Saturday, November 20, 2010

तो पीएम कागज से, राजा खजाने से खेलते रहे!

'चुप-चुप खड़े हो, जरूर कोई बात है...।' घोटालों पर खामोशी को विपक्ष ने मौन स्वीकृति करार दिया। तो पहले सोनिया गांधी और अब खुद मनमोहन ने भी लंबी चुप्पी तोड़ दी। जब एटमी डील पर मनमोहन चौतरफा घिर गए थे। तो एचटी समिट में सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने लाचारी भरी टिप्पणी की थी। तब दोनों ने एक सुर में कहा था, एक डील न होने से जिंदगी खत्म नहीं होती। पर जब मनमोहन ने डील को अपनी आन का मुद्दा बना लिया। तो लेफ्ट की समर्थन वापसी के बावजूद पूरा करके दम लिया। भले सरकार बचाने को सांसदों की जमकर खरीद-फरोख्त हुई। सत्ता की खातिर नैतिकता को ठेंगा दिखा दिया। लोकसभा में करोड़ों की गड्डियां लहराई गईं। तब मनमोहन ने सरकार बचाने की खातिर हुए इस भ्रष्टाचार पर आंखें मूंद लीं। अब भ्रष्टाचार के मौसम की चपेट में खुद पीएम आ गए। तो दो हफ्ते तक संसद की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढऩे के बाद एचटी समिट में ही पीएम ने जुबान खोली। तो जैसी लाचारगी एटमी डील के वक्त मनमोहन के बयान में थी। अबके उससे कुछ अलग नहीं। भ्रष्टाचार के मुद्दे ने सरकार को इस कदर घेर लिया। अब बाहर निकलने का रास्ता नहीं दिख रहा। सो पीएम ने न सिर्फ विपक्ष से संसद चलने देने की अपील की। अलबत्ता घोटाले के दोषियों को न बख्शने का भरोसा भी दिलाया। पर संसद आखिर कैसे चलेगी, जब विपक्ष की जेपीसी की मांग को न नकारा, न स्वीकारा। बोले- संसद का सत्र चल रहा। सो जेपीसी पर यहां बोलना सही नहीं। अब आप खुद अंदाजा लगा लें, अगर सरकार बैकफुट पर न होती, तो किसी भी मंच से जेपीसी खारिज कर देते। प्रणव दा तो लगातार इस मांग को खारिज कर रहे। पर जैसे पीएम ने तेल और तेल की धार देखते हुए जेपीसी पर चतुराई भरा बयान दिया। प्रणव दा भी कुछ ऐसा ही करते। बाहर इनकार, पर उन ने अब तक विपक्ष को जेपीसी न मानने का औपचारिक जवाब नहीं दिया। यानी सरकार की हालत कितनी पतली, बतलाने की जरूरत नहीं। सो विपक्ष भी आक्रामक हो चुका। अब सीधे पीएम पर निशाना साधा। तो इशारों में ही पीएम के इस्तीफे की भी मांग कर दी। पर अपनों का कुकर्म बीजेपी को कर्म ही पूजा नजर आ रहा। कर्नाटक के सीएम येदुरप्पा का पाप जगजाहिर। फिर भी बीजेपी ने अभय दान दे दिया। शुक्रवार की आधी रात तक मीटिंग चली। पर बीजेपी के भ्रष्टाचार का पैमाना देखिए। दलील दी गई, जब केंद्र में सरकार न जेपीसी मान रही, न पीएम के इस्तीफे की हलचल। सो येदुरप्पा की बलि लेकर थोथी नैतिकता दिखाने का कोई मतलब नहीं। यानी नैतिकता की राजनीतिक परिभाषा यही, पहले तुम, फिर हम। येदुरप्पा ने तो बेंगलुरु पहुंच कर बेशर्मी भरा बयान भी दे दिया। बोले- आरोप लगने वाले कितने मंत्रियों-मुख्यमंत्रियों ने अब तक इस्तीफा दिया। खुद को पाक-साफ बता इस्तीफे से इनकार किया। पर कोई पूछे, जब इतने पाक-साफ थे। तो जमीन लौटाई क्यों? पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी की आड़ में फिलहाल बीजेपी की तोप गोले दाग रही। सो अब सबकी निगाह मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर। सुप्रीम कोर्ट ने पीएम की चुप्पी पर सवाल उठाए थे। तो शनिवार को हलफनामा देकर पीएमओ ने सफाई दे दी। टू-जी स्पेक्ट्रम मामले में पूरी क्रोनोलॉजी यानी तारीखवार ब्यौरा सौंप दिया। सुब्रहमण्यम स्वामी की सभी छह चिट्ठियों पर पीएमओ में हुए विचार और संबंधित विभाग को भेजने का हवाला दिया। यानी पीएमओ ने सरकारी प्रक्रिया के तहत अपनी जिम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वाह किया। अब कोर्ट पीएमओ के हलफनामे से संतुष्ट होगा या नहीं, यह मंगलवार को मालूम पड़ेगा। पर याचिका कर्ता स्वामी ने भी कबूला, पूरे मामले में पीएम गुनहगार नहीं। पर सवाल, देश का मुखिया सिर्फ कागजी कार्रवाई ही करता रहा? लूटने वाले अपनी जेब भरते रहे। पर पीएम ने सब कुछ जानकर भी अनजान होने का रुख क्यों अपनाया? हलफमाने का निचोड़ यही, पीएमओ कभी चुप नहीं रहा। अलबत्ता लेटरबाजी करता रहा। अब मनमोहन इम्तिहान की घड़ी बता रहे। पर इस चुनौती के लिए जिम्मेदार कौन?
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20/11/2010

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