Friday, March 18, 2011

नैतिकता का दहन, संसद में हुड़दंग

मराठी में एक कहावत है- गुड़घ्याला बाशिंग बांधले। यानी कुर्सी की खातिर कोई इतना अधीर, सिर का सेहरा घुटने पर बांध ले। जब मनमोहन सरकार की पहली पारी पर एटमी संकट छाया। तो अमेरिका की खातिर राजनीति के तरकश से सारे तीर निकाले गए। एटमी डील खतरे में थी। सो अमेरिका की निगाहें वाया दूतावास मनमोहन सरकार पर ही गड़ी थीं। येन-केन-प्रकारेण मनमोहन ने कुर्सी तो बचा ली। पर सेहरा सिर से ऐसा सरका, संभाले नहीं संभल रहा। सत्ता के नशे में विपक्ष को अनदेखा किया। विपक्ष भी सरकार को दिखाने के बजाए आपस में ही एक-दूसरे को देखने लगा। सो कांग्रेस पर तबसे ही जो नशा चढ़ा, उतरने का नाम नहीं। अब 22 जुलाई 2008 का विश्वास मत लोकतंत्र के साथ विश्वासघात साबित हो रहा। तो कांग्रेस ने नैतिकता को जेब में रख ताल ठोक दी। विकीलिक्स के खुलासे ने अमेरिकी प्रेम और खरीद-फरोख्त की पुष्टि की। तो अब कांग्रेसी दलील देखिए- विपक्ष ने 2009 के चुनाव में भी ऐसे आरोप लगाए। पर जनता ने खारिज कर दिया। संसद के दोनों सदनों में दूसरे दिन भी यही मुद्दा उछला। पर पीएम मनमोहन ने पहले इंडिया टुडे कान्क्लेव में सफाई दी। फिर दोपहर बाद संसद में। पर दोनों सफाई के बीच ‘हाथ’ ने अपना कमाल दिखा दिया। इंडिया टुडे कान्क्लेव में मनमोहन बोले- सांसदों की खरीद-फरोख्त हुई, इसकी कोई जानकारी नहीं। और ना ही मैंने किसी को अधिकृत किया। पर जब कुछ घंटों बाद संसद में बयान पढ़ा, तो भाषा और तेवर भी बदल गए। उन ने न सिर्फ विपक्ष को आईना दिखाया, अलबत्ता बेहिचक कह दिया- यूपीए सरकार और कांग्रेस के किसी भी सदस्य ने विश्वास मत जीतने के लिए कोई गैर-कानूनी तरीका अख्तियार नहीं किया। चलो मान लिया, पर सवाल 25 करोड़ का- विश्वास मत के दिन 19 सांसदों ने क्रास वोटिंग क्यों की? अपनी पार्टी के पलटूराम क्यों बने? नेताओं से नि:स्वार्थ काम करने की उम्मीद तो कतई नहीं की जा सकती। अठन्नी-चवन्नी में बिकने वाले सांसद मुफ्त में मनमोहन सरकार तो नहीं बचाएंगे। अब जरा पीएम की सफाई का मतलब भी देख लो। इंडिया टुडे कान्क्लेव में पीएम ने किसी को अधिकृत न करने वाली दलील दी। तो सवाल- क्या ऐसे काम के लिए पीएम अपने लैटर हैड पर किसी को अधिकृत करेंगे? पीएम ने संसद में सफाई दी, तो कांग्रेस और सरकार की ओर से ऐसे गैर-कानूनी काम को नकारा। पर पीएम ने यह नहीं कहा- विश्वास मत के लिए सांसदों की कोई खरीद-फरोख्त नहीं हुई। सो नोट के बदले वोट कांड का भूत तीन साल बाद आया या तीस साल बाद आए, कांग्रेस कभी कबूल नहीं करेगी। सो पीएम के बयान पर लोकसभा में सुषमा स्वराज ने स्पष्टीकरण की अनुमति मांगी। तो स्पीकर ने ठुकरा दिया। पर राज्यसभा में सभापति हामिद अंसारी ने सचमुच इतिहास बना दिया। राज्यसभा में मंत्री या पीएम के बयान पर स्पष्टीकरण मांगने की परंपरा। पर शुक्रवार को पीएम के बयान के बाद अंसारी ने अनुमति नहीं दी। तो विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया। सो अंसारी ने चौंकाने वाली दलील दी। बोले- चूंकि पीएम ने स्वत: बयान नहीं दिया, अलबत्ता विपक्ष की मांग पर दिया। सो रूल 251 के तहत स्पष्टीकरण नहीं मांगा जा सकता। उन ने अपनी व्यवस्था को पुष्ट करने के लिए 24 अप्रैल 1987 की एक रूलिंग भी परोस दी। यह रूलिंग किस मुद्दे पर आई थी, आप सुनते जाओ। बोफोर्स घोटाले पर तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने बयान दिया। विपक्ष ने स्पष्टीकरण मांगा, तो तत्कालीन  सभापति शंकरदयाल शर्मा ने यह कहते हुए स्पष्टीकरण की अनुमति नहीं दी कि अगले दिन इस मुद्दे पर विस्तृत बहस होनी है। सो विपक्ष ने दोनों सदनों में पीएम के बयान पर बहस का नोटिस थमा दिया। पर सीताराम येचुरी ने तो तभी चुटकी ली- 24 साल पीछे की रूलिंग लागू करने के बजाए पिछले हफ्ते अपनाई गई परंपरा का अनुसरण क्यों नहीं करते? पर सभापति नहीं माने। सरकार ने भी ठान ली थी, सो पवन बंसल बोले- विपक्ष की हर बात नहीं मानेंगे। यानी जो बात मुफीद, वही बात मानेगी सरकार। पर सवाल- जब मनमोहन को भरोसा, जुलाई 2008 में कुछ गलत नहीं किया। तो विपक्ष के सवालों का जवाब देने में संकोच कैसा? संसद में आकर बयान पढ़ दिया और चलते बने, यह कैसी परंपरा? अपनी संसद में यही देखने को मिलता। सभी दलों के सांसद बोलते, आखिर में मंत्री जवाब देता और कथा समाप्त हो जाती। मनमोहन ने भी शुक्रवार को वही किया। बोले- नोट के बदले वोट कांड में संसदीय जांच कमेटी को भी निष्कर्ष तक पहुंचने वाले सबूत नहीं मिले। विपक्ष भूल गया, चुनाव में जनता ने क्या जवाब दिया। जिस 14वीं लोकसभा में बीजेपी के 138 सांसद थे, 15वीं में घटकर 116 रह गए। लेफ्ट भी 59 से घटकर 24 पर अटक गया। सिर्फ कांग्रेस की सीटें 145 से बढक़र 206 हो गईं। अब इस दलील में सचमुच कोई तर्क या सिर्फ घमंड, आप ही तय करिए। अगर चुनाव जीतने से घूसखोरी, भ्रष्टाचार और अपराध को छूट मिलने लगे, तो फिर मनमोहन चुनाव सुधार की बात क्यों कर रहे? लालू, मुलायम, शिबू, माया, मुख्तार अंसारी, शहाबुद्दीन, ए. राजा जैसे लोग भी चुनाव जीत चुके। मनमोहन फार्मूले के मुताबिक तो इन्हें भी मुकदमेबाजी से मुक्त कर देना चाहिए। क्या सत्ता में आने का मतलब, सरकार कुछ भी कर सकती? अब होली के इस मौके पर संसद में हुड़दंग तो जारी। पर होलिका दहन से ठीक पहले मनमोहन सरकार ने नैतिकता का दहन कर दिया।
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18/03/2011

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