जूते और प्याज खाने वाली कहावत चरितार्थ कर भी बीजेपी झारखंड की कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पा रही। यों पिता तुल्य आडवाणी ने अबके खम ठोक दिया। अब तक की फजीहत देख सरकार बनाने की पहल को हरी झंडी नहीं दे रहे। सो छुट्टी मनाकर लौटे गडकरी की मुसीबत बढ़ गई। अब तो अठारह में से सोलह एमएलए ने दबाव बना दिया। झारखंड बीजेपी बगावत के कगार पर खड़ी हो गई। सो सोमवार को बीजेपी ने न राष्ट्रपति राज की हिमायत की, न खारिज किया। अलबत्ता बयान देखिए- 'हम कांग्रेस की गतिविधि पर निगाह बनाए हुए।' अब कोई पूछे, जब आपने समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस सरकार बनाने से इनकार कर चुकी। तो क्या स्वर्गलोक से इंद्र आएंगे झारखंड संभालने? अब बीजेपी का नया खेल देखिए। जैसे ही राष्ट्रपति राज की ओर मामला बढ़ता दिखा। तो शिबू को समझाने में जुट गई। अब बीजेपी शिबू के सभी एमएलए की चिट्ठी मांग रही। सो सोमवार को गवर्नर फारुक ने केंद्र को रपट भेजने से पहले की रस्म निभाई। तो बीजेपी के रघुवर दास ने मंगलवार तक का वक्त मांग लिया। यानी तब तक शिबू मान गए, तो ठीक। वरना आखिर में बीजेपी कहेगी, हर-हर गंगे। पर बात बन गई, तो बीजेपी की स्क्रिप्ट भी तैयार। बानगी आप भी देखिए- हम झारखंड की जनता को चुनी हुई सरकार देना चाहते, राष्ट्रपति राज नहीं। सो झामुमो बिना शर्त समर्थन देने को राजी हुआ, तो हमने 'जनहित' में फैसला वापस लिया। अब सचमुच ऐसा हुआ, तो राजनीति पर लागू सभी कहावतों की सीमा पार हो जाएगी। पर राजनीति से और कैसी उम्मीद। अब झारखंड में महीने-डेढ़ महीने से बीजेपी-झामुमो जो चरित्र दिखा रहीं, उसे भी 'जनहित' बता रहीं। पर झारखंड में जनहित कर बीजेपी अब अपने सभी राज्यों में जन-जन का दिल जीतेगी। बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन पांच-छह जून को मुंबई में होगा। गुड गवर्नेंस ही सम्मेलन का एजंडा। सो शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, कृषि, महिला-बाल कल्याण, समाज कल्याण, जल-वन पर्यावरण, इन्फ्रास्ट्रक्चर, ग्रामीण विकास, पंचायती राज और शहरी प्रबंधन पर विशेष प्रस्तुतीकरण होगा। फिर राज्यों के विशेष प्रोग्राम को आगे बढ़ाने और बीजेपी के अन्य राज्यों में भी लागू करने पर विचार होगा। यानी गडकरी ने अध्यक्षी संभालते ही जो एलान किया, उसकी पहली शुरुआत होगी। राजनीति को समाज से जोडऩे की कवायद गडकरी का एजंडा। सो संघ की सलाह को अंजाम देते हुए गडकरी ने तय कर दिया, अब बीजेपी में किसी व्यक्ति का मॉडल नहीं होगा। अलबत्ता पार्टी के मॉडल चलेगी सरकार। अब तक आडवाणी-राजनाथ सरीखे नेता बाकी मुख्यमंत्रियों को नरेंद्र मोदी मॉडल की घुट्टी पिलाते रहे। गुजरात चुनाव के बाद जब राजनाथ ने दिल्ली कार्यकारिणी में मोदी मॉडल की पैरवी की। तो तबके बीजेपी के सभी सीएम न सिर्फ खफा हुए, अलबत्ता अपनी नाराजगी का इजहार सार्वजनिक तौर से किया। यानी कोई सीएम खुद को कमतर न समझे, सो अब हर जगह बीजेपी मॉडल होगा। पर कहीं मोदी नाराज न हों, सो मुंबई की मीटिंग में उद्घाटन के बाद की-नोट भाषण नरेंद्र मोदी का ही होगा। सीएम कांफ्रेंस में बीजेपी चार्टर पेश करेगी। पर कमजोरियों को छुपाएगी। अब गडकरी की बीजेपी सीएम कांफ्रेंस को अपनी बड़ी शुरुआत के तौर पर पेश कर रहे। पर वेंकैया नायडू के अध्यक्ष रहते ऐसा सम्मेलन दिल्ली के अशोका होटल में हो चुका। तब भी गुड गवर्नेंस की बात हुई थी। सत्ता-संगठन के तालमेल की बात हुई थी। पर तबसे अब तक बीजेपी दो लोकसभा चुनाव हार चुकी। कुछ राज्य भी गंवाए। पर अब तक न सुर मिला, न ताल। अपने राजस्थान में बीजेपी ने 2008 के चुनाव में पटखनी खाई। तो आडवाणी हों या बाकी निचले स्तर के नेता, सबने समन्वय की कमी पर ठीकरा फोड़ा। पर अबके गडकरी ने एजंडे में फिर सत्ता और संगठन में तालमेल का विषय रखा। तो जरा गडकरी के परफोर्मेंस ऑडिट फार्मूले का पैमाना देखिए। बीजेपी के सीएम कौन-कौन, पहले यह देख लें। गुजरात में नरेंद्र मोदी तीसरी बार सीएम। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान दूसरी बार। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह दूसरी बार। हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल दूसरी बार। कर्नाटक में येदुरप्पा दूसरी बार। उत्तराखंड में निशंक पहली बार। तो पंजाब-बिहार में सरकार के नेता भी बेहद अनुभवी। अब जरा देखो, इन लोगों को सत्ता-संगठन में तालमेल का पाठ कौन पढ़ाएंगे। महासचिव धर्मेंद्र प्रधान, उड़ीसा से खुद तो चुनाव हारे ही, अब पार्टी भी ढूंढे नहीं मिल रही। हर्षवर्धन, दिल्ली बीजेपी का बंटाधार उनके अध्यक्ष रहते हुआ। संघ के नुमाइंदे के तौर पर रामलाल होंगे, जो अब तक संजय जोशी जैसा करिश्मा नहीं दिखा पाए। गोपीनाथ मुंडे, जिन ने जातीय जनगणना पर पार्टी में पेच फंसाया। मुंबई में एक जिला अध्यक्ष को लेकर नितिन गडकरी से जंग छेड़ी। बीजेपी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। आखिर तब महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष गडकरी को हार माननी पड़ी थी। बी.सी. खंडूरी, जिन ने सीएम पद से हटाए जाने को लेकर बगावत का झंडा बुलंद कर दिया था। तो क्या अब मोदी, चौहान, रमन, येदुरप्पा, धूमल, निशंक जैसे जनरलों को हारे हुए सिपाहियों से 'सुशासन' और 'तालमेल' का पाठ पढऩा होगा? वैसे भी 2009 में बीजेपी में जो हारा, वही सिकंदर बना। सो 2010 में यह कुछ नया नहीं।
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31/05/2010
Monday, May 31, 2010
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bilkul sahi farmaya..
ReplyDeletebit more political...........gandhi raajniti ki badboo
ReplyDeleteraise social issue... on front page
because statements of these bas...urd leaders changes twice in a day
they should not be given preference for main headline news over social issues like prevalent poverty, naxalism, terrorism, unemployment, development isues, bla.. bla.. bla..