आतंकी कसाब की फांसी हाईकोर्ट से कनफर्म हो गई। तो इधर संसद की उलझी डोर भी सुलझ गई। सो अब इसे जूते और प्याज खाना कहें या लौट कर बुद्धू घर को आया, यह आप ही तय करें। पर सरकार अब जेपीसी को राजी। मंगलवार को खुद पीएम मनमोहन जेपीसी का इरादा जताएंगे। फिर गुरुवार को दोपहर दो बजे टेलीकॉम मिनिस्टर कपिल सिब्बल मोशन लाएंगे। जिसमें सभी मेंबरों के नाम और टर्म एंड रेफरेंस भी होंगे। बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की मीटिंग में जेपीसी पर बहस के लिए चार घंटे का वक्त तय हो गया। सो सवाल- जब जेपीसी माननी ही थी, तो शीत सत्र हंगामे में व्यर्थ क्यों जाने दिया। कांग्रेस और सरकार के तमाम दांव धरे रह गए। अब टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की चौतरफा जांच हो रही। सुप्रीम कोर्ट की मॉनीटरिंग में सीबीआई, तो पीएसी भी जांच कर रही। जस्टिस शिवराज पाटिल कमेटी अपनी जांच पूरी कर चुकी। यानी तमाम हथकंडों के बावजूद अब जेपीसी माननी ही पड़ी। सो अब टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की सारी जांच एक साथ चलेगी। पर कांग्रेस अब भी न तुम जीते, न हम हारे वाले अंदाज में इतरा रही। जेपीसी पर दोनों पक्षों में सहमति बन चुकी। पर कांग्रेस कह रही- अभी तक जेपीसी का एलान नहीं हुआ, सो टिप्पणी नहीं। यों दिल बहलाने को गालिब-ए-खयाल अच्छा। पर शीत सत्र से अब तक कांग्रेस अपनी फजीहत खूब करा चुकी। घोटालों पर बचाव के हर पेंतरा उलटा पड़ा। ए. राजा अपने राजदारों समेत गिरफ्तार हुए। नए-नवेले संचार मंत्री कपिल सिब्बल की काबिलियत भी धरी रह गई। पहले तो उन ने घोटाले को निल बता दिया। फिर ठीकरा ट्राई और एनडीए सरकार के सिर फोड़ा। सीएजी के गणित पर भी उंगली उठाई। पर सिब्बल की वकालत भी नहीं चली। उलटा सुप्रीम कोर्ट से फटकार मिली। पीएसी ने भी आंखें दिखा स्पीकर से शिकायत कर दी। फिर हाल ही में पीएम ने टीवी संपादकों के जरिए मोर्चा संभाला। पर गठबंधन की मजबूरी के राग ने पीएम को और कमजोर साबित कर दिया। सो अब कांग्रेस और सरकार जेपीसी को राजी। तो सवाल- सब कुछ लुटाकर होश में आए, तो क्या किया। दिन में गर चिराग जलाया, तो क्या किया? अगर कांग्रेस शीत सत्र में ही जेपीसी को राजी हो जाती। तो सुप्रीम कोर्ट मॉनीटरिंग वाली सीबीआई जांच का झमेला न होता। पर अब जेपीसी का एलान होने जा रहा। तो काबीना मंत्री दलील दे रहे- अब बाकी जांच के कोई मायने नहीं। पर हकीकत इसके उलट। सो कहीं कई जांच के चक्कर में निचोड़ देश को घनचक्कर न बना दे। संसदीय इतिहास में अब तक चार जेपीसी बन चुकीं। कांग्रेस राज में बोफोर्स और हर्षद मेहता दलाली कांड पर जेपीसी बनी। तो एनडीए राज में मार्केट घोटाले और शीतल पेय में पेस्टीसाइड के मुद्दे पर। अब टू-जी स्पेक्ट्रम पर पांचवीं जेपीसी बनने जा रही। पर इतिहास यही इशारा कर रहा- जेपीसी अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब नहीं रही। यों पांचवीं जेपीसी कितनी सफल, रपट आने के बाद ही पता चलेगा। पर जेपीसी के गठन की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। विपक्ष ने स्पेक्ट्रम, आदर्श, कॉमनवेल्थ और इसरो-देवास डील समेत जेपीसी मांगी। पर सरकार ने सिर्फ राजा से जुड़े स्पेक्ट्रम घोटाले की जेपीसी मानी। तो सुषमा स्वराज दलील दे रहीं- विपक्षी एकता बरकरार रखने और गतिरोध तोडऩे के लिए हमने टू-जी स्पेक्ट्रम पर ही जेपीसी मान ली। यों राजनीतिक हलकों में चर्चाएं कई और। बीजेपी के एक बड़े नेता का रिश्तेदार कॉमनवेल्थ में जुड़ा। तो दूसरे का आदर्श से जुड़े लोगों से बेहतर संबंध। सो गतिरोध तोडऩे के बहाने दोनों ने आदर्श, कॉमनवेल्थ को जेपीसी से बाहर होने दिया। अब देर से ही सही, पक्ष-विपक्ष ने संसद में बना गतिरोध तोड़ा। तो मंगलवार से संसद की कार्यवाही चलेगी। सो सोमवार को परंपरा के मुताबिक नए साल के पहले सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का अभिभाषण हुआ। सरकार ने अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटा। पर सरकार के एक साल के एजंडे में कुछ नया नहीं। अलबत्ता महंगाई पर काबू पाना सरकार की प्राथमिकता में। पर इसके लिए सरकार ने एक साल मांग लिया। यानी वित्तीय वर्ष 2011-12 में महंगाई पर काबू पाना सरकार की पहली प्राथमिकता। पर विकास से भी समझौता नहीं करेगी। सो राष्ट्रपति का अभिभाषण उत्साह पैदा करने वाला नहीं रहा। करीब 50 मिनट के अभिभाषण में महज दो बार ताली बजीं, वह भी मद्धिम। मिस्र में लोकतंत्र का स्वागत और महिला बिल की उम्मीद पर कुछ सांसदों ने ताली बजाई। बाकी अभिभाषण में कहीं ऐसा दमखम नहीं, जहां सांसद मेजें थपथपाने को मजबूर हुए हों। अलबत्ता कांग्रेस को पहले दिन अपने ही सांसदों से शर्मसार होना पड़ा। अभिभाषण में तेलंगाना का जिक्र नहीं था। सो कांग्रेसी सांसद राष्ट्रपति के सामने ही सोनिया के फोटू के साथ जय तेलंगाना के बैनर लहराने लगे। फिर भी बजट सत्र में पक्ष-विपक्ष की सहमति संसद ही नहीं, लोकतंत्र के लिए सुकून की बात। आखिरकार आवाम की जिद के आगे सरकार को झुकना पड़ा। मनमोहन ने तो पिछले हफ्ते की प्रेस कांफ्रेंस में भी यहां तक कह दिया था- शीत सत्र हंगामे में क्यों बरबाद हुआ, इसकी वजह मैं समझ नहीं पा रहा। पर अब सवाल- क्या पीएम को वजह समझ आ गई? सचमुच टू-जी घोटाला और इसके लिए जेपीसी का विवाद संसद का नया इतिहास रच गया। सो सरकार को जवाब देना होगा- शीत सत्र में ही जेपीसी क्यों नहीं मान गई?
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21/02/2011
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21/02/2011
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