Wednesday, May 5, 2010

अट्ठाईस मिनट ही मर्यादा में रह पाए अपने सांसद

अपनी संसद को सचमुच ग्रहण लग चुका। एक विवाद सुलटता नहीं, दूसरा गले पड़ जाता। दोनों सदनों में बुधवार का दिन माफीनामे का रहा। दिल से कांग्रेसी मणिशंकर अय्यर हाल-फिलहाल राष्ट्रपति कोटे से राज्यसभा में मनोनीत हुए। सोमवार को उन ने विपक्ष के नेता अरुण जेतली को फासिस्ट कह दिया था। मणिशंकर को खुन्नस थी, दंतेवाड़ा कांड पर बहस के दौरान जेतली ने इशारों में ही उन्हें हाफ माओइस्ट कह दिया था। पर मणि ने सीधी टिप्पणी कर दी। सो राज्यसभा में तबसे गतिरोध जारी था। यों सरकार के वित्तीय कामकाज में विपक्ष ने अड़ंगा नहीं लगाया। पर बाकी कामकाज ठप पड़े थे। वैसे भी राज्यसभा में बिन विपक्ष के समर्थन के कांग्रेस का एक कदम भी चलना संभव नहीं। सो सरकार में शामिल कांग्रेसी मणिशंकर से खफा हो गए। माफी मांगने का दबाव बनाया। तो मणि ने प्रणव, बंसल, पृथ्वीराज की एक नहीं सुनी। जनार्दन द्विवेदी का फरमान गया। तो भी मणि नहीं डिगे। आखिर में दस जनपथ का संदेश ही काम आया। सो बुधवार को मणिशंकर को खेद जताना पड़ा। लोकसभा में भी कुछ ऐसा ही गतिरोध था। तृणमूल के सुदीप बंदोपाध्याय ने मंगलवार को सीपीएम के वासुदेव आचार्य के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की। पर माफी मांगने को राजी नहीं। सो बुधवार को मीरा कुमार ने आसंदी से टिप्पणी की। सुदीप के कल के आचरण और शब्द को अशोभनीय करार दिया। बोलीं- सदस्य के ऐसे आचरण को मैं खारिज करती हूं और उम्मीद करती हूं कि भविष्य में इस सदन का कोई भी सदस्य आसंदी को ऐसी कठोर टिप्पणी के लिए मजबूर नहीं करेगा। अब आसंदी से ऐसी टिप्पणी हो, फिर भी सुदीप सदन में माफी न मांगें। तो ऐसे जनाब को क्या कहेंगे आप। पर वासुदेव माफी की मांग पर अड़ गए। सो दोपहर तक सदन ठप रहा। तो विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की ओर से फार्मूला आया। विपक्ष की ओर से तमाम दलों के नेताओं ने वासुदेव से अपील की। सुदीप को माफ कर दो। वासुदेव ने भी बड़े होने के नाते बड़ा दिल दिखाया। बात रफा-दफा हो गई। पर सुदीप का गुरूर नहीं टूटा। बोल पड़े, संसद में कैसे व्यवहार करना, यह मुझे सीपीआई से सीखने की जरूरत नहीं। वाकई ममता बनर्जी के दल को वासुदेव से सीखने की क्या जरूरत। खुद ममता ही सिखाने को काफी। उदाहरण तो कल यहीं पर आपको बता चुके। पर माफीनामा चाहे जितने हो जाएं, मर्यादा तोड़ू रोग का इलाज नहीं हो रहा। आखिर हो भी कैसे, जब कोई पीठासीन अधिकारी सख्ती न दिखाए। सिर्फ माफीनामा और भत्र्सना कर देने से मर्यादा तोडऩे वालों का कुछ नहीं बिगड़ता, ना ही कोई शर्मिंदगी महसूस होती। अलबत्ता संसद की मर्यादा धूमिल जरूर हो जाती। तभी तो दोपहर दो बजे दोनों सदनों में माफीनामा हुआ। पर अट्ठाईस मिनट बाद ही मर्यादा फिर टूट गई। जनगणना में जाति और राष्ट्रीयता को लेकर बहस शुरू हुई। बीजेपी से अनंत कुमार ने मोर्चा संभाला। तो अनंत का फोकस पूरी तरह से बांग्लादेशी घुसपैठ पर रहा। सो लालू विचलित होकर पूछ बैठे, मुद्दे पर क्यों नहीं आ रहे। अपनी पार्टी का एजंडा क्यों चला रहे। इस पर सुषमा ने जवाब दिया, क्या आरजेडी का एजंडा चलाएं। तो लालू ने आरएसएस का एजंडा बता दिया। सो जैसे कांग्रेसी संसद में विरोधियों के मुंह से सोनिया गांधी का नाम सुनकर ही भडक़ जाते। वैसे ही बीजेपी संघ परिवार का नाम सुन। सो अनंत तैश में आ गए। लालू यादव को देशद्रोही और गद्दार कह दिया। बस क्या था, हंगामा शुरू हो गया। सदन स्थगित होकर फिर बैठा। तो अनंत ने सफाई दी- मैंने लालू को गद्दार नहीं कहा। बल्कि यह कहा कि लालू तय करें, वह भारत के साथ हैं या बांग्लादेश के साथ या पाक के साथ। पर लालू गुस्से से लाल हो चुके थे। अनंत गलती मानने को राजी नहीं हुए। तो मुक्का बांध लालू अनंत को मारने दौड़े। पर मुलायम और गुरुदास दासगुप्त ने रोक लिया। सो शाम तक गतिरोध नहीं टूटा। अब सुषमा स्वराज और अनंत कुमार खम ठोककर कह रहे- जब कुछ गलत नहीं कहा, तो शब्द वापस लेना या माफी किस बात की। पर एक कहावत है, कबूतर के आंख मूंद लेने से बिल्ली भाग नहीं जाती। सदन का रिकार्ड चीख-चीखकर कह रहा, अनंत ने लालू को गद्दार कहा। सदन में शरद यादव ने भी कहा- मुझे भी ऐसा लगा, आप प्रोसीडिंग देख लो। रिकार्ड में नहीं है, तो अलग बात, पर बहुत लोगों ने सुना। शरद यादव ने सोलह आने सही कहा। अब जरा रिकार्ड में दर्ज अनंत का बयान आप देख लो- हम बांग्लादेश के साथ नहीं, घुसपैठियों के साथ नहीं, वोट बैंक पॉलिटिक्स के साथ नहीं, हम आप जैसे देश को बेचने के लिए तैयार नहीं हैं, आप देश के साथ .... (गद्दारी) कर रहे हैं। यों गद्दारी शब्द कार्यवाही से हटा दिया गया। आसंदी पर बैठे डिप्टी स्पीकर करिया मुंडा की टिप्पणी भी रिकार्ड में दर्ज। जब कहा- प्लीज डू नॉट यूज दैट वर्ड। फिर भी अनंत सीनाजोरी कर रहे, तो क्या कहेंगे। अब सुषमा-अनंत की दलील, अगर गद्दार शब्द असंसदीय। तो माधुरी गुप्ता के बारे में सदन में किस शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा। पर बीजेपी लाख दलील दे, सदन का रिकार्ड यही कह रहा, अनंत झूठ बोल रहे। अब भी अनंत ने माफी नहीं मांगी, तो सदन में बहस संभव नहीं। अगर ऐसा हुआ, तो बीजेपी और सरकार की सांठगांठ उजागर होगी। जाति जनगणना पर सरकार में ही दो-फाड़। बिन बहस सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हुआ। तो सरकार को बचने का मौका मिल जाएगा।
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05/05/2010

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