स्पेक्ट्रम घोटाले ने हर्षद मेहता कांड का रिकार्ड तोड़ दिया। अठारहवें दिन भी संसद में गतिरोध बना रहा। सो अब कांग्रेस साल- 2010 में दोहरा इतिहास रचने जा रही। सोनिया गांधी का चौथी बार अध्यक्ष बनना स्वर्णिम इतिहास। तो देश के अब तक के सबसे बड़े घोटाले पर जेपीसी न बनाने की जिद ठानकर संसद का पूरा सत्र ठप रखने का एक और बदनुमा इतिहास। पर तमाम झंझावातों के बीच गुरुवार को सोनिया गांधी का हैप्पी बर्थडे। सो मजाक में ही सही, विपक्ष रिटर्न गिफ्ट में जेपीसी की उम्मीद कर रहा। पर स्पेक्ट्रम यानी प्रतिबिंब के इस भ्रष्टाचार में राजनीति के कई विशालकाय प्रतिबिंब दिख रहे। सो जेपीसी न बनाने की रार ठनी हुई। पर कांग्रेस की मुसीबत इस कदर बढ़ चुकी, अब जेपीसी को ठीक से इनकार भी नहीं कर पा रही। सोमवार को यूपीए की मीटिंग में प्रणव मुखर्जी ने अपनों की नब्ज टटोली। ममता बनर्जी ने बंगाल चुनाव के मद्देनजर जेपीसी का दबाव डाला। तो महाराष्ट्र के लवासा प्रौजैक्ट में पर्यावरण मंत्रालय की अड़चन से खफा शरद पवार ने भी जेपीसी की चाबी घुमा दी। सो मंगलवार को जब संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल से पूछा गया- क्या सरकार जेपीसी से इनकार कर रही? तो उनका जवाब कांग्रेस की परेशानी की गाथा बयां कर रहा था। बंसल बोले- अभी तक की स्थिति में जेपीसी नहीं। सो अब सवाल, क्या संसद सत्र का बंटाधार करने के बाद आखिरी दिन जेपीसी बनेगी? यों स्पेक्ट्रम घोटाले में बड़े नेताओं के घरों की इतनी परछाइयां शामिल, जेपीसी के आसार नजर नहीं आ रहे। पर कांग्रेस की हालत पस्त। सो कभी यूपीए की, तो कभी कोर ग्रुप की मीटिंग-मीटिंग खेल रही। पर संसद ठप होने का ठीकरा विपक्ष के सिर न फूटे, सो सत्र के बाद रैली की तैयारी। तो मंगलवार को विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने सफाई दी- कभी-कभी संसद का न चलना भी संसद चलने से अधिक प्रभावी होता। यानी संसद में गतिरोध न बनता, तो भ्रष्टाचार का मुद्दा इतना व्यापक न होता। पर भ्रष्टाचार के इस हमाम में हम-आप किसे ईमानदार मानें? अब ए. राजा की एक और कलई खुल गई। जून-2009 में मद्रास हाईकोर्ट के जज रघुपति ने एक केंद्रीय मंत्री की ओर से धमकी मिलने का खुलासा किया था। तब उन ने 12 जून को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन को चिट्ठी लिखी थी। पर तब नाम का खुलासा नहीं हुआ था, फिर भी शक की सुई राजा की ओर ही घूम रही थी। अब मंगलवार को हाईकोर्ट के जज खलीफुल्लाह ने राजा की ओर से धमकी मिलने का खुलासा कर दिया। यानी राजा के किस्से अनेक। पर घोटाले के सीजन में यूपी ने भी कमाल कर दिया। करीब दो लाख करोड़ से अधिक के अनाज घोटाले का खुलासा हुआ। मुलायम सिंह के राज में कोटे के अनाज को एक प्रक्रिया के तहत खुले बाजार में और बांग्लादेश-नेपाल तक सप्लाई किया। करीब 200 अफसर इस घोटाले में संलिप्त बताए जा रहे। तो सचमुच यह घोटाला स्पेक्ट्रम के भी पार जाएगा। भ्रष्टाचारियों को न शर्म, न लिहाज। यूपी के ही एक पुराने जमीन घोटाले में पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव को चार साल की सजा मिल गई। अपने पी.जे. थॉमस को भी यही डर सता रहा। अगर कुर्सी छोड़ी, तो शिकंजा कसेगा। सो सौदेबाजी पर उतरे हुए। पहले मुकदमा न चलाने का फैसला चाह रहे, फिर इस्तीफा देंगे। सो देश में जब अफसरशाही और नेताओं की ऐसी सांठगांठ होगी, तो देश का क्या होगा। वही, जो मंगलवार को वाराणसी के शीतला घाट पर हुआ। आखिर अमेरिका ने ऐसा क्या बंदोबस्त किया, जो 9/11 के बाद कोई आतंकी वारदात न हुई। अमेरिका की तैयारी देखिए, कुछ महीने पहले ही फैजल शहजाद नामक आतंकी ने टाइम्स स्क्वायर में कार बम विस्फोट करने की हिमाकत की। पर अमेरिकी खुफिया और पुलिस तंत्र ने न सिर्फ विस्फोट को होने से रोक लिया, अलबत्ता 24 घंटे के भीतर आतंकी को गिरफ्तार कर उसके लाहौर तक के घर खंगाल डाले। पर हमने 26/11 के मुंबई हमले से क्या सबक सीखा? मुंबई हमले के करीब सवा साल बाद पुणे की जर्मन बेकरी में धमाके हुए। उसके बाद अब मंगलवार को वाराणसी में गंगा तट स्थित शीतला घाट पर धमाका। वह भी तब, जब राम जन्मभूमि विवाद पर हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद बाबरी विध्वंस की पहली बरसी थी और सरकार के शब्दों में समूचे देश में हाई अलर्ट था। पर अलर्ट के अगले दिन ही हुआ धमाका क्या अपनी खुफिया और सुरक्षा तंत्र की पोल नहीं खोल रहा। आखिर 26/11 के बाद हमने क्या तैयारी की? वाराणसी के गंगा तट पर 2006 में भी धमाके हो चुके। पर शाम को होने वाली गंगा आरती के वक्त आतंकी दूध के कंटेनर में बम रख बेरोक-टोक घुस जाए। तो सचमुच गृहमंत्री पी. चिदंबरम का वह बयान सटीक। जिनमें उन ने कहा था- देश की सुरक्षा 90 फीसदी भगवान भरोसे, दस फीसदी सुरक्षा तंत्र के। आखिर देश और अवाम की सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त हों भी कैसे, जब अपने नेता-अफसरान आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हों। सुरक्षा का मामला हो या अवाम का पेट भरने का, व्यवस्था चलाने वाले पहले अपनी जेब और पेट की फिक्र करते। हर काम में पहले कमीशन फिक्स होता, फिर बाकी बची मुट्ठी भर रकम में देश की फिक्र होती। आप खुद देखो, अपने देश में कहां घोटाला नहीं। बंदूक खरीदो या तोप, अनाज खरीदो या परछाईं, चारा हो या चीनी, सडक़ हो या पानी, पहले जेब भरी जाती, फिर काम होता। पर बम धमाके के बाद भी वही राजनीतिक रोना-धोना। सख्त कार्रवाई होगी, आतंकियों के मंसूबे कामयाब नहीं होने देंगे और संयम की अपील।
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07/12/2010
Tuesday, December 7, 2010
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