Wednesday, June 23, 2010

गांठ का गट्ठर ले चुनाव में उतरेगा गठबंधन

आखिर वही हुआ, जो नीतिश कुमार ने चाहा। बिहार में गठबंधन की खातिर बीजेपी को सरेंडर करना पड़ा। पर दिखावे का आत्मसम्मान आस्तीन चढ़ा-चढ़ा दिखा रहे। यों सार्वजनिक तौर पर बीजेपी का रुख यही, नीतिश की शर्त गवारा नहीं। अभी भी कुर्ता फाड़ कह रही- नरेंद्र मोदी और वरुण प्रचार में जाएंगे या नहीं, यह फैसला बीजेपी करेगी। पर बुधवार को नीतिश के खास शिवानंद तिवारी ने दो-टूक एलान कर दिया, बिहार में नीतिश सीएम। सो कौन आएगा, कौन नहीं, नीतिश तय करेंगे। नीतिश के तेवर देख बीजेपी ने शर्त मानना ही मुफीद समझा। आखिर तय हो गया, मोदी को बिहार के प्रचार में न बुलाया जाएगा, न जाएंगे। बीजेपी प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने कुछ ऐसा ही बयान दिया। बोले- 'नरेंद्र मोदी को जहां बुलाया जाता है, वहीं जाते हैं। वह हमारे स्टार प्रचारक हैं, पर जहां तक बिहार का सवाल है, तो बिहार में नीतिश सीएम हैं और हर जगह सीएम ही स्टार प्रचारक होता।'  अब मुंडी हां में और हाथ ना में हिलाना कोई बीजेपी से सीखे। सीधा-सीधा इशारा कर दिया, मोदी बिहार नहीं जाएंगे। पर जुबां से मानना तो दूर, अभी भी तेवर दिखा रही। वेंकैया नायडू कह रहे- 'मोदी-वरुण को लेकर न कोई शर्त रखी गई और ना ही अभी उन दोनों को प्रचार से दूर रखने का कोई सवाल उठता।' पर सच्चाई वेंकैया के दावे के बिलकुल उलट। वैसे राजनीति का तकाजा यही, बीजेपी अपनी जुबां से यह बात नहीं कह सकती। सो परदे के पीछे गठबंधन की खटास दूर करने की पहल तेजी से हुई। यों नीतिश का दबदबा इसी से साफ, अब तक बीजेपी का कोई नेता सीधे बात करने सामने नहीं आ पा रहा। सो गठबंधन की खटास दूर करने की कोशिश शरद यादव के जरिए हुई। वेंकैया हों या बीजेपी के दूसरे नेता, सबने शरद यादव के सामने ही अपनी व्यथा रखी। बीजेपी के स्वाभिमान की हवा निकल गई। तो नीतिश कुमार ने भी थोड़ी नरमी दिखाई। शरद यादव के जरिए यह कहलवा दिया, गुजरात को चैक लौटाना कुछ बड़ा कदम हो गया। पर नीतिश ने खुद कुछ नहीं कहा और आप लिख लो, न कहेंगे। यों बीजेपी अभी भी कोशिश कर रही, एकाध रोज में नीतिश ही प्रेस कांफ्रेंस कर गठबंधन पर ड्रामे का पटाक्षेप करें। ताकि बीजेपी की लाज बच जाए। पर अहम सवाल, हमेशा बीजेपी अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मार लेती? कहने को तो बीजेपी के पास रणनीति के बड़े-बड़े तीसमार खां। पर सिर्फ गठबंधन का ही किस्सा लो, तो मायावती हों या देवगौड़ा, चौटाला हों या नवीन पटनायक या फिर झारखंड में शिबू। बीजेपी ने सब जगह मुंह की खाई। पीढ़ी परिवर्तन के बाद बीजेपी का यह हश्र क्यों? शायद अब बीजेपी वाजपेयी की 'हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा' वाली पार्टी नहीं रही। वाजपेयी ने 24 दलों के साथ इंद्रधनुषी गठबंधन चलाकर मिसाल कायम की। पर किसी सहयोगी के आगे न कभी हार मानी और ना ही रार ठनने दी। अब झारखंड और बिहार का ही किस्सा देख लो। तो वाजपेयी की बीजेपी और गडकरी-सुषमा-जेतली की बीजेपी का फर्क साफ। कई पुराने भाजपाई तो अब यह कहते मिल जाएंगे, अटल बिहारी की बीजेपी में अब गगन विहारियों की फौज जम चुकी। तभी तो पटना में वर्किंग कमेटी के वक्त नरेंद्र मोदी पर हृदय सम्राट बनने की ऐसी धुन सवार हुई, गठबंधन की बाट लगा दी। अब मोदी के खिलाफ बीजेपी ही नहीं, एनडीए में सवाल उठने लगा। बीजेपी के मंच पर बैठने वाली चौकड़ी में से एक ने बेहद तल्खी दिखाई। उन ने साफ-साफ पूछा-  'आखिर मोदी को इश्तिहार देने की जरूरत क्या थी। हम पटना किस मकसद से गए थे, पर उस इश्तिहार ने पूरी वर्किंग कमेटी को धो दिया। अच्छा-भला गठबंधन हिला दिया।' यानी जब वरिष्ठ नेताओं ने मोदी पर भृकुटि तानी, तो मोदी भी नरम पड़ गए। उधर सुशील कुमार मोदी ने भी शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात में मोदी के इश्तिहारों पर भड़ास निकाली। आलाकमान के सामने दलील रखी, साढ़े चार साल से सब कुछ सहज चल रहा था। पर मोदी के इश्तिहार ने बखेड़ा खड़ा कर दिया। बिहार में नरेंद्र मोदी को दखल देने की क्या जरूरत थी। पर सुशील मोदी ने बंद कमरे में यह गुबार निकाला। तो बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने मजाक-मजाक में यहां तक कह दिया, इश्तिहार छपवाकर पीएम बनने चले थे मोदी। बीजेपी में एक बड़ा तबका मोदी की महत्वाकांक्षा से खार खाए बैठा। वैसे पटना में जो हुआ, भले नीतिश ने चैक लौटाकर अति कर दी। पर विवाद के सूत्रधार नरेंद्र मोदी ही। सो सिर्फ बीजेपी में ही मोदी के खिलाफ आवाज नहीं उठी, अलबत्ता शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे ने भी अपना गुबार निकाला। यों जब लोकसभा चुनाव के वक्त मोदी महाराष्ट्र के प्रभारी बनाए गए, तभी बाल ठाकरे ने मोदी की हैसियत बता दी थी। अबके उन ने बीजेपी को नसीहत दी। मुखपत्र सामना में लिखा- 'अगर बीजेपी नरेंद्र मोदी के जरिए बिहार की सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रही, तो बीजेपी को शुभकामनाएं। पर यह न भूलें, मोदी उड़ीसा, दिल्ली, महाराष्ट्र, यूपी के भी चुनाव प्रचार में गए। पर क्या हश्र हुआ, बीजेपी को बखूबी मालूम।' अब सोचो, आपस में ही बीजेपी ऐसे उलझ गई, तो गठबंधन का क्या होगा? मोदी चाहे जो कहें, पर बिहार के गठबंधन में गांठ नरेंद्र मोदी की ही देन। सो समझौते के बाद भी अब बीजेपी-जेडीयू गठबंधन गांठ का गट्ठर लेकर ही चुनावी समर में कूदेगा।
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23/06/2010

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