चले थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास। सचमुच बीजेपी में दो-चार महीने से अधिक शांति नहीं रह सकती। जब तक आपस में टंगड़ी मार राजनीति न खेलें, बीजेपी को राजनीति का मजा नहीं आता। सो बीजेपी में फिर वर्चस्व की जंग छिड़ गई। नीतिश कुमार के वीटो ने नरेंद्र मोदी को बिहार चुनाव प्रचार में घुसने नहीं दिया। तो अब सुषमा स्वराज ने कह दिया- बिहार में नरेंद्र मोदी की आवश्यकता ही नहीं। यहां पहले से ही नीतिश और सुशील मोदी का जादू चल रहा। यानी सुषमा का मतलब, गुजरात में मोदी का जादू चल रहा, पर बिहार में नहीं चलेगा। सो मोदी समर्थक खफा हो गए। कर्नाटक के एक उत्साही विधायक ने भारत के विकास के लिए गुजरात का विकास शीर्षक से मोदीनुमा इश्तिहार छपवा दिया। यों इश्तिहार में गुजरात के स्थानीय चुनाव में चले मोदी मैजिक का बखान। पर सुषमा के बयान के ठीक बाद आए इश्तिहार का राजनीतिक अर्थ निकलना ही था। बुधवार को बीजेपी की उपाध्यक्ष नजमा हेपतुल्ला ने भी सुषमा का नाम नहीं लिया। पर दो-टूक बोलीं- गुजरात से बाहर भी मोदी का जादू चल रहा। नजमा ने बाकायदा दादर नगरहवेली और दमनदीव के स्थानीय चुनाव के आंकड़े गिना दिए। सारा क्रेडिट मोदी मैजिक को दिया। सो बीजेपी की अंदरूनी कलह का अंदाजा आप खुद लगा लें। बीजेपी के भीतर दूसरी पीढ़ी में सिरमौर बनने की होड़ किस कदर बढ़ चुकी, आप खुद देख लें। नरेंद्र मोदी का कहा बीजेपी में कोई नहीं टाल सकता। तो भला शिवराज, रमण क्यों पीछे रहें। सो जब भी मौका मिलता, ये भी आलाकमान के मंसूबे पर पानी फेरने से नहीं चूकते। अब ताजा नमूना बुधवार को ही दिख गया, जब बीजेपी की सबसे महत्वाकांक्षी योजना अंत्योदय के क्रियान्वयन की केंद्रीय टीम में प्रदीप गांधी शामिल हो गए। रमण ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के वक्त प्रदीप गांधी को चुनाव समन्वय की टीम में जोड़ा था। पर बवाल मचा, तो हटाए गए। फिर प्रदेश कार्यकारिणी में चुपके से शामिल करा दिया। अब धीरे-धीरे प्रदीप गांधी को केंद्रीय टीम में जगह दिला दी। सनद रहे सो बता दें, प्रदीप गांधी कौन? तो जरा याद करिए ऑपरेशन दुर्योधन। संसद में सवाल पूछने के लिए 11 सांसद कैमरे में अठन्नी-चवन्नी घूस लेते धरे गए थे। महज दस दिन में संसद की आचरण समिति ने बर्खास्तगी की सिफारिश की। तो 23 दिसंबर 2005 को घूसखोर सवालची सांसदों को आउट कर संसद ने इतिहास रच दिया था। प्रदीप गांधी इनमें से एक थे। इन 11 सांसदों में बीजेपी का बहुमत था। प्रदीप गांधी हमेशा से रमण सिंह के दुलारे रहे। लोकसभा में भी रमण की खाली सीट राजसमंद से चुनकर पहुंचे थे। यों भ्रष्टाचारियों को जगह देने में बीजेपी ही नहीं, कांग्रेस भी माहिर। इन सवालची सांसदों में बीएसपी के राजा रामपाल आउट हुए थे। अब यूपी कांग्रेस का राहुल गांधी ने बेड़ा पार लगाया। तो सांसदी की एक सीट से राजा रामपाल ने भी शोभा बढ़ाई। सो नैतिकता के खेल में कोई भी राजनीतिक दल कपड़ा पहनना नहीं चाहता। पर बात बीजेपी की, रमण ने प्रदीप गांधी की एंट्री कराई। पर शिवराज सिंह ने उमा भारती की एंट्री में रोड़ा अटका रखा। यानी बीजेपी के क्षत्रप अब आलाकमान की छाती पर मूंग दल रहे। पर बीजेपी फिलहाल मोदी के वीटो से परेशान। मोदी ने वीटो लगाकर राम जेठमलानी को राजस्थान से राज्यसभा की मेंबरी दिला दी। बीजेपी का कोई नेता इसके लिए राजी नहीं था। पर मोदी ने ठान लिया, तो फिर किसकी मजाल, जो ना करने की हिमाकत करे। नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगे से जुड़े मामले में बचाने का ठेका जेठमलानी ने लिया। तो मोदी ने फिर किसी की परवाह नहीं की। आखिरकार नितिन गडकरी को बीजेपी के टिकट से जेठमलानी को मेंबरी देनी पड़ी। पर जेठमलानी के बोल बीजेपी को अब भारी पड़ रहे। यों जब बड़़बोले जेठमलानी को टिकट दिया गया। तभी बीजेपी के एक प्रवक्ता ने कह दिया था- अब हर रोज सफाई देने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। सो जातीय जनगणना की मुखालफत, एसएम कृष्णा का समर्थन कर बीजेपी को असहज कर चुके जेठमलानी ने कश्मीर के वार्ताकार दिलीप पडगांवकर का समर्थन कर मुश्किल बढ़ा दी। बीजेपी ने जेठमलानी की निजी राय बता पल्ला तो झाड़ लिया। पर पार्टी दो खेमों में बंट गई। एक धड़ा अनुशासनात्मक कार्रवाई चाह रहा। तो दूसरे में चाहकर भी हिम्मत नहीं। बुधवार को जेठमलानी ने तो यहां तक कह दिया- मंच से प्रवक्ता का कुछ बोल जाना कोई पार्टी लाइन नहीं। मुझे किसी ने नहीं बताया कि पार्टी लाइन क्या है। सो मैं माफी नहीं मांगूंगा। अब बीजेपी दोहरी मुश्किल में। पार्टी ने पडगांवकर के बयान का विरोध किया। जेठमलानी समर्थन कर रहे। पर मुश्किल, न अपना बयान वापस ले सकती, न जेठमलानी पर कार्रवाई कर सकती। कश्मीर पर वार्ताकार पडगांवकर ने दिल्ली लौटने के बाद लालकृष्ण आडवाणी से बात करने का एलान कर दिया। सो अब बीजेपी का स्टैंड क्या रहेगा, यह देखना होगा। बीजेपी के सहयोगी जेडीयू ने भी जेठमलानी का समर्थन कर मुश्किल बढ़ा दी। अब आखिर में सवाल, जब गुजरात दंगे में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं। तो एक वकील के पीछे समूची बीजेपी दांव पर क्यों? जेठमलानी की वजह से जिन-जिन का टिकट कट गया, अब खुलकर बोल रहे। एक ने यहां तक कह दिया- जेठमलानी कैसे जीते हैं, सबको मालूम। नरेंद्र मोदी के सिवा पार्टी में कोई उन्हें पसंद नहीं करता। पर मोदी की पकड़ मजबूत हो रही। सो मोदी की मारी बेचारी बीजेपी ठीक से सिसक भी नहीं पा रही।
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27/10/2010
Wednesday, October 27, 2010
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