के लिए ही सरकार से हाथ मिलाया? भोपाल गैस त्रासदी की चर्चा से क्या निकला? सरकार ने तो दो-टूक कह दिया- किसके फोन से एंडरसन को छोड़ा और भगाया गया, इसका रिकार्ड नहीं। फिर भी बीजेपी ने एटमी जनदायित्व बिल पर इतनी जल्दबाजी क्यों होने दी? अगर बीजेपी चाहती, तो इसी बिल की एवज में आम आदमी की खातिर डील करती। पहले भूमि अधिग्रहण बिल लाने और महंगाई पर अंकुश की बात करती। पर विपक्ष ने ऐसा नहीं किया। सो बीजेपी मानसून सत्र को अपनी जीत बता इतनी आत्ममुग्ध क्यों, यह वही जाने। पर संसद तो लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर। संसद में किसने कैसी भूमिका निभाई, किसको कितने नंबर मिले, यह तय करने का हक जनता को। पर सरकार हो या विपक्ष, खुद ही हार-जीत तय कर रहे। सचमुच सरकार और विपक्ष की इस हार-जीत की लड़ाई में आम आदमी ठगा महसूस कर रहा। मानसून सत्र तो बीत गया, पर महंगाई लगातार डेंगू सा डंक मार रही। अब जरा हार-जीत की जंग में दोनों पक्षों का एक नमूना देखिए। मंगलवार को राज्यसभा में एजूकेशनल ट्रेबुनल बिल अटक गया। कांग्रेस के ही केशव राव ने मोर्चा खोला। तो बाकी विपक्ष भी उठ खड़ा हुआ। पर कपिल सिब्बल बिल पर वोटिंग को अड़ गए। सो संसदीय कार्य मंत्री पवन बंसल ने फौरन बात संभाली। सिब्बल को मनाने की कोशिश की। पर सिब्बल नहीं मान रहे थे। आखिर में बिल वापस लिया और गुस्से में सदन से बाहर निकल गए। सिब्बल की नाराजगी ऐसी, संसदीय कार्य मंत्री के फ्लोर मैनेजमेंट पर जेतली-सुषमा सरीखे सवाल उठा दिए। बुधवार को तो सिब्बल ने बाकायदा पीएम से मिल बंसल की शिकायत भी कर दी। पर बंसल ने भी जवाब देने में देर नहीं की। फ्लोर मैनेजमेंट को सिर्फ अपनी नहीं, बिल पेश करने वाले मंत्री की भी जिम्मेदारी बताई। अब सिब्बल बनाम बंसल में जीत सिब्बल की तो नहीं हुई। असल में जिस बिल पर सरकार में ही जंग छिड़ी, वह मामला सीधे राहुल गांधी से जुड़ा। स्टेंडिंग कमेटी की सिफारिशों को सिब्बल ने नजरअंदाज कर बिल पेश किया। इसी कमेटी में राहुल गांधी भी मेंबर। सो केशव राव ने कड़ा एतराज जताया। विपक्ष के नेता अरुण जेतली सिब्बल के घमंड से तो आहत बैठे ही थे। सिब्बल सहयोग मांगने के लिए विपक्ष के नेता के पास खुद नहीं गए। अलबत्ता एक अफसर भेज दिया। अब नेहरू-गांधी परिवार का मामला हो, तो सिब्बल की क्या बिसात। सो बंसल ने पीएम से हुई शिकायत की परवाह नहीं की। सिब्बल के धुर विरोधी जनार्दन द्विवेदी ने भी बंसल के सुर में सुर मिलाया। कहा- लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का हक। केशव राव ने कुछ गलत नहीं किया। अब जरा इसी बिल पर विपक्ष की भूमिका देखिए। जेतली-सुषमा ने सरकार के फ्लोर मैनेजमेंट पर सवाल तो उठाया। पर खुद बीजेपी का यह कैसा मैनेजमेंट, जो लोकसभा में बिल पास हो गया, राज्यसभा में अटक गया। यों सुषमा बोलीं- लोकसभा में हमारे पास नंबर कम थे। पर विपक्ष ने पहले ही राज्यसभा में अटकाने की धमकी दे दी होती, तो बिल राज्यसभा तक पहुंचता ही क्यों। पर अब बीजेपी भागने का रास्ता ढूंढ रही।
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01/09/2010
Wednesday, September 1, 2010
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