Wednesday, February 23, 2011

अफजल की याचिका बता रही कसाब का भविष्य

तो तीस मेंबरी जेपीसी का खाका तय हो गया। अध्यक्ष समेत कांग्रेस के दर्जन तो बीजेपी के आधा दर्जन मेंबर होंगे। लेफ्ट, बीएसपी, जेडीयू, डीएमके के दो-दो। सपा, अन्ना द्रमुक, तृणमूल, बीजद, एनसीपी के एक-एक मेंबर होंगे। बीजेपी अपने आधा दर्जन में से ही एनडीए का भी पेट भरेगी। बीजेपी ने अपने कोटे के छह में से पांच नामों का एलान कर दिया। जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा, हरेन पाठक लोकसभा से। तो एस.एस. आहलूवालिया और रविशंकर प्रसाद राज्यसभा से जेपीसी में होंगे। छठी सीट बीजेपी ने शिवसेना को दे दी। अब गुरुवार को कपिल सिब्बल प्रस्ताव लाएंगे। तो बहस में नोंकझोंक भी जमकर होगी। पर गतिरोध का औपचारिक पटाक्षेप हो जाएगा। फिर जेपीसी की जांच सुर्खियों में रहेगी। सो बात संसद के बजट सत्र की। गतिरोध टूटा, तो संसद फिर अपनी रौ में लौट आया। गुरुवार को तेलंगाना ने तीन बार लोकसभा की कार्यवाही ठप कराई। तेलंगाना को लेकर हंगामे में टीआरएस ही नहीं, कांग्रेसी सांसद भी आगे। सो सुषमा स्वराज ने टीआरएस के प्रति खूब सहानुभूति जताई। लोकसभा में उन ने पीएम से अपील की- इसी सत्र में बिल लाने का भरोसा दे दें। पर दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता। सो कांग्रेस हड़बड़ी से बच रही। पर तेलंगाना से जुड़े कांग्रेसी सांसदों ने अब खम ठोक दिया- तेलंगाना की हमारी मांग पूरी नहीं हुई, तो हम संसद भवन परिसर में ही आत्महत्या कर लेंगे। सो कांग्रेस अपने सांसदों को मनाएगी या तेलंगाना की मांग मानेगी, यह अभी देखना होगा। पर गुरुवार को धन्यवाद प्रस्ताव की बहस में शरद यादव ने भ्रष्टाचार को अफीम बता सरकार की खूब बखिया उधेड़ी। तो कांग्रेसियों ने कर्नाटक का सुर्रा छोड़ दिया। पर असली नोंकझोंक राज्यसभा में हुई। पहला सवाल संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की दया याचिका से जुड़ा था। सो विपक्षी सूरमाओं ने होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम को घेरने की कोशिश की। पर चालाक चिदंबरम चतुराई दिखा गए। उन ने साफ कह दिया- बतौर गृहमंत्री उन ने दया याचिकाओं के निपटान में कोई देरी नहीं की। पर चिदंबरम पुरानी देरी और अफजल की याचिका के भविष्य का कोई समयबद्ध भरोसा नहीं दे सके। तो शिवसेना के मनोहर जोशी ने आरोप मढ़ दिया- अल्पसंख्यक समुदाय का होने की वजह से अफजल गुरु की दया याचिका पर फैसले में देरी की जा रही। जोशी के इस आरोप से सत्तापक्ष ही नहीं, वामपंथी भी भडक़ गए। पर चिदंबरम ने सफाई दी- दया याचिका राष्ट्रपति के पास भेजते समय धर्म-जाति या संप्रदाय के बारे में नहीं सोचता। मैं किसी भय, पक्षपात, पूर्वाग्रह और भेदभाव के बिना अपना काम करता हूं। उन ने विपक्ष को कोई ठोस जवाब देने के बजाए अपनी पीठ जमकर ठोकी। चिदंबरम ने याद दिलाया कि कैसे एनडीए काल में 14 याचिकाएं आईं और यूपीए-वन में उनके गृहमंत्री बनने से पहले 14 केस आए। यानी कुल 28 केस में सिर्फ दो का निपटान हुआ। जबकि उनके गृहमंत्री रहते 13 केस आए, जिनमें सात का निपटारा हो चुका। चिदंबरम ने बाकायदा स्ट्राइक रेट बताया। जिसके मुताबिक एनडीए ने 14 में एक भी केस नहीं सुलझाया। शिवराज पाटिल ने 28 में दो सुलझाए। और खुद उन ने 13 में सात केस। यानी चिदंबरम का दावा- उनका स्ट्राइक रेट पचास फीसदी के करीब। चिदंबरम ने इस बात से भी इनकार कर दिया कि दया याचिकाओं के निपटान को समय सीमा में बांधने के लिए कोई संविधान संशोधन होगा। सो अब सवाल- क्या आतंकवादियों की याचिका भी कतार से ही सुनी जाएगी? क्या स्ट्राइक रेट उम्दा होने से अफजल जैसे आतंकियों को और वक्त दिया जाए? गृहमंत्री ने बेहिचक कह दिया- अफजल का फैसला कतार से ही होगा। अभी मामला गृह मंत्रालय में लंबित। सो मंत्रालय से राष्ट्रपति के पास जाने और वहां कितना वक्त लगेगा, यह नहीं कह सकते। उन ने इशारा कर दिया- दया याचिका के निपटान में सबसे कम 18 दिन, तो सबसे अधिक 11 साल 11 महीने 18 दिन का रिकार्ड। अफजल की याचिका को तो अभी साढ़े पांच साल ही हुए। अगर अभी भी सरकार ऐसी दलील दे रही। तो मुंबई हमले के दोषी कसाब का क्या होगा? कसाब ने तो सुप्रीम कोर्ट जाने का इरादा जता दिया। सो अब सुप्रीम कोर्ट ने भी सजा बरकरार रखी। तो कसाब राष्ट्रपति के सामने भी जाएगा। यानी दया याचिकाओं का ऐसे ही निपटान होता रहा। तो मुंबई में मौत का तांडव करने वाला कसाब अभी एक दशक और भारत का अनाज तोड़ेगा। वैसे भी ताजा 25 दया याचिकाओं की सूची में अफजल का नंबर अठारहवां। सो राम जेठमलानी ने सरकार को याद दिलाया- सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका कि किसी दोषी की सजा के अमल में दो साल से अधिक की देरी हो। तो मानसिक यातना को आधार बना सजा में बदलाव किया जा सकता। यानी अफजल अपनी दया याचिका के निपटान से पहले भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा दे। तो राहत मिलने के पूरे आसार। तब सरकार क्या कहेगी? चिदंबरम ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया- देरी उनके या मंत्रालय के स्तर पर नहीं हुई। अफजल की याचिका पर दिल्ली सरकार ने देर की। पर सवाल- दिल्ली के उपराज्यपाल ने तो जून 2010 में ही गृह मंत्रालय को फाइल भेज दी। फिर सात महीने से गृह मंत्रालय क्या कर रहा? सरकार शायद भूल रही, जब मुंबई हमले के बाद जनता सडक़ों पर उतरी। तो राजनेताओं की सांसें अटक गई थीं।
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23/02/2011

 

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