अब हलाल नहीं, झटके में आम आदमी की गर्दन उतरने लगी। सो रातों-रात पेट्रोल की कीमत बढ़ा ऐसा झटका दिया, लोग उफ भी न कर पाए। महंगाई को बढ़ा जनता का गला दबाना कोई अपने नेताओं से सीखे। रात में कीमतें बढ़ाईं, तडक़े देश भर में सीबीआई के छापे डलवा दिए। सो दिन भर अपनी मीडिया का जो भोंपू महंगाई पर बजता, सीबीआई के छापों में ही उलझा रहा। तभी तो न जनता का आक्रोश बाहर आ सका, न राजनीतिक दलों के पहले जैसे तेवर दिखे। यों युवा मोर्चा के बैनर तले जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर कीमत वापस लेने की मांग की। पर कांग्रेस की दबंगई का इतिहास कौन नहीं जानता। जब कांग्रेस ने एक बार कमिटमेंट कर दी, तो खुद की भी नहीं सुनती। अगर जेपीसी की ना कर दी, तो कोई माई का लाल हां नहीं करवा सका। भले संसद के समूचे सत्र की ऐसी-तैसी हो गई। ऐसे ही एटमी डील पर मनमोहन ने कमिटमेंट कर दी, तो लेफ्ट की समर्थन वापसी भी बेअसर रही। पर यह काहे का लोकतंत्र, जहां जनता की आवाज झटके से काटे जाने वाले बकरे की तरह दबा दी जाती। क्या यह लोकतांत्रिक तानाशाही नहीं? अगर सरकार को ऐसी ही तानाशाही दिखानी, तो कभी महंगाई पर क्यों नहीं दिखाती? पर जनता की फिक्र तो सिर्फ चुनावी मौसम में ही। तभी तो पिछली बार मनमोहन अमेरिका की खातिर सरकार कुर्बान करने पर अड़ गए थे। अबके भ्रष्टाचार पर जेपीसी से बचने के लिए। बुधवार को देश भर में 34 जगहों पर सीबीआई ने छापे मारे। ए. राजा के करीबियों के साथ-साथ करुणानिधि की बेटी कनीमोझी तक आंच पहुंच गई। सो कीमत में बढ़ोतरी से ध्यान बंटाने को नया सुर्रा छोड़ दिया। अब कांग्रेस-डीएमके के रिश्तों में दरार की खबरें उडऩे लगीं। अपना मीडिया तो बहुमत के गुणा-भाग में भी जुट गया। करुणा निकाला, जया जोड़ी। कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा और मनमोहन का कुनबा खड़ा कर दिया। पर अपने मीडिया का करेक्टर फिर कभी तफ्सील से बताएंगे। फिलहाल बात चेन्नई में बुधवार को 27 जगह पड़े छापों से डीएमके-कांग्रेस में मची खलबली की। छापों से खफा डीएमके ने शनिवार को चेन्नई में फैसलाकुन बैठक का एलान कर दिया। पर आंकड़ों का समीकरण ऐसा, रिश्ता टूटा, तो केंद्र और राज्य दोनों की सरकार खतरे में। तमिलनाडु में अप्रैल में चुनाव होने। पर राजनीतिक हालात डीएमके के खिलाफ। सो कांग्रेस भी अब जयललिता की अन्नाद्रमुक से पींगें बढ़ाने की फिराक में। पर कांग्रेस की रणनीति, डीएमके खुद छोडक़र जाए। सो कांग्रेस जानबूझकर ऐसी परिस्थितियां बना रही कि डीएमके गठबंधन छोडऩे को मजबूर हो जाए। कांग्रेस की इस रणनीति की वजह भी साफ। भ्रष्टाचार के दलदल में अब कांग्रेस भी फंसने लगी। सो डीएमके को अलग कर ए. राजा की बलि लेने की तैयारी। ताकि विपक्ष को चित कर जनता को संदेश दे सके। यानी पूरे खेल में कांग्रेस का संदेश होगा, भ्रष्टाचारी मंत्री तक को भी नहीं बख्शा। डीएमके से रिश्ता तोड़ सरकार दांव पर लगा दी। पर यही काम तो कांग्रेस ने झारखंड में मधु कोड़ा के साथ किया। कोड़ा फिलहाल तिहाड़ में, राजा को कांग्रेस कहां भेजेगी, यह भविष्य के गर्भ में। पर कछुआ से खरगोश बनी सीबीआई का काम कांग्रेस का कार्यक्रम बता रहा। सो कांग्रेस और डीएमके के बीच तलाक होना तय मानिए। अब सिर्फ वक्त, वक्ता और स्थान का इंतजार। रही बात मनमोहन सरकार पर खतरे की, तो अब अपने मनमोहन सरकार बचाने में माहिर हो चुके। पिछली बार सांसदों की बोली शुरू तो 25 करोड़ से हुई, पर कहां तक गई, मालूम नहीं। तब अमेरिका से एटमी करार वजह थी। अबके तो एक नील 76 खरब के भ्रष्टाचार पर बलि का मुद्दा। सो सांसदों के रेट क्या होंगे, भगवान ही जाने। पर अब भ्रष्टाचार हो या महंगाई, भुगतना तो आम आदमी को ही। पेट्रोल में आग लगा अब डीजल, रसोई गैस की तैयारी। पर सवाल, पेट्रोल-डीजल की कीमतें कहां जाकर थमेंगी? जब एनडीए से कांग्रेस ने सत्ता छीनी, तो दिल्ली में पेट्रोल 30 और डीजल 20 रुपए लीटर थी। पर आज पेट्रोल करीब 60, तो डीजल 40 रुपए के पार। आज भी पेट्रोल की कीमतें पाकिस्तान में 26, बांग्लादेश में 22, नेपाल में 34, बर्मा में 30, अफगानिस्तान में 36 रुपए लीटर। पेट्रोल की उत्पादन कीमत महज 20 रुपए, पर भारत में यह तेल नहीं, राजस्व का कुआं बन चुका। सो बाकी टेक्स के रूप में आम आदमी से वसूल रही सरकार। मनमोहन दूसरी बार पीएम बने, पर संयोग कहें या या कुछ और। पर पेट्रोल-डीजल, दाल, चावल, आटा, सब्जी, दूध, चीनी सभी चीजों के दाम दुगुने हो चुके। भ्रष्टाचार की रफ्तार तो ऐसी, आम आदमी गिनती भूल जाए। स्विस बैंक के एक डायरेक्टर ने कहा था- भारतीय गरीब हैं, भारत नहीं। भारतीयों के 280 लाख करोड़ रुपए स्विस बैंक में जमा, जिससे तीस साल तक भारत का टेक्सलेस बजट बन सकता। साठ करोड़ रोजगार पैदा हो सके। देश के दूरदराज गांव से दिल्ली तक चार लेन की सडक़ें बन सकतीं। पांच सौ सामाजिक परियोजनाओं को मुफ्त बिजली मिल सकती। देश के हर नागरिक को साठ साल तक दो हजार रुपए मंथली मिल सकते। पर इस धन को लाने के लिए कोई पहल नहीं। अलबत्ता पिछले छह महीने में छठी बार जनता पर बोझ डाल दिया।
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15/12/2010
Wednesday, December 15, 2010
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