Tuesday, February 22, 2011

जेपीसी हो या गोधरा: रस्सी जल गई, बल नहीं गया

रस्सी जल गई, पर बल नहीं गया। मनमोहन सरकार की अकड़ जेपीसी का एलान करने में भी दिख गई। पीएम ने संसद के दोनों सदनों में बयान पढ़ जेपीसी का इरादा जताया। पर जरा इरादे की नेकनीयती भी देख लीजिए। बकौल पीएम, संसद को पंगु बनाना देश बर्दाश्त नहीं कर सकता। भ्रष्टाचार का जड़ से खात्मा सरकार की प्रतिबद्धता। सो टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच सुप्रीम कोर्ट की मॉनीटरिंग में सीबीआई कर रही। संसद की पीएसी मामला देख रही। जस्टिस शिवराज पाटिल कमेटी की जांच रपट आ चुकी। सरकार ने सभी प्रभावशाली कदम उठाए। ताकि विपक्ष को जेपीसी पर जोर न देने के लिए मना लिया जाए। पर सफलता नहीं मिली। अब अगर बजट सत्र भी विपक्ष नहीं चलने देता। तो लोकतंत्र के हित में नहीं होता। सो हम विशेष परिस्थितियों में जेपीसी गठन को राजी हो रहे। यानी पीएम के बयान का एक पंक्ति में निचोड़- लोकतंत्र बचाने को झुकी सरकार। यों दिल बहलाने को मनमोहन-ए-खयाल अच्छा है। पर सवाल- हुजूर लोकतंत्र की याद आने में इतनी देर क्यों लगी? शीत सत्र में क्या लोकतंत्र टूर पर था? असलियत तो मनमोहन ही नहीं, पूरी कांग्रेस जानती। टू-जी घोटाले में जब राजा का बाजा बज गया। सीबीआई ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। नए टेलीकॉम मिनिस्टर कपिल सिब्बल ने बचाव के तमाम पैंतरे आजमाए। पर खुद की सांस उखड़ गई। सुप्रीम कोर्ट से लेकर समूचे विपक्ष ने हमले की धार बरकरार रखी। तो लोकतंत्र याद आने लगा। पहले मनमोहन और कांग्रेस ने लोकतंत्र को बपौती समझ चलाना चाहा। पर बात नहीं जमी, तो लोकतंत्र की दुहाई दे रहे। अगर लोकतंत्र की दुहाई, तो साथ में विपक्ष की जिद के आगे मजबूर होने का राग क्यों? आखिर शीत सत्र में ऐसी क्या जिद, जो जेपीसी नहीं मानी? सचमुच शुरुआत में कांग्रेस और सरकार ने राजा को जमकर बचाया था। बचाने में हाल तक कपिल सिब्बल भी लगे रहे। जिन ने तो घोटाले को ही झुठला दिया। पर जब मिस्र की जनता ने सडक़ों पर उतर लोकतंत्र की अलख जगाई। अपने देश की जनभावना में मिस्र जैसा उबाल नहीं। पर जुबां और आंखें मिस्र के आंदोलन की दुहाई देते दिखे। सो मनमोहन को लोकतंत्र दिख गया। अब देर से ही सही, मनमोहन सरकार दुरुस्त आई। तो लोकसभा में सुषमा स्वराज ने स्वागत किया। बोलीं- जेपीसी का गठन सत्तापक्ष या विपक्ष की जय-पराजय नहीं, अलबत्ता लोकतंत्र की जीत। पर राज्यसभा में अरुण जेतली ने पीएम के बयान को खेदजनक करार दिया। यों गुरुदास दासगुप्त और मुलायम सिंह ने सही फरमाया। दासगुप्त बोले- जेपीसी गठन पर सरकार आभार या बधाई की पात्र नहीं। सरकार की बुद्धि जागी, सो अपना फर्ज निभाया। मुलायम ने तो पीएम से कह दिया- आपको न खुदा मिला, न बिसाल-ए-सनम। शीत सत्र में जेपीसी बना लेते, तो जनता में गलत संदेश न जाता। पर अब तो जनता भी जान गई, सरकार भ्रष्टाचार दबाना चाह रही। यों सत्ता के नशे में भला जनता की फिक्र कौन सी सरकार करती। वोट बैंक की राजनीति ही पार्टियों का एजंडा। तभी तो मंगलवार को ही यूपी विधानसभा के मुद्दे पर माया-मुलायमवादी लोकसभा में भिड़ गए। पर बात कांग्रेसी अकड़ की। तो मंगलवार को जेपीसी का एलान करना ही पड़ा। गुजरात की स्पेशल कोर्ट ने कांग्रेसी सेक्युलरिज्म की हवा निकाल दी। गोधरा कांड पर नौ साल बाद फैसला आया। तो साबित हो गया, साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में साजिश के तहत आग लगाई गई। यों अदालत ने 63 आरोपियों को बरी कर दिया। जबकि 31 को साजिश का दोषी पाया। सो तीस्ता सीतलवाड़ जैसे एक्टिविस्टों को सांप सूंघ गया। कांग्रेस, कानून मंत्री वीरप्पा मोइली, पी. चिदंबरम, सलमान खुर्शीद जैसों ने बेहद सधी हुई प्रतिक्रिया दी। जबकि बीजेपी की तो बांछें खिल गईं। सचमुच गोधरा कांड और उसके बाद हुए गुजरात दंगों पर खूब राजनीति हुई। बतौर रेल मंत्री लालू यादव ने जस्टिस यू.सी. बनर्जी कमेटी बनाई। तो बनर्जी ने लालू के मनमाफिक रपट दी। साबरमती ट्रेन अग्निकांड दुर्घटना करार दे दिया। पूरी थ्योरी गढ़ दी- कैसे एस-6 कोच में बैठे कारसेवकों ने स्टोव जलाया और आग लग गई। जिसमें 59 कार सेवक मारे गए। यों गुजरात हाईकोर्ट ने पहले बनर्जी रपट पर रोक लगाई। फिर कमेटी के गठन को असंवैधानिक ठहरा दिया। अब जब विशेष अदालत ने भले 63 को बरी कर दिया। पर साजिश की बात साबित हो गई। अब इसमें कोई बदलाव की संभावना नहीं, भले कुछ और आरोपी छूट जाएं। पर मंगलवार को विशेष अदालत के फैसले के बाद भी खास संप्रदाय की बात को सेक्युलरिज्म मानने वाले यही साबित करने में जुटे रहे। कोर्ट ने 63 लोगों को बरी कर दिया। नरेंद्र मोदी सरकार ने लोगों को टार्गेट किया था। पर मुंबई हमले के केस में भी तो कई रिहा हुए। फिर भी साजिश की बात कबूलने में झोला छाप वाले हिचकिचाते दिखे। पुलिस जांच में कई बार निर्दोष पकड़े जाते। पर विशेष अदालत का फैसला उन लोगों के लिए सबक, जो सेक्युलरिज्म को एक विशेष समुदाय से जोडक़र जस्टिफाई करने में लगे रहते। कांग्रेसी दिग्विजय सिंह का बटला राग भी इसी कड़ी में। अब चाहे ऊपरी अदालत में दोषी छूटे या सजा पर मुहर लगे, यह अलग बात। पर गुजरात की स्पेशल कोर्ट का फैसला छद्म धर्मनिरपेक्षता के मुंह पर करारा तमाचा। यानी मंगलवार को जेपीसी हो या गोधरा का फैसला, बात वही- रस्सी जल गई, पर बल नहीं गया।
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22/02/2011

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