Friday, February 25, 2011

तो बदहाल रेलवे का बेहाल बजट

रेत की इमारत आखिर कब तक बुलंदी को छुएगी। लालू यादव ने चिकनी-चुपड़ी चकल्लसबाजी खूब की। तो शीशे की चमक में सब चौंधिया गए। लालू इतने मशहूर हुए, हार्वर्ड तक मैनेजमेंट का पाठ पढ़ा आए। पर राज छिना, तो लालू के काज की पोल भी खुल गई। ममता बनर्जी ने व्हाइट पेपर लाकर रेलवे का बदरंग चेहरा देश को दिखा दिया। पर 90 के दशक से भला कौन रेल मंत्री देश की सोच बजट पेश करता? हर रेल मंत्री ने रेलवे को चुनावी हथकंडा ही बनाया। सो शुक्रवार को ममता बनर्जी यूपीए राज का तीसरा रेल बजट पेश करने पहुंचीं। तो बजट से पहले बंगाल चुनाव का प्रोमो प्रणव दा ने ही दिखा दिया। लोकसभा में अपने किरोड़ीलाल मीणा ने ब्लैकमनी पर पूरक सवाल पूछा। तो कुछ टीका-टिप्पणी के बाद प्रणव दा आग-बबूला हो उठे। वामपंथियों को निशाने पर ले लिया। बोले- ब्लैकमनी वालों की लिस्ट में एक वामपंथी नेता का भी नाम। पर बताऊंगा नहीं। सो हंगामा मचा। फिर प्रणव दा ने माफी मांग ली। पर बंगाल चुनाव में वामपंथी किला उखाडऩे का बीड़ा प्रणव-ममता ने उठा रखा। सो प्रणव के प्रोमो के बाद ममता ने बजट पेश किया। तो देश को दुलार मिला, सारी ममता बंगाल पर उड़ेल दी। यों बजट में 88 एक्सप्रेस ट्रेनों का एलान। न यात्री किराया बढ़ाया, न माल-भाड़ा। पर रियायतों का पिटारा भी खूब खोला। विकलांगों और कीर्ति-शौर्य चक्र विजेताओं को अब राजधानी-शताब्दी में छूट। अपने पत्रकारों को अब साल में दो बार बीवी संग बाहर जाने में छूट। पुरुष सीनियर सिटीजन की छूट भी 30 से 40 फीसदी हो गई। महिला सीनियर सिटीजन की उम्र अब 58 होगी। पर बात ममता के बंगाल प्रेम की। तो इसमें कुछ नया नहीं दिखा। ममता ने भी वही किया, जो हर रेल मंत्री करता आ रहा। इस बार से अधिक तो ममता पिछले बजट में बंगाल को दे चुकीं। पिछले साल 54 नई ट्रेनों में से 28 बंगाल के खाते में गई थीं। मल्टी फंक्शनल कांप्लेक्स 93 में से आधा दर्जन बंगाल को दिए थे। विश्व स्तरीय दस स्टेशन में दो बंगाल से थे। टेगोर जयंती के नाम पर हावड़ा-बोलपुर में म्यूजियम, संगीत अकादमी, सांस्कृतिक परिसर आदि-आदि कई योजनाओं के जरिए ममता ने बंगाल चुनाव की बिसात बिछा दी थी। अबके तो उन ने थोड़ा कम किया। पर जितना किया, उसमें भी बंगाल ही अव्वल। वैसे रेलवे की हालत खस्ता। सो बजट में कुछ नया या उत्साहवर्धक नहीं दिखा। बंगाल के दार्जिलिंग में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, सिंगूर में कोच फैक्ट्री, सियालदाह में सुखी गृह योजना, नए यात्री टर्मिनल, हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस में इंटरनेट सुविधा, खडग़पुर में प्रशिक्षण केंद्र, कोलकाता मैट्रो में 34 नई सेवाएं, कोलकाता रेल विकास निगम की स्थापना, कोलकाता क्षेत्र में 50 नई लोकल सेवा, गुरु रवींद्रनाथ टेगोर की याद में चार कवि गुरु ट्रेन, कोलकाता में परियोजना क्रियान्वयन के लिए एक केंद्रीय संगठन की सौगात ममता ने दी। कुल 36 ट्रेनें, 32 परियोजनाएं और 14 मल्टी फंक्शनल कांप्लेक्स बंगाल गए। सो लोकसभा में जमकर हंगामा मचा। हालात ऐसे बन गए, मानो, बिहार और बंगाल के ममतावादी सांसद अब भिड़े-तब भिड़े। संसदीय कार्यमंत्री को दखल देना पड़ा। सो ममता भी सदन में तमतमा उठीं। गुस्से में यहां तक कह दिया- बिहार को हिंदुस्तान बना दो। सदन में ही पूछ लिया- जब मैंने बजट में मणिपुर-केरल का नाम लिया, तो क्यों नहीं चिल्लाए? बंगाल के नाम पर क्यों चिल्लाते हो। मैं अपने राज्य के लिए करूंगी और पूरे देश के लिए करूंगी। यानी ममता ने इशारों में ही कबूल लिया- जो ट्रैंड चला, वह भी दोहरा रहीं। सो सचमुच ममता चुनावी दूरंतो पर सवार होकर रायटर्स बिल्डिंग के सफर को निकल पड़ीं। रायटर्स बिल्डिंग में रेल का यार्ड तो ममता ने पिछले बजट में ही तैयार कर दिया था। सो अब ममता भले रायटर्स बिल्डिंग जाने की तैयारी करें। पर रेलवे का चुनावी दोहन कब तक चलेगा? खुद ममता ने बजट में माना- ऑपरेटिंग रेश्यो 84 फीसदी। टेक्स फ्री बॉंड के जरिए पैसा जुटाने की कोशिश होगी। पर जब 1924 में अंग्रेजों ने अलग से रेल बजट की व्यवस्था शुरू की। तो मकसद था- रेलवे इतना बड़ा उद्योग, जो अपने आप में सक्षम। पर आज हालात ऐसे हो चुके, हर साल बजटीय सहायता की जरूरत हो रही। बाजार से ब्याज पर कर्ज लिए जा रहे। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की मुहिम सिरे नहीं चढ़ रही। रेलवे का प्रोजैक्ट टाइम बाउंड नहीं। सो प्राइवेट लोग जोखिम नहीं ले रहे। खुद ममता के पिछले और ताजा बजट का फर्क देखिए। विश्व स्तरीय स्टेशन का बनना तो दूर, कागजी ढांचा भी नहीं बन सका। आदर्श स्टेशन अभी भी पूरे नहीं हुए। टक्कर रोधी उपकरण लगाने की बात कोंकण रेलवे के समय से हर बजट में होती आ रही। पर उपकरण इतना महंगा, कोई मंत्री अमल का साहस नहीं दिखाता। यों ममता इस उपकरण को लगाने का दावा कर रहीं। पर फिर वही कमजोरी, रेलवे में कोई टाइम बाउंड प्रोग्राम नहीं। रेलवे का विकास नहीं हो रहा। पर बजट के जरिए लोक-लुभावन घोषणाएं खूब होतीं। अबके भी ममता ने कुल सौ से भी अधिक ट्रेन का एलान किया। पर रेलवे का लदान घट रहा। नई पटरियां नहीं। सो जब यात्री ट्रेनें चलेंगी, तो माल ढुलाई का अनुपात और घटेगा। अब कोई पूछे- क्या इसी ढर्रे पर रेलवे का कायाकल्प होगा? ममता ने पिछली बार भी लता मंगेशकर के गाए गीत- जरा याद करो कुर्बानी, को बजट भाषण में जोड़ा। अबके भी वही दोहराया। पर सवाल- खस्ता हाल रेलवे कब तक चुनावी पटरी पर दौड़ेगी। सो शुक्रवार को जब ममता ने बजट पेश किया। तो बदहाल रेलवे का बेहाल बजट ही दिखा।
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25/02/2011

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