अब विजयी मुद्रा में दिग्विजय इतरा रहे। सो मंगलवार को सिर्फ विपक्ष नहीं, अपने सहयोगियों पर भी निशाना साधा। हेमंत करकरे पर दिए अपने बयान को पुष्ट करने के लिए दिग्विजय ने आखिर बीएसएनएल से रिकार्ड निकलवा ही लिया। फिर खम ठोककर मैदान में कूदे। तो कॉल डिटेल की प्रति बंटवाईं। जिसमें दिग्विजय के मोबाइल से महाराष्ट्र एटीएस के दफ्तर के नंबर पर फोन किए जाने का रिकार्ड। यानी मुंबई हमले के दिन पांच बजकर 44 मिनट पर दिग्विजय के मोबाइल से हेमंत करकरे के दफ्तर में फोन हुआ। सो तेवर दिखा दिग्विजय बोले- मुझे झूठा, देशद्रोही कहने वाले मेरी निष्ठा और ईमानदारी पर सवाल उठाने वाले अब तो मुझसे माफी मांगो। अगर माफी नहीं मांग सकते, तो कम से कम खेद जता दो। पर सबूत के बाद भी कांग्रेस दिग्विजय के साथ नहीं खड़ी। तो भला देश कैसे भरोसा करे। कांग्रेस ने तो इसे दिग्गी का निजी मसला बता दिया। पर दिग्विजय ने बाकायदा महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर. पाटिल को चिट्ठी लिख माफी मांगने को कहा। पाटिल ने विधानसभा में दिग्विजय को झूठा बताया था। करकरे-दिग्विजय की बातचीत के किसी रिकार्ड से इनकार किया था। अब आर.आर. पाटिल क्या सफाई देंगे, यह बाद की बात। पर सवाल वही, दिग्विजय के सबूत को कैसे सच मान लें? जिस नंबर पर बात हुई, वह एटीएस दफ्तर का जनरल नंबर। खुद दिग्विजय की मानें, तो वह कभी करकरे से मिले नहीं। ना दिग्विजय देश के गृहमंत्री, ना पुलिस के आफीसर। तो सवाल, करकरे ने अपनी पीड़ा पत्नी को न बता दिग्विजय को ही क्यों बताई? हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे ने तो मंगलवार को भी दोहराया- जब मुस्लिम कट्टरपंथी आतंकी हमले की जांच में पकड़े जा रहे थे। तब भी करकरे को धमकी मिलती थी। सो मालेगांव की जांच में हिंदू कट्टरपंथियों से धमकी कोई हैरानी की बात नहीं थी। पुलिस वालों की जिंदगी में यह साधारण सी बात। पर दिग्विजय की मानें, तो करकरे बेहद व्यथित थे। धमकियों से परेशान थे। पर सवाल हुआ- क्या दिग्विजय ने यह सूचना देश के गृहमंत्री को दी? आखिर दिग्विजय से ही करकरे ने ऐसा कहा। तो कोई झक मारने के लिए नहीं कहा होगा। अगर मध्य प्रदेश की पैदाइश होने के नाते करकरे-दिग्विजय करीब आए। तो दिग्विजय ने उनकी मदद क्यों नहीं की? अगर इन पहलुओं को छोड़ भी दें। तो सवाल- इस बात का सबूत नहीं कि दिग्विजय ने करकरे से ही बात की। अगर की भी, तो क्या वही बात हुई। जो दिग्विजय कह रहे। जब से दिग्विजय ने यह खुलासा किया, तबसे खुद कई रंग बदल चुके। पहले हेमंत करकरे की ओर से फोन आने की बात कही थी। पर बवाल मचा, तो अगले दिन ही अपनी ओर से फोन करने का दावा किया। अब कह रहे- पहले एटीएस के दफ्तर के नंबर से मिस्ड कॉल आई, फिर उन ने पलटकर फोन किया। सवाल और भी, कुछ दिन पहले ही दिग्विजय ने कहा था- मैंने बीएसएनएल से रिकार्ड मांगा है। पर भोपाल बीएसएनएल ने यह कहते हुए मना कर दिया कि एक साल से अधिक का रिकार्ड नहीं रखते। पर अब कोई पूछे- उसी भोपाल बीएसएनएल ने रिकार्ड कैसे मुहैया करा दिया। अब चाहे जो भी हो, पर दिग्विजय कांग्रेसी एजंडे को बखूबी अंजाम दे रहे। जैसे पाकिस्तान अपने ही कथित इस्लामिक आतंकवाद का शिकार, दिग्विजय भारत को कथित हिंदू आतंकवाद का शिकार साबित करने में जुटे हुए दिख रहे। मंगलवार को पाकिस्तान के पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर को इंदिरा गांधी की तर्ज पर ही उनके कमांडो ने मार डाला। सो बीजेपी ने तो दिग्विजय पर फौरन पलटवार किया। बोली- ऐसे बयानों से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कमजोर हो रही। पर अपने नेताओं को इससे क्या फर्क पड़ता। आतंकवाद हो या भ्रष्टाचार जैसी बीमारी, सबको वोट बैंक की आलमारी में सहेज लेते। सो आतंकी जेल में बैठ आराम की रोटी तोड़ते। तो भ्रष्टाचार सत्ता में बैठ खुद को कुबेर समझते। अब भ्रष्टाचार के ताजा किस्सों को छोड़ दें। तो बोफोर्स ने कलई खोल दी। कैसे एक आरोपी को बचाने के लिए समूचा सिस्टम खड़ा था, यह इनकम टेक्स ट्रिब्यूनल और सीबीआई की अलग-अलग दलीलों से साफ हो गया। ट्रिब्यूनल में बोफोर्स दलाली की बात साबित हो गई। पर सीबीआई को आका का हुक्म नहीं मिला। सो मंगलवार को तीस हजारी कोर्ट में क्वात्रोची को क्लीन चिट दिलवाने की ही दलील देती रही। पर जज ने पूछ लिया- ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद कानून मंत्री के बयान के बारे में सीबीआई का क्या रुख है? पर सीबीआई के वकील ने दो-टूक कह दिया- क्वात्रोची से मामला वापस लेने की अर्जी सभी पहलुओं को गहराई से विचार करने के बाद दी गई थी। पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया। अलबत्ता सुनवाई की अगली तारीख छह जनवरी मुकर्रर कर दी। उसी दिन तेलंगाना पर श्रीकृष्ण कमेटी की रिपोर्ट भी सार्वजनिक होनी। पर बात बोफोर्स की, तो मंगलवार को बीजेपी हो या बाकी विपक्ष। भ्रष्टाचार के मुद्दे की चपेट में दस जनपथ को भी घसीट लिया। टू-जी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ और आदर्श पर हुई मनमोहन की किरकिरी। जेपीसी-पीएसी के झमेले में मनमोहन उलझ चुके। विपक्ष भ्रष्टाचार के घेरे में पीएम को ले चुका। अब ट्रिब्यूनल के फैसले से सीधे सोनिया गांधी पर ‘बोफोर्स’ तान दी। रविशंकर प्रसाद बोले- गांधी परिवार से करीबी रिश्ते की वजह से कांग्रेस और उसकी समर्थित सरकारों ने क्वात्रोची को बचाने का ही प्रयास किया। क्वात्रोची बचाओ मुहिम में एक बेहद शक्तिशाली छुपा हुआ हाथ काम कर रहा।
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04/01/2011
Tuesday, January 4, 2011
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