'हू इज द फादर ऑफ करप्शन?' तमाम सर्च इंजनों पर नजर फिराते दिन निकल गए। माउस क्लिक करते-करते उंगलियां दुख गईं। पर इस सवाल का जवाब नहीं मिला। सो आखिर में यही निष्कर्ष निकाला, भ्रष्टाचार भी आस्था का विषय। एक ऐसी आस्था, जो सभी मजहबों से ऊपर। यों भ्रष्टाचार कोई देवी या देवता, यह साफ नहीं। पर दोनों में से जो भी हों, सबके लिए पूजनीय। सचमुच 'जेब' से भ्रष्टाचार की जय बोलो, तो सारे काम चट हो जाते। काम कराने वालों को भी तकलीफ नहीं, काम करने वाले भी धन मिलने के बाद तन-मन से काम कर देते। पर कहीं जेब पर दिल हावी हो गया, तो इतने धक्के खाने पड़ते कि ईमानदारी पानी मांगने लगती। तभी तो कहा जाता- कोई भी व्यक्ति तभी तक ईमानदार, जब तक बेईमानी का मौका न मिले। सो भ्रष्टाचार तो ऐसा अमृत रस, जिसे पीकर हर सरकारी मुलाजिम अपनी जिंदगी खुशहाल बनाना चाहता। सो आप खुद ही सोचकर देखो, अगर भ्रष्टाचार न होता, तो दुनिया कितनी बेरंग होती। सारे काम आसानी से होते, तो सरकारी बाबुओं और आम लोगों में क्या फर्क रह जाता। कुल मिलाकर माहौल में नीरसता ही दिखती। पर भ्रष्टाचार ने सचमुच कमाल कर दिया। भ्रष्टाचार से रोजगार के नए अवसर पैदा हो गए। व्यवस्था के नीति-नियंता नियति के बराबर खड़े हो गए। यानी भ्रष्टाचार ऐसा खेल बन गया, जितना खेलो, उतना मजा आता। पहले लूटने के लिए भ्रष्टाचार होते, फिर जांच के नाम पर लूट मचाई जाती। भ्रष्टाचार का मतलब यही, लूट लो, जितनी लूट सकते हो, ताकि अंत काल में पछताना न पड़े। अगर भ्रष्टाचार न होता, तो नेताओं-नौकरशाहों-बाबुओं की जिंदगी कितनी तनहा होती। पर भ्रष्टाचार ने इन लोगों पर प्राण वायु जैसा असर किया। अब जो चीज प्राण वायु बन चुकी हो, वह भला कैसे अलग हों। तभी तो भ्रष्टाचार के खिलाफ बातें बड़ी-बड़ी होतीं, पर कार्रवाई नहीं। भ्रष्टाचार की जानकारी आखिर किसे नहीं। कई सरकारी महकमे ऐसे, जहां ऊपर से नीचे तक सभी अधिकारियों की भ्रष्ट कमाई इतनी कि सैलरी हर महीने का बोनस नजर आती। इनकम टेक्स, सेल्स टेक्स, कस्टम, तहसील जैसे मलाईदार महकमों में ट्रांसफर के लिए कैसे राजनीतिक अर्जियां लगाई जातीं, कौन नहीं जानता। अगर भ्रष्टाचार न होता, तो आज कॉमनवेल्थ गेम्स भी न होते। भारत ने मेजबानी ली, तो मेजबानी के पीछे की कहानी मणिशंकर अय्यर बता चुके। कैसे कॉमनवेल्थ के सभी देशों को लाखों में भुगतान किए गए। सो कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी शुरू हुई, तो भ्रष्टाचार का हिस्सा पहले बंट गया। पर खेल के बाद जब भ्रष्टाचार के खेल से परदा उठा। तो भ्रष्टाचारियों के नकाब उतरने लग गए। सो सरकार को लगा, टेबल के नीचे का भ्रष्टाचार टेबल के ऊपर दिख गया। तो जनता को जवाब देना भारी पड़ेगा। सो अब भ्रष्टाचार की जांच होगी। तो देखिए, जांच के कितने फायदे होंगे। अब जांच तक कलमाड़ी एंड कंपनी की आयोजन समिति बनी रहेगी। यानी वेतन-भत्ते मिलते रहेंगे। भ्रष्टाचार की जांच से एक और फायदा, रिटायर हो चुके सीएजी वी.के. शुंगलू को काम मिल गया। विपक्षी दल बीजेपी को भी भ्रष्टाचार पर रिसर्च करने की जरूरत महसूस हुई। अपनी मीडिया को भी रपट से पहले ही परतें उधेडऩे का मौका मिल गया। अब आप खुद ही देखिए, अगर कॉमनवेल्थ गेम्स न हुए होते, तो भ्रष्टाचार न होता। भ्रष्टाचार न होता, तो नितिन गडकरी को तथ्य जुटाने की जहमत नहीं उठानी पड़ती। पीएम को जांच कमेटी नहीं बनानी पड़ती। राजनीतिक दलों को आरोप-प्रत्यारोप का मौका नहीं मिलता। सो उधर कॉमनवेल्थ गेम्स की जांच शुरू हुई, इधर राजनीति का धंधा चल पड़ा। बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मंगलवार को जो दस्तावेज जारी किए, उसके पन्ने तो नहीं गिने जा सके। पर अमूमन डेढ़-दो किलो वजन जरूर होगा। गडकरी ने सीधे पीएम मनमोहन को कटघरे में खड़ा किया। भ्रष्टाचार में पीएमओ को जिम्मेदार बताया। दलील दी, पीएम के तैनात चार अधिकारी आयोजन समिति के हर फैसले में शामिल रहे। सो पीएम जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। पर सवाल गडकरी से, कर्नाटक में एक मंत्री का बेटा जमीन घोटाले में फंसा। तो सीएम येदुरप्पा ने यह कहते हुए कार्रवाई नहीं की, बेटे की सजा बाप क्यों भुगते। अब गडकरी बताएं, गर अधिकारी भ्रष्ट निकले, तो पीएम जिम्मेदार कैसे। अगर यही फार्मूला, तो फिर बीजेपी नेता सुधांशु मित्तल के घर छापेमारी की जिम्मेदारी बीजेपी अध्यक्ष क्यों नहीं लेते? मंगलवार को कॉमनवेल्थ घोटाले के मामले में बीजेपी नेता के घर छापे पड़े। तो कांग्रेस को ढाल मिल गई। मनीष तिवारी ने गडकरी को बिगड़ैल बच्चा बता उनके आरोप खारिज कर दिए। बोले- जांच की आंच बीजेपी नेताओं तक पहुंच रही, सो गडकरी डर गए। पर गडकरी की ओर से जांच के लिए जेपीसी की मांग से किनारा कर लिया। सीधे जवाब से कन्नी काटते हुए बोले- यह सरकार को तय करना है, पर फिलहाल शुंगलू कमेटी सक्षम। पर गडकरी ने तो मौजूदा जांच को परदा डालने वाली बताया। यानी मौजूदा जांच सिर्फ प्रशासनिक स्तर तक सीमित रहेगी। मंत्रियों तक आंच नहीं पहुंचेगी। वैसे भी शीला-जयपाल-गिल-कलमाड़ी ने तो अपने अधिकारियों को कागज दुरुस्त करने की हिदायत दे दी। सो जांच का क्या हश्र हुआ, यह तो तीन महीने बाद ही मालूम पड़ेगा। पर कदम जो भी उठे, इतना तो तय है, अपने देश से भ्रष्टाचार न उठेगा, न मिटेगा। भ्रष्टाचार अब एक ऐसा धर्म, जिसमें सबकी आस्था। ऐसा कर्म, जिसे सब करना चाहते। लेने वाला भी खुश, देने वाला भी खुश। सो आइए मिलकर कहें- भ्रष्टाचार की जय हो।
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19/10/2010
Tuesday, October 19, 2010
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