क्रिकेट के महाकुंभ का रंगारंग आगाज हो गया। सो वल्र्ड कप की खुमारी अब सिर चढऩे लगी। पर अफसोस, ए. राजा अब तिहाड़ जेल से ही मैच का लुत्फ उठाएंगे। कुछ परेशानी हुई, तो अस्पताल में भरती होकर मैच देखेंगे। पर फूटी किस्मत कांग्रेस की, घोटालों ने सारा मजा किरकिरा कर दिया। जब दुनिया मैच का मजा ले रही होगी। कांग्रेस और सरकार घोटालों का हिसाब-किताब करने में मशगूल होगी। सचमुच घोटालों ने ऐसा बैंड बजाया, गुरुवार को एस-बैंड स्पेक्ट्रम की इसरो-देवास डील रद्द करनी पड़ी। सीसीएस यानी सुरक्षा मामलों की केबिनेट कमेटी की मीटिंग के बाद विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने एलान कर दिया। डील सामरिक हित में नहीं, सो इसे तत्काल रद्द किया जाता है। पर देवास मल्टीमीडिया सरकार को लगातार आंखें दिखा रहा। सो मोइली ने दो-टूक कह दिया- जब सामरिक जरूरत का सवाल हो। तो निजी कंपनी को छोडि़ए, सरकार व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए एंट्रिक्स को भी स्पेक्ट्रम नहीं दे सकती। मोइली ने कंपनी की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए साफ कर दिया- डील रद्द करने के खिलाफ कंंपनी अदालत गई, तो भी सफल नहीं होगी। हमने मामले की पूरी पड़ताल की और डील के प्रावधानों व कानून के मुताबिक इसे रद्द किया जा सकता। माना, सरकार को सामरिक हित में डील रद्द करने का हक। पर क्या डील रद्द करने से घोटाला छुप जाएगा? सरकार की हताशा का अंदाजा इसी बात से लगाइए, पीएमओ ने पिछले गुरुवार ही इसरो-देवास डील की जांच के लिए बी.के. चतुर्वेदी कमीशन बनाया था। एक महीने में रपट देने को कहा गया। पर रपट का इंतजार किए बिना, महज हफ्ते भर बाद ही डील क्यों रद्द कर दी? यानी सामरिक हित को आधार बना भले डील रद्द कर दी। पर घोटाले की पूरी तैयारी थी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। सो बीजेपी ने तो सवाल उठाए ही, पीएसी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने देर से की गई छोटी कार्रवाई करार दिया। बोले- डील रद्द करना ही पर्याप्त नहीं। मामले की गंभीरता से जांच हो और जिसने डील की, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की जाए। बीजेपी ने तो जेपीसी के दायरे में इसरो डील को भी लाने की शर्त रख दी। सो मुश्किल में मनमोहन अब क्या करेंगे? यों बुधवार को उन ने जो सफाई दी, कांग्रेसी खेमे में ही दोहरे अर्थ निकाले जा रहे। सो क्रिकेट वल्र्ड कप की ओपिनिंग सेरेमनी देखने के बजाए कांग्रेसी संसद की रणनीति और पीएम उवाच के मंथन में ही जुटे दिखे। यों औपचारिक तौर पर कांग्रेस ने गुरुवार को दोहराया- पीएम अपने मकसद में सफल हुए। वह मध्यम वर्ग को संदेश देना चाह रहे थे। सो टीवी के जरिए जनता को बताया- उतने बड़े दोषी नहीं, जितना प्रचार हो रहा। पर जरा अंदरखाने कांग्रेस की चुटीली चर्चाएं भी सुनिए। मनमोहन उवाच को कांग्रेसी रणनीतिक हिस्सा बता रहे। जिसमें पीएम ने अपनी मजबूरी बता यह जतलाने की कोशिश की, उन ने निजी तौर पर कुछ ऐसा नहीं किया, जो उन पर उंगली उठाई जा रही। यानी कांग्रेसी खेमे में मनमोहन के खिलाफ सुर उठ रहे। पीएम की पूरी प्रेस कांफ्रेंस का निचोड़ यही माना जा रहा। भले मनमोहन सरकार के मुखिया, पर राजनीतिक फैसलों में उनकी भूमिका नहीं। जितने भी गलत फैसले हुए, वह सब गठबंधन के नेताओं और मुखिया स्तर पर लिए गए। यानी मनमोहन विरोधियों की नजर में सीधे सोनिया गांधी पर उंगली उठाई गई। सचमुच मनमोहन ने बड़ी बेबाकी से मजबूरी का इकरार किया। मिजाज के मुताबिक काम न होने का अफसोस भी जताया। यानी मतलब साफ- मनमोहन अगर पीएम की कुर्सी पर बैठ अपना काम कर रहे। तो सिर्फ सोनिया गांधी की वजह से। सो पीएम ने प्रेस कांफ्रेंस में खुद को ऐसे ही पेश किया, मानो, सीईओ की भूमिका निभा रहे। यों सरकार हो या संगठन, सचमुच मनमोहन की भूमिका यही। हर जगह सोनिया की पसंद के लोग तैनात। सो मनमोहन कार्यकारी की ही भूमिका निभा रहे। यूपीए की दूसरी पारी में उन ने ए. राजा और टीआर बालू को केबिनेट में न लेने का खम ठोका। पर मजबूरी में राजा को लेना पड़ा। टू-जी घोटाले में वित्त मंत्रालय की भी सहमति रही। सो मनमोहन ने अधिक दखल नहीं दिया। यानी राजा की वजह से जो छींटे मनमोहन पर पड़ रहे, असल में उसकी जवाबदेही सोनिया गांधी की। राजनीतिक फैसले सोनिया ही करतीं। पर बतौर पीएम कांग्रेसी पाप का ठीकरा मनमोहन के सिर फूट रहा। आज भी देश की जनता निजी तौर पर मनमोहन को क्लीन मान रही। पर दस जनपथ को खुश रखने के चक्कर में मनमोहन अपनी छवि दागदार कर रहे। मनमोहन का मजबूरी गान मजाक का विषय बन चुका। पर मनमोहन कब तक मजबूरी गान गाएंगे और देश में घोटाले दर घोटाले होते रहेंगे? सो वल्र्ड कप के इस मौसम में घोटालों की बारिश देख ख्याल आ रहा- गर देश में घोटाला कप का आयोजन हो, तो कौन जीतेगा? देश में इतने घोटाले और घोटालेबाज हो चुके, घोटाला कप के लिए कई प्रायोजक मिल जाएंगे। अपने टमाटर-प्याज के किसान भाई भी राहत महसूस करेंगे। शायद खपत बढ़ेगी, तो प्याज-टमाटर की पैदावार भी बढ़े। मुर्गियां भी अधिक अंडे देने लगें।
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17/02/2011
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17/02/2011
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