तो बिहार में होय वही, जो नीतिश रचि राखा। पर बीजेपी भी अब आत्मसम्मान दिखा रही। आत्मसम्मान भी पटना पहुंचकर जागा। जब नीतिश ने न्योता देकर खाना नहीं खिलाया। वैसे बीजेपी पटना में चुनावी शंखनाद के बजाए कपास ओटकर लाई। अगर पटना में ही कपास ओटने के बजाए सीधे हरि भजन किया होता, तो यह नौबत नहीं आती। आखिर नीतिश ने बीजेपी वर्किंग कमेटी के दिन जो एलान किया था, हफ्ते भर बाद उसे कागजी जामा पहना दिया। अब नया तो कुछ हुआ नहीं। पर बीजेपी को हफ्ते भर बाद समझ आई, आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा रहे नीतिश। अब ऐसी शिकायत बिहार बीजेपी के नेता अरसे से कर रहे। एक बारगी तो सुशील कुमार मोदी के खिलाफ बीजेपी में दो-फाड़ हो गया। गुप्त वोटिंग के जरिए विधायकों की रायशुमारी करा आलाकमान ने सुशील मोदी को अभयदान दे दिया। साढ़े चार साल से बिहार बीजेपी नीतिश के आगे नतमस्तक। कभी ऐसी त्यौरियां नहीं चढ़ाईं, जैसी अबके चढ़ा रही। सो बीजेपी-जदयू विवाद में लालू, पासवान, कांग्रेस जैसे मुहाने पर पहुंच चुके दलों की लाटरी खुल गई। मानसून अभी दिल्ली तो नहीं पहुंचा। मौसम विभाग की मानें, तो मानसून बिहार में ही ठहर चुका। सो मानसून में सब नहा रहे। लालू तो दिल से दुआ कर रहे, गठबंधन कल टूटे, सो आज टूट जाए। सो उन ने नीतिश पर बिहार की छवि खराब करने का आरोप लगाया। बोले- नीतिश अल्पसंख्यकों को बेवकूफ बनाने का स्टंट कर रहे। यों बेवकूफ बनाने को ही राजनीति कहते। जिसकी मिसाल लालू ने 15 साल तक बिहार में दी, बाकी पांच साल रेलवे में। कांग्रेस तो यूपी दोहराने के चक्कर में। जैसे यूपी के चतुष्कोणीय मुकाबले में कांग्रेस बाजी मार गई। वैसे ही बिहार में चतुष्कोणीय मुकाबला चाह रही। ताकि खफा सवर्ण और मुस्लिम वोट कांग्रेस की झोली में गिरे। पर फिलहाल गठबंधन टूटने की आस लगाए विरोधियों की मंशा पूरी होती नहीं दिख रही। बीजेपी जबर्दस्त उथल-पुथल के दौर से गुजर रही। नीतिश कुमार ने नरेंद्र मोदी और वरुण गांधी को बिहार चुनाव अभियान से बाहर रखने की शर्त रख दी। सो बीजेपी के लिए अब प्रतिष्ठा का सवाल बन गया। यों बीजेपी अभी भी वही पुराना राग दोहरा रही। चुनाव में कौन नेता प्रचार करेगा और कौन नहीं, यह फैसला चुनाव के वक्त अभियान समिति करती। पर जदयू से मोदी-वरुण का नाम लेकर रखी गई शर्त गले की फांस बन गई। बीजेपी आलाकमान में फिलहाल किसी का ऐसा बूता नहीं, जो मोदी को नाराज कर सके। याद है ना, राम जेठमलानी को बीजेपी के कोटे से टिकट न देने की बात थी। पर मोदी ने चाहा, तो गडकरी ना नहीं कर सके। सो मोदी ने अब नीतिश कुमार से निजी रार ठान ली। मंगलवार को नितिन गडकरी संग नरेंद्र मोदी अपने उदयपुर में थे। तो अपनी आदत से परहेज नहीं किया। कहते हैं ना, हिरण लाख बूढ़ा हो जाए, कुलांचें भरना नहीं भूलता। बीजेपी के किसी और सीएम ने पटना में इश्तिहार देकर शेखी नहीं बघारी होगी। लेकिन मोदी की हृदय सम्राट बनने की ललक खत्म नहीं हो रही। पर वही इश्तिहार गठबंधन के लिए काल बन गया। बिहार को राहत के लिए दिए पैसे का गुणगान किया। तो नीतिश कुमार ने लौटा दिया। अब मंगलवार को उदयपुर में मोदी की वही गर्जना राजस्थान के लिए सुनाई दी। मोदी बोले- विकास की राजनीति हमारा मकसद। बहन वसुंधरा सीएम थीं, नर्मदा का पानी समय से पहले मांगा। तो हमने राजस्थान को पानी दिया। अब मुश्किल में शायद अपने अशोक गहलोत। नीतिश ने तो पांच करोड़ का चैक लौटा दिया। पर नर्मदा का पानी उलटा गुजरात कैसे लौटाएंगे। यों यह तो मजाक की बात। पर गठबंधन के लिए मंगलवार भी ऊहापोह से भरा रहा। सोमवार को सीपी ठाकुर आडवाणी-गडकरी से मिले। तो मंगलवार को सुशील कुमार मोदी और रविशंकर प्रसाद आडवाणी से मिले। बीजेपी कोर ग्रुप की मीटिंग तय हो गई। सो मीटिंग से पहले सुशील मोदी ने शरद यादव से मुलाकात की। फिर कांग्रेसी कल्चर में देर रात गडकरी ने मीटिंग की। तो बिहार बीजेपी के नेताओं ने जमकर भड़ास निकाली। पर हाईकमान गठबंधन न तोडऩे का फैसला कर चुका। सो सुबह चढ़ा पारा शाम को गिर गया। नीतिश केबिनेट की मीटिंग से बीजेपी के मंत्री गैरहाजिर होने वाले थे। पर शाम तक बात बन गई, सो पटना में मौजूद मंत्री केबिनेट में गए। अब गठबंधन भले बरकरार रहे, पर नीतिश विरोधी बीजेपी नेता अड़ गए। विवाद नीतिश ने शुरू किया, सो नीतिश ही खत्म करें। यों सचमुच राई का पहाड़ बन गया। अब दोनों को अहसास, बात कुछ अधिक दूर चली गई। पर नरेंद्र मोदी ने विवाद में सीधा हाथ डाल दिया। सो चुनाव प्रचार के मुद्दे पर बीजेपी ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की। बीजेपी के गिरिराज सिंह ने तो कह दिया- मोदी जरूर आएंगे। पर शाहनवाज और सीपी ठाकुर ने वक्त आने पर चुनाव समिति के हवाले छोड़ दिया। यों गठबंधन बचाने के लिए बीजेपी को फार्मूला मानना ही पड़ेगा। भले बीजेपी कुर्ता फाड़ क्यों न चिल्लाएं- मोदी-वरुण आएंगे, हमारे मोदी-वरुण आएंगे। पर बिहार में बीजेपी-जदयू गठबंधन रहेगा, तो आप लिख लो, होय वही, जो नीतिश रचि राखा।
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22/06/2010
Tuesday, June 22, 2010
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