Friday, July 9, 2010

बदनाम राजनीति में अब कोई वाजपेयी क्यों नहीं?

'बदनाम होंगे, तो क्या नाम न होगा।' वाजपेयी के बाद की बीजेपी कुछ साल से इसी फार्मूले पर चल रही। अब नितिन गडकरी भी उसी परंपरा के वाहक। सो अध्यक्षी संभाले छह महीने ही बीते। पर जुबान ऐसी चली, अब तक छह विवाद भी खाते में जोड़ लिए। पहला विवाद तो कुर्सी संभालने के 25वें दिन ही हो गया। जब अप्रवासियों को महानगरों की समस्या बता गए। तो बीजेपी की सबसे बड़ी सहयोगी जेडीयू ने गडकरी का पुतला फूंक सलामी दी थी। फिर फरवरी के इंदौर अधिवेशन में राम मंदिर के बाजू में मस्जिद बनाने का बयान। अप्रैल में सिख विरोधी दंगे को गुजरात दंगे से जोड़ा। दंगों को आम लोगों की प्रतिक्रिया बताया। तो खालसा पंथ ने एतराज जताया। सो फौरन गडकरी को खंडन जारी करना पड़ा। फिर बारह मई को चंडीगढ़ की रैली में लालू-मुलायम को सोनिया गांधी के तलवे चाटने वाला कुत्ता बता बखेड़ा खड़ा किया। पर राजनीतिक भूचाल देख गडकरी ने चंडीगढ़ में जुबान से जो उगला, वही निगल लिया। पर लालूवादी रामकृपाल ने गडकरी को छछूंदर कह दिया। अब दिग्विजय सिंह का नाम नहीं लिया। पर इशारों में ही पूछ लिया, आजमगढ़ में आतंकी के घर जाने वाले महाराणा प्रताप की औलाद हैं या औरंगजेब की? तो गुरुवार को देहरादून में संसद हमले के दोषी अफजल को कांग्रेस का दामाद बता दिया। सो बवाल मचना ही था। पर गडकरी का तुर्रा देखिए, अबके माफी मांगने से इनकार कर दिया। खम ठोककर बोले- 'जो कहा, वह सही, मैं अपने बयान पर कायम हूं।' पर कांग्रेस राशन-पानी लेकर चढ़ गई। गडकरी को मानसिक रोगी बताया। पर गडकरी जैसा सुलझा इनसान इतना उलझा बयान क्यों दे रहा? बीजेपी में एक थ्योरी चल रही, जो कांग्रेसी बयानों से पुष्ट हो रही। पिछले कुछ समय से कांग्रेस नेता गडकरी को गंभीरता से नहीं ले रहे। कभी कद पर उंगली उठा रहे, तो कभी पद पर। सो गडकरी ने जान-बूझ कर कांग्रेस नेताओं को निशाना बनाना शुरू किया। ताकि सुर्खियों के सरताज बने रहें। यों सचमुच पिछले शुक्रवार जब गडकरी ने महंगाई पर सवाल पूछा, तो मनीष तिवारी ने महंगाई के भूत से भागने को गडकरी के कद पर सवाल उठा दिए। कहा- 'गडकरी इतने बड़े नेता नहीं, जो कांग्रेस के इस मंच से जवाब दें।' पर अब गडकरी ने भाषाई मर्यादा तोड़ी, तो मनीष तिवारी गडकरी को पद की मर्यादा याद दिला रहे। शुक्रवार को कांग्रेस मंच से शकील अहमद उतरे। तो उन ने गडकरी को आड़े हाथों लिया। सो सवाल हुआ, आज गडकरी पर क्यों बोल रही कांग्रेस? तो शकील ने मनीष की उस राय को निंदा की एक शब्दावली बताया। अब गडकरी के प्रवक्ता भी कुछ ऐसी ही दलील दे रहे। रविशंकर बोले- 'गडकरी ने देश की पीड़ा जाहिर की।' तो सवाल, क्या भावना व्यक्त करने को राजनीति की मर्यादाएं ऐसे ही टूटेंगी? अगर गडकरी ने मर्यादा तोड़ी, तो कांग्रेस भी दूध की धुली नहीं रही। दिल्ली में कांग्रेस ने गडकरी को मनोरोगी बताया। तो देहरादून से कांग्रेस ने पलटवार कर पूछा, अगर अफजल को दामाद बता रहे। तो गडकरी बताएं, मसूद अजहर कौन था? जिसे सम्मान सहित जसवंत सिंह कंधार छोडक़र आए थे। पर कब तक मर्यादाएं टूटती रहेंगी? कभी सोनिया गुजरात के सीएम मोदी को मौत का सौदागर कहतीं, कभी मोदी सोनिया को। मई में मध्य प्रदेश विधानसभा के बाहर कांग्रेसी एमएलए ने बीजेपी की महिला एमएलए ललिता के खिलाफ ऐसी अभद्र टिप्पणी की, जिसे लिखा नहीं जा सकता। क्या यही अपनी राजनीति का स्तर? एक वक्त था, जब अटल बिहारी वाजपेयी गुजरात दंगों से आहत हुए। तो सिर्फ एक शब्द- 'राजधर्म' का पालन करने की टिप्पणी से सारी बात कह दी। जब 2004 के चुनाव में प्रमोद महाजन ने सोनिया गांधी की तुलना मोनिका लेविंस्की से कर दी। नरेंद्र मोदी ने राहुल को जर्सी बछड़ा, तो सोनिया को इटली की.... कह दिया। तो कांग्रेसियों से पहले वाजपेयी ने एतराज किया। भाषा की लक्ष्मण रेखा न लांघने की नसीहत दी। पर आज कांग्रेस या बीजेपी में ऐसा कोई नेता क्यों नहीं, जो वाजपेयी जैसी दो-टूक नसीहत दे सके। अब तो कोई किसी को कुत्ता कह रहा, कोई छछूंदर। कोई मनोरोगी, तो कोई कुछ। राजनीतिक मुद्दे खत्म होते जा रहे। गाली-गलौज तो आम बात हो गई। संसद के पिछले सत्र को ही लें, तो मर्यादा तोड़ू सत्र कहना उम्दा रहेगा। कोई भी दल अछूता नहीं रहा था। आखिर में अनंत-लालू प्रकरण में सुषमा ने माफी मांगी। बाद में सुषमा ने कहा था- 'भले कहीं भी पार्टी नेता कुछ बोल जाएं, पर कम से कम संसद में वाणी पर संयम होना चाहिए।' पर गडकरी तो सांसद ही नहीं। सो बाहर ही सुर्खियां बटोर रहे। पर विरोधी ही नहीं, अब तो अपने भी गडकरी को संयम की नसीहत दे रहे। शुक्रवार को शरद यादव ने भी गडकरी की भावना को जायज माना, पर भाषा पर एतराज जता गए। बोले- 'सच मर्यादा में अधिक अच्छा लगता है।' पिछली बार लालू-मुलायम को कुत्ता कहा था। तो कलराज मिश्र ने नसीहत दी थी- 'नेता संयम में रहकर भाषा का प्रयोग करें। क्योंकि नेता जनता से जुड़ा होता है और जनता पर नेता की बात का फर्क पड़ता है।' सो कांग्रेस को फिलहाल छोडि़ए, गडकरी पर नसीहतों का असर कितना, यह तो भविष्य बताएगा। पर यह क्या, इधर गडकरी ने मर्यादा तोड़ू भाषा पर खम ठोक दिया। उधर हरियाणा के झिंझोली में बीजेपी के मंडल स्तरीय नेताओं के प्रशिक्षक वर्ग का उद्घाटन किया। अब सोचिए, जब बड़े मियां ऐसे, तो छोटे मियां क्या सीखेंगे?
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09/07/2010

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