Tuesday, February 15, 2011

अबके आवाम का कितना मन मोह पाएंगे मनमोहन?

हुस्नी मुबारक के कोमा में पहुंचने की खबर ने अपने नेताओं के भी कान खड़े कर दिए। सो संसद सत्र से पहले सुलह-सफाई का दौर शुरू हो गया। एक तरफ विपक्ष के साथ जेपीसी पर सहमति बनाने की कोशिशें हो रहीं। ताकि सदन में बहस के बाद ही जेपीसी का एलान हो। तो दूसरी तरफ छवि सुधारने के लिए पीएम मनमोहन सिंह ने खुद मोर्चा संभाल लिया। पीएम बुधवार को खबरिया चैनलों के संपादकों से रू-ब-रू होंगे। तो शायद भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उठ रहे सवालों का सीधा जवाब देने की कोशिश करेंगे। पर भ्रष्टाचार के इस मौसम में पीएम अब भला क्या तीर मारेंगे? जब मौका था, तो पीएम ने घोटालों के राजा का पुरजोर बचाव किया। और तो और, पिछले साल 22 मई को जब मनमोहन ने बतौर पीएम सातवें साल में प्रवेश किया। तो दो दिन बाद यानी 24 मई 2010 को देश की आवाम से रू-ब-रू हुए। तब उन ने महंगाई, आतंकवाद, नक्सलवाद, विदेश नीति, मंत्रियों का बड़बोलापन, तेलंगाना, राहुल गांधी, रिटायरमेंट, सीबीआई का बेजा इस्तेमाल, अफजल की फांसी, सोनिया से मतभेद जैसे करीब दो दर्जन मुद्दों पर 75 मिनट तक सवालों के जवाब दिए। पर तब भी पीएम ने गांधी परिवार से जुड़े सवालों के सिवा कोई ऐसा जवाब नहीं दिया, जो देश को दिशा दे सके। तब उन ने दिसंबर तक महंगाई काबू में लाने की बात की थी। पर महंगाई ने पीएम की बात नहीं मानी। यों फिलहाल महंगाई से बड़ी मुसीबत भ्रष्टाचार। पर जरा गौर से देखिए, 24 मई को मनमोहन ने भ्रष्टाचार पर क्या कहा था। उन ने कहा था- मंत्री ए. राजा से बात हो चुकी। भ्रष्टाचार की कोई शिकायत मिलेगी, तो कार्रवाई करेंगे। अब सवाल- क्या टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला 24 मई के बाद हुआ? क्या स्पेक्ट्रम घोटाले की भनक पीएम को तभी लगी, जब नवंबर में सीएजी ने अपनी रपट दी? सीबीआई ने तो 2008 में ही स्पेक्ट्रम घोटाले की एफआईआर दर्ज कर ली थी। शुरुआती जांच में ही 22,000 करोड़ के राजस्व नुकसान का खुलासा हो गया था। पर तब ए. राजा मंत्री थे, पीएम गठबंधन की मजबूरी में कार्रवाई से बच रहे थे। सो पीएम ने गर तभी कदम उठा लिया होता। तो आज छवि सुधार मुहिम में न जुटना पड़ता। सो अब आप ही सोचिए, क्या बुधवार को पीएम के जवाबों से देश की अवाम में कोई उम्मीद जगेगी? पीएम का खुद बचाव में उतरना मुद्दे की गंभीरता को जगजाहिर कर रहा। सचमुच अब तक कांग्रेस या कोई मंत्री घोटालों पर सरकार का बचाव करने में सक्षम नहीं दिखा। ले-देकर कानूनदां कपिल सिब्बल ने वकालत झाडऩे की कोशिश जरूर की। पर हारे हुए पक्ष के वकील की तरह ही नजर आए। अब तो कपिल सिब्बल की मुश्किलें भी बढ़ती जा रहीं। सुप्रीम कोर्ट पहले ही लताड़ लगा चुका। रही-सही कसर मंगलवार को पीएसी के समक्ष पेश सीबीआई के डायरेक्टर ए.पी. सिंह ने पूरी कर दी। सीबीआई ने सीएजी की तरह स्पेक्ट्रम घोटाले में नुकसान का कोई आंकड़ा तो नहीं दिया। पर सीबीआई ने राजस्व नुकसान की बात कबूल ली। सो पीएसी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी बोले- सीबीआई घोटाले के आपराधिक पहलुओं की जांच कर रही। सो फिलहाल कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं। पर सीबीआई ने नुकसान की बात मानी। यानी सिब्बल एक बार फिर झूठे साबित हुए। सात जनवरी को सिब्बल ने पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन के साथ प्रेस कांफ्रेंस की थी। तो उन ने आंकड़ों और शब्दों का ऐसा मायाजाल बुना। एक नील 76 खरब के स्पेक्ट्रम घोटाले को निल बता दिया। पर अब सिब्बल की काबिलियत धरी रह गई। सो मनमोहन आवाम का मन मोहने खुद मैदान में उतर आए। मनमोहन की पीसी से पहले सरकारी तैयारियां भी खूब हो रहीं। जेपीसी गठन के साफ संकेत मिलने शुरू हो गए। कांग्रेस की महज एक ही शर्त- सदन में बहस हो जाए, ताकि थोड़ी लाज बची रहे। फिर भ्रष्टाचार से लडऩे के उपाय सुझाने वाली जीओएम की फैसलाकुन मीटिंग भी हो गई। जिसमें सोनिया गांधी के पंच मंत्र को जस का तस मान लिया। सरकार अपने मंत्रियों के विवेकाधीन कोटे को खत्म करने का मन बना रही। ताकि करीबियों को फायदा पहुंचाने का आरोप न लगे। भ्रष्ट नौकरशाही पर नकेल कसने के लिए तय समय में मुकदमे की अनुमति देने का भी प्रावधान। अगर कोई अदालत नौकरशाह के खिलाफ आरोप तय कर दे। तो 90 दिन के भीतर सरकार को मंजूरी का फैसला करना होगा। भ्रष्टाचार के मामले को फास्ट ट्रेक कोर्ट में चलाने, अनुशासनात्मक कार्रवाई साल भर में पूरी करने जैसी सिफारिशें भी जीओएम ने कीं। सो मनमोहन शायद बुधवार को यही तमाम कदम मीडिया को गिनाएं। पर मनमोहन के सिर मुसीबत अकेले नहीं आई। मंगलवार को बीजेपी ने कोलकाता में पदाधिकारियों की मीटिंग की। बंगाल चुनाव में जीरो से हीरो बनने के फार्मूले पर मंथन करने गई। पर सरकार को घेरने का एक और मुद्दा मिल गया। सो बीजेपी ने प्रस्ताव पारित कर चार सूत्री मांग रख दी। सरकार भ्रष्टाचार पर जेपीसी बनाए, इसरो-देवास डील पर सीधे मनमोहन सफाई दें, महंगाई पर काबू पाने को फौरी कदम उठाए जाएं। और नया मुद्दा फोन टेपिंग का, तो बीजेपी ने सरकार से आधिकारिक बयान की मांग रख दी। अभी तो टू-जी घोटाले में खिलाड़ी कंपनियों के किस्से सामने नहीं आए। सो जब पूरी कलई खुलेगी, तो क्या करेंगे मनमोहन और उनकी सरकार? अभी तो राजा की भी पीएसी के सामने पेशी बाकी।
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15/02/2011

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