न कभी ऐसी सरकार देखी, न कभी ऐसा विपक्ष। अब दोनों पक्ष एक-दूसरे पर कुछ इसी अंदाज में आरोप लगा रहे। संसद ठप होने के लिए आडवाणी ने सरकार को कोसा। बोले- ऐसा कांग्रेस की वजह से हुआ। तो जवाब में कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी बोले- बीता सत्र अलग तरह से याद किया जाएगा। ऐसा विपक्षी आचरण हमने कभी नहीं देखा। अब कांग्रेस-बीजेपी ने एक-दूसरे में क्या देखा या नहीं, यह वही जानें। पर देश की जनता दोनों का आचरण बखूबी देख रही। सो भ्रष्टाचार में घिरी कांग्रेस पर आडवाणी ने फिर चोट की। सडक़ों पर संघर्ष का औपचारिक एलान हो गया। दिल्ली, मुंबई, जयपुर समेत देश के तमाम शहरों में तीन महीने तक भ्रष्टाचार विरोधी रैलियां होंगी। आडवाणी ने टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले को बहुआयामी बता फिर जेपीसी की मांग दोहराई। बोले- सत्र में कोई कामकाज न होना भी नतीजा देने वाला रहा। आडवाणी बोले- संसद में विपक्ष इस कदर सरकार को नहीं घेरता, तो राजा की छुट्टी नहीं होती। पर आडवाणी को मलाल, भले राजा गए, पर सरकार की जिद के चलते प्रजा को सच्चाई मालूम नहीं पड़ी। राजा के घटाले में किसने-किसने मलाई काटी, यह बात दबी हुई। सो विपक्ष जेपीसी की मांग से फिलहाल पीछे नहीं हटेगा। आडवाणी ने बजट सत्र की रणनीति पर चुप्पी साध ली। मध्यावधि चुनाव के सुर्रे को भी उन ने नकार दिया। यानी कुल मिलाकर आडवाणी ने भ्रष्टाचार के इर्द-गिर्द ही कांग्रेस को घेरने की कोशिश की। सरकार और कॉरपोरेट लॉबी के गठजोड़ का जिक्र कर आडवाणी ने सोनिया पर भी चुटकी ली। बोले- पीएम को तो बहुत सी बातें पता भी नहीं होतीं। सो अब तक लगता था- केबिनेट दस जनपथ से तय होता। पर नीरा राडिया के टेप से हमारा भ्रम टूट गया। अब पता लगा, सोनिया भी नहीं, कॉरपोरेट लॉबी केबिनेट तय करती। सचमुच देश और पीएम पद के लिए इससे बड़ी विडंबना नहीं हो सकती। जब पीएम का विशेषाधिकार भी कॉरपोरेट जगत के लिए दलाली करने वाले हथिया लें। तो व्यवस्था से आम आदमी क्या उम्मीद करेगा? टाटा और अंबानी के लिए लॉबिंग करने वाली नीरा राडिया के टेप खुलासे से सारा देश सकते में। पर देश के हर बड़े ताजा मसलों में मौन साधने वाले बाबा मनमोहन को कोई हैरत नहीं। सो मंगलवार को पीएम मनमोहन ने ऐसी बात पर चिंता जताई, जिसका कोई राष्ट्रीय सरोकार नहीं। उन ने फोन टेपिंग से हुए बड़े खुलासे पर कोई चिंता जाहिर नहीं की। अलबत्ता चिंता इस बात पर जताई कि टेप लीक कैसे हो रहे। पीएम ने बाकायदा केबिनेट सैक्रेट्री के.एम. चंद्रशेखर को हिदायत दे महीने भर में रपट मांग ली। क्या कभी पीएम ने बढ़ती महंगाई पर महीने भर में कोई रपट मंगाई? विज्ञान भवन में इंडियन कॉरपोरेट वीक का उद्घाटन करते हुए पीएम बोले- उद्योग जगत की नर्वसनेस से हम वाकिफ । अब अपने पीएम के बारे में क्या कहें, जिन्हें कॉरपोरेट जगत के नर्वसनेस की चिंता। भले भ्रष्टाचार के भंवर को देख अपना देश नर्वस क्यों न हो जाए। पर पीएम के बयान का कॉरपोरेट जगत ने दिल से स्वागत किया। उद्योगपति और सांसद राहुल बजाज ने खुशी तो जताई। पर कॉरपोरेट और राजनीति की सांठगांठ का बखान कर गए। बोले- गैर कानूनी ढंग से राजनीतिक दल कारोबारियों से फंड लेते। सो दोनों अपनी-अपनी जगह गलत हैं। सचमुच सरकार की नीतियां कैसे खास लोगों के लिए बनतीं, यह किसी आम आदमी से पूछकर देखिए। पर कोई उद्योगपति अगर दस रुपए का चंदा देता है, तो बदले में सरकार से दस करोड़ का काम भी करवाता। पर सवाल, आखिर अपने मनमोहन कभी आम आदमी की खातिर चिंता क्यों नहीं दिखाते? संसद में अमेरिका से जुड़े मुद्दों पर बहस हो, तो पीएम एक नहीं, चार-चार बार दखल देते। पर महंगाई की बात हो, तो पीएम की जुबां नहीं खुलती। किसानों की आत्महत्या पर आत्मा नहीं कचोटती। कॉरपोरेट जगत का दर्द मनमोहन को अपना सा लगता। नमूना आप खुद देख लो। संसद सत्र निपटा, तो पीएम की जुबां टाटाओं, अंबानियों को राहत देने के लिए खुली। पर मंगलवार की रात से ही एक बार फिर पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ गए। यानी मालदार कंपनियों की चिंता में आम आदमी की चिता सजाई जा रही। सो भ्रष्टाचार पर कोई नजीर पेश करने वाली कार्रवाई होगी, उम्मीद नहीं। अगर भ्रष्टाचार के प्रति चिंता होती, तो बिहार के सीएम नीतिश कुमार की तरह केंद्र में भी नेता जज्बा दिखाते। बिहार में घपले की विधायक निधि खत्म हो गई। भ्रष्टाचारियों की संपत्ति जप्त कर उसके घर में स्कूल खोलने का प्रावधान बन गया। पर बिहार सरकार के इस फैसले को लागू करने में केंद्र ने साढ़े तीन साल लगा दिए। बिहार का बिल साढ़े तीन साल तक मंजूरी की बाट जोह रहा था। पर कार्यपालिका ही जब ऐसी, तो न्यायपालिका से क्या उम्मीद। अब तो छींटे न्यायपालिका पर भी पडऩे लगे। मद्रास हाईकोर्ट के जज रघुपति ने जुलाई 2009 में केंद्रीय मंत्री की ओर से धमकी की शिकायत की थी। तब हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एच.एल. गोखले ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन को नाम वाली चिट्ठी भेज दी। पर के.जी. बालाकृष्णन इनकार कर रहे। तो वही गोखले अब सुप्रीम कोर्ट में जज। सो उन ने पूरी कलई खोल दी। फिर भी बालाकृष्णन मानने को राजी नहीं। अब बालाकृष्णन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मुखिया। सो आम आदमी भला किससे उम्मीद करे।
----------
14/12/2010
Tuesday, December 14, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment